*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*⛅दिनांक - 2 मार्च 2025*
*⛅दिन - रविवार *
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - उत्तरायण*
*⛅ऋतु - बसन्त*
*⛅मास - फाल्गुन*
*⛅पक्ष शुक्ल*
*⛅तिथि -तृतीया रात्रि
09:01:27 am तक पश्चात चतुर्थी*
*⛅नक्षत्र - उत्तरभाद्रपदा 08:58:52तक तत्पश्चात रेवती*
*⛅योग - शुभ 12:37:58 तक, तत्पश्चात शुक्ल*
*⛅राहु काल_हर जगह का अलग है- दोपहर 05:08:00 से शाम 06:35 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:59:25*
*⛅सूर्यास्त - 06:35:12*
*⛅ चन्द्र राशि - मीन*
*⛅सूर्य राशि - कुम्भ*
*⛅दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:19 से 06:09 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - 12:24 पी एम से 01:11 पी एम*
*⛅निशिता मुहूर्त - 12:22 ए एम, मार्च 03 से 01:12 ए एम, मार्च 03 तक*
*⛅रवि योग 08:59 ए एम से 06:39 ए एम, मार्च 03 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - 👉
*तृतीया तिथि
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, तृतीया के दिन परवल नहीं खाना चाहिए.
तृतीया के दिन क्या नहीं खाना चाहिए?
तृतीया के दिन परवल खाने से शत्रुओं की संख्या बढ़ती है.
तृतीया जैसे पवित्र दिनों पर मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए.
तृतीया पर तामसिक चीज़ें जैसे - प्याज, लहसुन, मछली और मांस खाने से बचना चाहिए.
तृतीया पर शराब पीने, नाखून काटने और सट्टेबाजी जैसी आदतों से बचना चाहिए.
इस दिन कर्ज लेने या पैसा उधार लेने से बचना चाहिए.
तृतीया पर किसी का अपमान भूलकर भी नहीं करना चाहिए.
इस तिथि पर घर में लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए. *
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*⛅चोघडिया, दिन⛅*
उद्वेग 06:59 - 08:26 अशुभ
चर 08:26 - 09:53 शुभ
लाभ 09:53 - 11:20 शुभ
अमृत 11:20 - 12:47 शुभ
काल 12:47 - 14:14 अशुभ
शुभ 14:14 - 15:41 शुभ
रोग 15:41 - 17:08 अशुभ
उद्वेग 17:08 - 18:35 अशुभ
*⛅चोघडिया, रात⛅
शुभ 18:35 - 20:08 शुभ
अमृत 20:08 - 21:41 शुभ
चर 21:41 - 23:14 शुभ
रोग 23:14 - 24:47* अशुभ
काल 24:47* - 26:20* अशुभ
लाभ 26:20* - 27:53* शुभ
उद्वेग 27:53* - 29:26* अशुभ
शुभ 29:26* - 30:58* शुभ
*⛅ साथियों आपके जीवन में कई बार उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं उन्हें अगर ज्योतिष की दृष्टि से देखें तो ग्रहो का कुंडली पर किश प्रकार दृष्टि दे रहा है। फल भी वैसा ही देगा।
🕉॥शिवलिंग का अर्थ उपस्थेन्द्रियरूप भी है॥
*अनेक व्यक्ति शिवलिंग के बहुधा दार्शनिक अर्थ प्रस्तुत करते हैं और कहा करते हैं कि शिवलिंग का यही अर्थ है उपस्थेन्द्रियरूप नहीं।*
