Type Here to Get Search Results !

पंचांग - 20-01-2025

 

jyotish

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*⛅दिनांक - 20 जनवरी 2025*
*⛅दिन - सोमवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - उत्तरायण*
*⛅ऋतु - शिशिर*
*⛅मास - माघ*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - षष्ठी प्रातः 09:58 तक तत्पश्चात सप्तमी*
*⛅नक्षत्र - हस्त रात्रि 08:29:03 तक तत्पश्चात चित्रा*
*⛅योग - सुकर्मा रात्रि 02:51:03 जनवरी 21 तक, तत्पश्चात धृति*
*⛅राहु काल_हर जगह का अलग अलग है- प्रातः 08:47 से प्रातः 10:06 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:26:40*
*⛅सूर्यास्त - 06:05:51*
*⛅दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:39 से 06:32 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:25 से दोपहर 01:08 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:20 जनवरी 21 से रात्रि 01:13 जनवरी 21 तक*
*⛅विशेष - सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है व शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

  *⛅चोघडिया, दिन⛅*
अमृत    07:27 - 08:47    शुभ
काल    08:47 - 10:06    अशुभ
शुभ    10:06 - 11:26    शुभ
रोग    11:26 - 12:46    अशुभ
उद्वेग    12:46 - 14:06    अशुभ
चर    14:06 - 15:26    शुभ
लाभ    15:26 - 16:46    शुभ
अमृत    16:46 - 18:06    शुभ
   *⛅ चोघडिया, रात⛅*
चर    18:06 - 19:46    शुभ
रोग    19:46 - 21:26    अशुभ
काल    21:26 - 23:06    अशुभ
लाभ    23:06 - 24:46*    शुभ
उद्वेग    24:46* - 26:26*    अशुभ
शुभ    26:26* - 28:06*    शुभ
अमृत    28:06* - 29:46*    शुभ
चर    29:46* - 31:26*    शुभ
kundli



*⛅ सोमवार विशेष ⛅ *
*⛅कार्यों में सफलता-प्राप्ति हेतु*
*⛅जो व्यक्ति बार-बार प्रयत्नों के बावजूद सफलता प्राप्त न कर पा रहा हो अथवा सफलता-प्राप्ति के प्रति पूर्णतया निराश हो चुका हो, उसे प्रत्येक सोमवार को पीपल वृक्ष के नीचे सायंकाल के समय एक दीपक जला के उस वृक्ष की ५ परिक्रमा करनी चाहिए । इस प्रयोग को कुछ ही दिनों तक सम्पन्न करनेवाले को उसके कार्यों में धीरे-धीरे सफलता प्राप्त होने लगती है ।*
*⛅सोमवार को तथा दोपहर के बाद बिल्वपत्र न तोड़ें ।*

*⛅🔔 श्रीरामचरितमानस 🔔
॥ श्रीजानकीवल्लभो विजयते ॥
  द्वितीय सोपान : अयोध्याकांड
      ⛅☞ पोस्ट 88 ☜⛅

चलत पयादें खात फल पिता दीन्ह तजि राजु।
जात मनावन रघुबरहि भरत सरिस को आजु॥222॥

(वह बोली-) देखो, ये भरतजी पिता के दिए हुए राज्य को त्यागकर पैदल चलते और फलाहार करते हुए श्री रामजी को मनाने के लिए जा रहे हैं। इनके समान आज कौन है?॥222॥।

भायप भगति भरत आचरनू।
कहत सुनत दुख दूषन हरनू॥
जो किछु कहब थोर सखि सोई।
राम बंधु अस काहे न होई॥1॥

भावार्थ:- भरतजी का भाईपना, भक्ति और इनके आचरण कहने और सुनने से दुःख और दोषों के हरने वाले हैं। हे सखी! उनके संबंध में जो कुछ भी कहा जाए, वह थोड़ा है। श्री रामचंद्रजी के भाई ऐसे क्यों न हों॥1॥

हम सब सानुज भरतहि देखें।
भइन्ह धन्य जुबती जन लेखें॥
सुनि गुन देखि दसा पछिताहीं।
कैकइ जननि जोगु सुतु नाहीं॥2॥

भावार्थ:- छोटे भाई शत्रुघ्न सहित भरतजी को देखकर हम सब भी आज धन्य (बड़भागिनी) स्त्रियों की गिनती में आ गईं। इस प्रकार भरतजी के गुण सुनकर और उनकी दशा देखकर स्त्रियाँ पछताती हैं और कहती हैं- यह पुत्र कैकयी जैसी माता के योग्य नहीं है॥2॥

कोउ कह दूषनु रानिहि नाहिन।
बिधि सबु कीन्ह हमहि जो दाहिन॥
कहँ हम लोक बेद बिधि हीनी।
लघु तिय कुल करतूति मलीनी॥3॥

भावार्थ:- कोई कहती है- इसमें रानी का भी दोष नहीं है। यह सब विधाता ने ही किया है, जो हमारे अनुकूल है। कहाँ तो हम लोक और वेद दोनों की विधि (मर्यादा) से हीन, कुल और करतूत दोनों से मलिन तुच्छ स्त्रियाँ,॥3॥

बसहिं कुदेस कुगाँव कुबामा।
कहँ यह दरसु पुन्य परिनामा॥
अस अनंदु अचिरिजु प्रति ग्रामा।
जनु मरुभूमि कलपतरु जामा॥4॥

