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पंचांग - 31-01-2025

 

Jyotish

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*⛅दिनांक - 31 जनवरी 2025*
*⛅दिन - शुक्रवार*
*🕉️ #गुप्तनवरात्रप्रारम्भः*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - उत्तरायण*
*⛅ऋतु - शिशिर*
*⛅मास - माघ*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - द्वितीया दोपहर 01:58:19 तक तत्पश्चात तृतीया*
*⛅नक्षत्र - शतभिषा प्रातः 04:13:22 फरवरी 01 तक, तत्पश्चात पूर्व भाद्रपद*
*⛅योग - वरियान दोपहर 03:31:17 तक, तत्पश्चात परिघ*
*⛅राहु काल_हर जगह का अलग है- प्रातः 11:27 से दोपहर 12:49 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:22:43*
*⛅सूर्यास्त - 06:14:34*
*⛅दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:27 से 06:29 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:27 से दोपहर 01:10 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:22 फरवरी 01 से रात्रि 01:15 फरवरी 01 तक*
*⛅विशेष - द्वितीया को बृहती (कटहरी, छोटा बैंगन) खाना निषिद्ध है व तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
   *⛅चोघडिया, दिन⛅*
चर    07:23 - 08:44    शुभ
लाभ    08:44 - 10:06    शुभ
अमृत    10:06 - 11:27    शुभ
काल    11:27 - 12:49    अशुभ
शुभ    12:49 - 14:10    शुभ
रोग    14:10 - 15:32    अशुभ
उद्वेग    15:32 - 16:53    अशुभ
चर    16:53 - 18:15    शुभ
 *⛅चोघडिया, रात⛅*
रोग    18:15 - 19:53    अशुभ
काल    19:53 - 21:31    अशुभ
लाभ    21:31 - 23:10    शुभ
उद्वेग    23:10 - 24:48*    अशुभ
शुभ    24:48* - 26:27*    शुभ
अमृत    26:27* - 28:05*    शुभ
चर    28:05* - 29:44*    शुभ
रोग    29:44* - 31:22*    अशुभ
kundli


 
💞रक्ता- ऽब्धि-पीतारुण पद्मसंस्थां,
              पाशाङ्कुशेष्वास-शराऽसि- बाणान्।
     शूलं   कपालं   दधतीं  कराऽब्जै,
                  रक्तां     त्रिनेत्रां    प्रणमामि   देवीम्॥💞
    
#दशमहाविद्या_१
🌹 #माँ_काली 🌹
दस महाविद्याओंमें काली प्रथम हैं । महाभागवतके अनुसार महाकाली ही मुख्य हैं और उन्हींके उग्र और सौम्य दो रूपोंमें अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविद्याएँ हैं । विद्यापति भगवान् शिवकी शक्तियाँ ये महाविद्याएँ अनन्त सिद्धियाँ प्रदान करनेमें समर्थ हैं ।  दार्शनिक दृष्टिसे भी कालतत्त्वकी प्रधानता सर्वोपरि है । इसलिये महाकाली या काली ही समस्त विद्याओंकी आदि हैं अर्थात् उनकी विद्यामय विभूतियाँ ही महाविद्याएँ हैं । ऐसा लगता है कि महाकालकी प्रियतमा काली ही अपने दक्षिण और वाम रूपोंमें दस महाविद्याओंके नाम से विख्यात हुईं । बृहन्नीलतन्त्रमें कहा गया है कि रक्त और कृष्णभेदसे काली ही दो रूपोंमें अधिष्ठित हैं ।  कृष्णाका नाम  " दक्षिणा " और रक्तवर्णाका नाम  " सुन्दरी " है ।