*भला दार्शनिक अर्थ से मूल अर्थ का बाध हो जाना सम्भव है? दार्शनिक अर्थ को ही सर्वस्व मान लेने पर न ही नारायण के हाथ में शंख,चक्र की स्थिति सिद्ध होगी एवं न ही देवी के हाथों में पाश अंकुश इत्यादि की क्योंकि तद्तद आयुधों का दार्शनिक वर्णन भी शास्त्रों में उपलब्ध है।*
*अत: दार्शनिक अर्थ अवश्य सम्भव है जैसा कि विद्येश्वरसंहिता में वर्णित भी है, किन्तु दार्शनिक अर्थ से मूलपदार्थ का अपलाप नहीं किया जा सकता।*
*महाभारत अनुशासन पर्व में ही परमशैव महर्षि उपमन्यु शिवलिंग का वर्णन करते हैं-*
न पद्माङ्का न चक्राङ्का न वज्राङ्का यतः प्रजाः।
लिङ्गाङ्का च भगाङ्का च तस्मान्माहेश्वरी प्रजा ॥
देव्याःकरणरूपभावजनिताःसर्वाभगाङ्काः स्त्रियो
लिङ्गेनापि हरस्य सर्वपुरुषाः प्रत्यक्षचिह्नीकृताः ॥ (महाभारत १३.४५.२१७-२१८)
अर्थात मनुष्यों के शरीर में न तो पद्म का चिह्न है न ही वज्र अथवा चक्र का किन्तु सभी मनुष्यों के शरीर में लिंग एवं योनि के चिह्न अवश्य हैं इस कारण समस्त प्रजा भगवान महेश्वर से उत्पन्न है। देवी से उत्पन्न होने के कारण स्त्रियाँ भग से युक्त हैं एवं भगवान महेश्वर से उत्पन्न होने के कारण सभी पुरुष लिंग से युक्त हैं। क्या भगलिंग इत्यादि की स्थिति अन्यदेवताओं के शरीर में नहीं है? तो यहाँ पर मात्र भगवान शिव एवं देवी को उनका कारण क्यों कहा है अन्यों को क्यों नहीं? क्योंकि माता पार्वती एवं भगवान शिव के ही भगलिंगरूपी चिन्हों का पूजन विहित है।
ऐसा ही वर्णन बृहद्धर्मपुराण में भी मिलता है -
योनिः साक्षात् भवगती लिङ्गं साक्षान्महेश्वरः।
तयोस्तु पूजनेन स्यात् सर्वदैवतपूजनम्॥
स्त्रीरूपाहं भविष्यामि पुंरूपश्च महेश्वरः।
लिङ्गाङ्का च भागाङ्का च तस्मान्माहेश्वरी प्रजा।५४॥
भगवान शिव ने अंगुष्ठरूपी लिंग का रूप धारण किया एवं तद्वत ही देवी ने योनि का रूप धारण किया।
(बृहद्धर्मपुराण,मध्यभाग,अध्याय ३१)
इस पर अनेक व्यक्ति स्वामी करपात्री जी का लेख दिखाकर कहने लगते हैं कि “शिवलिंग का मात्र समस्त संसार का उत्पत्तिस्थान यही अर्थ है अन्य नहीं”। यहाँ पर भी एक तथ्य विचारणीय है , दारुकवन में भगवानशिव के दिगम्बररूप का वर्णन करते हुए स्वामी करपात्री जी ने मनुष्यलिंग के लिए “साधारण, चर्ममय,प्राकृत” इत्यादि विशेषण क्यों दिये हैं? यह क्यों कहा है कि ‘शिवलिंग सामान्य चर्ममय लिंग नहीं है’ अथवा क्या ‘प्राकृत लिंग से अग्नि इत्यादि की उत्पत्ति संभव है’? सीधे ही क्यों नहीं कह दिया कि शिवलिंग किसी भी प्रकार का साधारण अथवा असाधारण लिंग है ही नहीं।