भावार्थ:- जो बुरे देश (जंगली प्रान्त) और बुरे गाँव में बसती हैं और (स्त्रियों में भी) नीच स्त्रियाँ हैं! और कहाँ यह महान्‌ पुण्यों का परिणामस्वरूप इनका दर्शन! ऐसा ही आनंद और आश्चर्य गाँव-गाँव में हो रहा है। मानो मरुभूमि में कल्पवृक्ष उग गया हो॥4॥

भरत दरसु देखत खुलेउ मग लोगन्ह कर भागु।
जनु सिंघलबासिन्ह भयउ बिधि बस सुलभ प्रयागु॥223॥

भावार्थ:- भरतजी का स्वरूप देखते ही रास्ते में रहने वाले लोगों के भाग्य खुल गए! मानो दैवयोग से सिंहलद्वीप के बसने वालों को तीर्थराज प्रयाग सुलभ हो गया हो!॥223॥

निज गुन सहित राम गुन गाथा।
सुनत जाहिं सुमिरत रघुनाथा॥
तीरथ मुनि आश्रम सुरधामा।
निरखि निमज्जहिं करहिं प्रनामा॥1॥

भावार्थ:- (इस प्रकार) अपने गुणों सहित श्री रामचंद्रजी के गुणों की कथा सुनते और श्री रघुनाथजी को स्मरण करते हुए भरतजी चले जा रहे हैं। वे तीर्थ देखकर स्नान और मुनियों के आश्रम तथा देवताओं के मंदिर देखकर प्रणाम करते हैं॥1॥

मनहीं मन मागहिं बरु एहू।
सीय राम पद पदुम सनेहू॥
मिलहिं किरात कोल बनबासी।
बैखानस बटु जती उदासी॥2॥

भावार्थ:- और मन ही मन यह वरदान माँगते हैं कि श्री सीता-रामजी के चरण कमलों में प्रेम हो। मार्ग में भील, कोल आदि वनवासी तथा वानप्रस्थ, ब्रह्मचारी, संन्यासी और विरक्त मिलते हैं॥2॥

करि प्रनामु पूँछहिं जेहि तेही।
केहि बन लखनु रामु बैदेही॥
ते प्रभु समाचार सब कहहीं।
भरतहि देखि जनम फलु लहहीं॥3॥

भावार्थ:- उनमें से जिस-तिस से प्रणाम करके पूछते हैं कि लक्ष्मणजी, श्री रामजी और जानकीजी किस वन में हैं? वे प्रभु के सब समाचार कहते हैं और भरतजी को देखकर जन्म का फल पाते हैं॥3॥

जे जन कहहिं कुसल हम देखे।
ते प्रिय राम लखन सम लेखे॥
एहि बिधि बूझत सबहि सुबानी।
सुनत राम बनबास कहानी॥4॥

भावार्थ:- जो लोग कहते हैं कि हमने उनको कुशलपूर्वक देखा है, उनको ये श्री राम-लक्ष्मण के समान ही प्यारे मानते हैं। इस प्रकार सबसे सुंदर वाणी से पूछते और श्री रामजी के वनवास की कहानी सुनते जाते हैं॥4॥

तेहि बासर बसि प्रातहीं चले सुमिरि रघुनाथ।
राम दरस की लालसा भरत सरिस सब साथ॥224॥

भावार्थ:- उस दिन वहीं ठहरकर दूसरे दिन प्रातःकाल ही श्री रघुनाथजी का स्मरण करके चले। साथ के सब लोगों को भी भरतजी के समान ही श्री रामजी के दर्शन की लालसा (लगी हुई) है॥224॥

मंगल सगुन होहिं सब काहू।
फरकहिं सुखद बिलोचन बाहू॥
भरतहि सहित समाज उछाहू।
मिलिहहिं रामु मिटिहि दुख दाहू॥1॥

भावार्थ:- सबको मंगलसूचक शकुन हो रहे हैं। सुख देने वाले (पुरुषों के दाहिने और स्त्रियों के बाएँ) नेत्र और भुजाएँ फड़क रही हैं। समाज सहित भरतजी को उत्साह हो रहा है कि श्री रामचंद्रजी मिलेंगे और दुःख का दाह मिट जाएगा॥1॥

करत मनोरथ जस जियँ जाके।
जाहिं सनेह सुराँ सब छाके।
सिथिल अंग पग मग डगि डोलहिं।
बिहबल बचन प्रेम बस बोलहिं॥2॥

भावार्थ:- जिसके जी में जैसा है, वह वैसा ही मनोरथ करता है। सब स्नेही रूपी मदिरा से छके (प्रेम में मतवाले हुए) चले जा रहे हैं। अंग शिथिल हैं, रास्ते में पैर डगमगा रहे हैं और प्रेमवश विह्वल वचन बोल रहे हैं॥2॥

क्रमश:–
सीताराम सीताराम 🙏
नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव 🚩
*☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष*
*👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय*
*👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*।
*👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण*
*👉*राजवशीकरण*
*👉* शत्रुपराजय*
*👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति*
*👉 *भूतप्रेतबाधा नाश*
*👉*सर्वसिद्धि*
*👉 *सम्पूर्ण साफल्य हेतु, विशेष अनुष्ठान हेतु। संपर्क करें।*
*रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
।। आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो।।
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞🔯🔮🪷

vipul

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Below Post Ad