         कालिकापुराणमें कथा आती है कि एक बार हिमालय पर अवस्थित मतंग मुनि के आश्रममें जाकर देवताओंने महामायाकी स्तुति की । स्तुतिसे प्रसन्न होकर मतंग-वनिताके रूपमें भगवतीने देवताओंको दर्शन दिया और पूछा कि तुमलोग किसकी स्तुति कर रहे हो । उसी समय देवीके शरीरसे काले पहाड़के समान वर्णवाली एक और दिव्य नारीका प्राकट्य हुआ । उस महातेजस्विनीने स्वयं ही देवताओंकी ओर से उत्तर दिया कि  " ये लोग मेरा ही स्तवन कर रहे हैं । "  वे काजलके समान कृष्णा थीं,  इसीलिये उनका नाम  " काली " पड़ा ।

         दुर्गासप्तशतीके अनुसार एक बार शुम्भ-निशुम्भके अत्याचारसे व्यथित होकर देवताओंने हिमालयपर जाकर देवीसूक्तसे देवीकी स्तुति की, तब गौरीकी देहसे कोशिकीका प्राकट्य हुआ । कौशिकीके अलग होते ही अम्बा पार्वतीका स्वरूप कृष्ण हो गया, जो  " काली " नाम से विख्यात हुईं ।  कालीको नीलरूपा होनेके कारण तारा भी कहते हैं । नारद-पाञ्चरात्रके अनुसार एक बार कालीके मनमें आया कि वह पुनः गौरी हो जायँ ।  यह सोचकर वे अन्तर्धान हो गयीं ।  शिवजीने नारदजीसे उनका पता पूछा । नारदजीने उनसे सुमेरके उत्तरमें देवीके प्रत्यक्ष उपस्थित होनेकी बात कही । शिवजीकी प्रेरणासे नारदजी वहाँ गये ।  उन्होंने देवीसे शिवजीके साथ विवाहका प्रस्ताव रखा । प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो गयीं और उनकी देश एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट हुआ और उससे छायाविग्रह त्रिपुरभैरवीका प्राकट्य हुआ ।

         कालीकी उपासनामें सम्प्रदायगत भेद है । प्रायः दो रूपोंमें इनकी उपासनाका प्रचलन है । भव-बन्धन-मोचनमें कालीकी उपासना सर्वोत्कृष्ट कही जाती है ।  शक्ति-साधना के दो पीठोंमें कालीकी उपासना श्याम-पीठपर करनेयोग्य है । भक्तिमार्गमें तो किसी भी रूपमें उन महामायाकी उपासना फलप्रदा है,  पर सिद्धिके लिये उनकी उपासना वीरभावसे की जाती है । साधनाके द्वारा जब अहंता, ममता और भेद-बुद्धिका नाश होकर साधकमें पूर्ण शिशुत्वका उदय हो जाता है, तब कालीका श्रीविग्रह साधकके समक्ष प्रकट हो जाता है । उस समय भगवती कालीकी छवि अवर्णनीय होती है ।  कज्जलके पहाड़के समान,  दिग्वसना,  मुक्तकुन्तला, शवपर आरूढ़, मुण्डमालाधारिणी भगवती कालीका प्रत्यक्ष दर्शन साधकको कृतार्थ कर देता है ।  तान्त्रिक-मार्गमें यद्यपि कालीकी उपासना दीक्षागम्य है, तथापि अनन्य शरणागतिके द्वारा उनकी कृपा किसीको भी प्राप्त हो सकती है । मूर्ति, मन्त्र अथवा गुरुद्वारा उपदिष्ट किसी भी आधारपर भक्तिभावसे, मन्त्र-जप,  पूजा, होम और पुरश्चरण करनेसे भगवती काली प्रसन्न हो जाती हैं । उनकी प्रसन्नतासे साधकको सहज ही संपूर्ण अभीष्टोंकी प्राप्ति हो जाती है ।
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष*
*👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय*
*👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*।
*👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण*
*👉*राजवशीकरण*
*👉* शत्रुपराजय*
*👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति*
*👉 *भूतप्रेतबाधा नाश*
*👉*सर्वसिद्धि*
*👉 *सम्पूर्ण साफल्य हेतु, विशेष अनुष्ठान हेतु। संपर्क करें।*
*रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
।। आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।
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