साधारण न्याय है कि “संभवे व्यभिचारे च विशेषणमर्थवत्” व्यभिचार की संभावना में ही विशेषण दिया जाता है। गौ के आगे श्वेत विशेषण इसलिए ही लगाया जाता है कि श्वेतातिरिक्त भी गौएँ हैं। इस प्रकार प्राकृत,चर्ममय लिंग के अतिरिक्त भी दूसरे प्रकार के लिंग का अस्तित्व है यही सिद्ध होता है। अत: करपात्री जी का तात्पर्य शिवलिंग को अप्राकृत दिव्य लिंग सिद्ध करने में है न कि उसके लिंगत्व का निषेध करने में इस कारण ही तो पूर्व में उन्होंने “अतएव समस्त व्यष्टि-लिंगों एवं अन्यत्र भी व्यापक शिवतत्त्वकी समष्टि मूर्ति महादेव-लिंग है। जैसे व्यष्टि नेत्रोंका अधिष्ठाता समष्टिदेव सूर्य है, वैसे ही व्यष्टि प्रजननशक्तियोंमें व्याप्त शिवतत्त्वका समष्टिस्वरूप शिवलिंग है” एवं “उसी तरह लौकिक प्रसिद्ध लिंग योनि आदि केवल गोलक हैं, उनमें व्यक्त होनेवाला योनि-लिंग तो अतीन्द्रिय ही है। वैसे ही प्रजनन इन्द्रिय, वीर्य, रज आदि भी उसके मुख्य रूप नहीं, किंतु उनसे भी सूक्ष्म, उनमें विशेषरूपसे व्यक्त दृक् दृश्य ही शिव और शक्ति है।” यह लिखकर शिवलिंग की समष्टि लिंगरूपता स्वीकार की है। शिवलिंग को साधारणलिंग तो कोई भी स्वीकार नहीं करता।
लिंगपुराण से तो यह और अधिक स्पष्ट हो जाता है भगवान विष्णु द्वारा की गई शिवस्तुति में सुमेंढ्रायार्च्यमेंढ्राय दण्डिने रूक्षरेतसे ॥(१.२१.३) भगवान शिव को सुमेढ्र, अर्च्यमेढ़्र (पूजित मेढ्र वाले)कहा गया है। मेढ्र का क्या अर्थ होता है? किसकी पूजा होती है?
महादेवस्य वै लिंगं ब्रह्मणोऽस्य महाशिरः !
चरणौ वासुदेवस्य पूजनीया नरैः सदा ॥ (भविष्यपुराण,प्रतिसर्ग़पर्व ३.१७)
देवी अनुसूया ने भी यही कहा था कि ब्रह्मा का शिर, भगवान विष्णु के चरण एवं भगवान महादेव का लिंग मनुष्यों में पूजनीय होगा। भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा के लिए तो चरण एवं शिर का अर्थ चरण एवं शिर ही रहेगा किन्तु भगवान शिव के लिए उसका अर्थ दार्शनिक हो जाएगा! है न? अद्भुत पलायनवाद है।
आगमग्रन्थों में भी मनुष्य के लिंग को “स्वशिव” कहा गया है।
अर्चयेद्गन्धपुष्पाद्यैः स्वशिवं तदनन्तरम् ।
मूलमन्त्रं ॐ नमः शिवाय ततः परम् ।
यजेत्तत्पुरुषाघोरसद्योजातकसंज्ञकेः ॥ (आगमतत्वविलास, बृहत्तन्त्रसार)
शिवलिंगपूजन पर आक्षेप करने वाले स्वयं उपस्थेन्द्रिय से उत्पन्न बिंदुओं के फलस्वरूप ही जन्म लिए हैं। इस प्रकार ही उनके पिता,पितामह इत्यादि भी जिनका वे पूजन सम्मान करते हैं समान प्रकार से ही उत्पन्न है। लौकिक लिंगभग के ही परिणामों का ही अनुसरण,पूजन, पालन आज पूरा संसार कर रहा है तो ऐसी स्थिति में परमकारणरूप पुरुष भगवान शिव एवं योनिरूपा प्रकृति भगवती पार्वती के दिव्यातिदिव्य अलौकिक अंगस्वरूपों के पूजन में किसी आस्तिक को क्या ही आपत्ति हो सकती है। ॥नारायण॥॥नारायण॥
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
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*रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
।। आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।
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