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पंचांग - 02-01-2025

 


*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*⛅दिनांक -02 जनवरी 2025*
*⛅दिन - गुरुवार *
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शिशिर*
*⛅मास - पौष*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - तृतीया रात्रि 01:07:49 जनवरी 02 तक, तत्पश्चात चतुर्थी*
*⛅नक्षत्र - श्रवण रात्रि 11:09:38 जनवरी 01 तक तत्पश्चात धनिष्ठा*

*⛅योग - हर्षण दोपहर 02:56:45 तक, तत्पश्चात वज्र*
*⛅राहु काल_हर  जगह का अलग है- दोपहर 1:57 से शाम 03:16 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:26:04*
*⛅सूर्यास्त - 05:51:01*
*⛅दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:37 से 06:31 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:18 से दोपहर 01:00 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:12 जनवरी 03 से रात्रि 01:06 जनवरी 03 तक*
  💥 *चोघडिया, दिन*💥
शुभ    07:26 - 08:45    शुभ
रोग    08:45 - 10:03    अशुभ
उद्वेग    10:03 - 11:21    अशुभ
चर    11:21 - 12:39    शुभ
लाभ    12:39 - 13:57    शुभ
अमृत    13:57 - 15:16    शुभ
काल    15:16 - 16:34    अशुभ
शुभ    16:34 - 17:52    शुभ
 💥 *चोघडिया, रात*💥
अमृत    17:52 - 19:34    शुभ
चर    19:34 - 21:16    शुभ
रोग    21:16 - 22:58    अशुभ
काल    22:58 - 24:39    अशुभ
लाभ    24:39 - 26:21    शुभ
उद्वेग    26:21 - 28:03    अशुभ
शुभ    28:03 - 29:45    शुभ
अमृत    29:45 - 31:27    शुभ
kundli


*⛅विशेष - अंग्रेजी नव वर्ष 2025 का दूसरे दिन की शुभकामनाएं।
*⛅तृतीया को परवल नहीं खाना चाहिए. ब्रह्म वैवर्त पुराण के मुताबिक, अलग-अलग तिथियों पर अलग-अलग चीज़ें नहीं खानी चाहिए(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

*🌷~••••••नाडी-विज्ञान•••••••

√•आयुर्वेद अनादि, शाश्वत एवं आयुका विज्ञान है। इसकी उत्पत्ति सृष्टिकी रचनाके साथ हुई। जिन तत्त्वोंसे सृष्टिकी रचना हुई, उन्हीं तत्त्वोंसे ही इसकी उत्पत्ति हुई। रचना एवं क्रियाका सम्पादन शरीरकी प्राकृत एवं विकृत अवस्थापर सम्भव है। ब्रह्माण्डमें स्थित तत्त्वोंसे पञ्चभूतोंद्वारा सारी सृष्टि प्राणिमात्र- जड-चेतन, स्थावर- जङ्गम, खनिज-वनस्पति यावन्मात्र समस्त वस्तुजातिकी रचना हुई है।

√•आयुर्वेदके मूल स्तम्भ पञ्चमहाभूत ही हैं। शरीरमें वात, पित्त एवं कफके भी इन पाँच भेदोंके आधारपर प्रत्येक दोषके पाँच-पाँच भेद किये गये हैं तथा उनके आधारपर शरीरमें स्थान, गुण तथा कर्मका वर्णन कर इनके प्राकृत कर्म बताये हैं, यही प्राकृत कर्म जब सम रहते हैं तो प्राकृतावस्था अर्थात् स्वस्थता रहती है और इनके विकृत हो जानेपर अप्राकृतावस्था अथवा अस्वस्थता हो जाती है। चिकित्सा-सिद्धान्तमें भी पञ्चमहाभूतोंकी प्रधानता होनेसे जो मूलभूत चिकित्सा है, उसमें क्षीण हुए दोष एवं महाभूतोंकी वृद्धि करना और जो बढ़े हुए हैं उनका ह्यास करना तथा समका पालन करना ही चिकित्सा है।

            ••••••••वात•••••

√•शरीरस्थ वायु-दोषके शरीरके उत्तमाङ्गसे मूलाधारतक क्रमशः पाँच भेद किये हैं, जो इस प्रकार हैं-

√•प्राण-मूर्धामें। उदान-उर-प्रदेश में। समान - कोष्ठमें। व्यान- सर्वशरीरमें। अपान - मूलाधारमें।

√•- इनमें महाभूतोंकी अधिकताको यदि लें तो प्राणवायु आकाश महाभूत-प्रधान, उदान अप् महाभूत-प्रधान, समान तैजस महाभूत-प्रधान, व्यान वायु महाभूत-प्रधान तथा अपान पृथ्वी महाभूत-प्रधान हैं।

             •••••••पित्त••••••

√•शरीरके उत्तमाङ्गसे अधोभागतक महाभूतोंकी प्रधानतासे पाँच भेद किये गये हैं, जैसे-

√•आलोचक - नेत्र, तैजस महाभूत-प्रधान ।

√•साधक- हृदय, आकाश महाभूत-प्रधान ।

√•पाचक-कोष्ठ, पृथ्वी तत्त्व-प्रधान।

√•रंजक- यकृत्, प्लीहा, अप् महाभूत-प्रधान ।

√•भ्राजक- सर्वशरीरगत त्वक् वायु महाभूत-प्रधान।

         •••••••••कफ•••••••

√•इसी प्रकार कफके भी पाँच रूप-भेद हैं-

√•बोधक-जिह्वामें, तैजस महाभूत-प्रधान।

√•क्लेदक-आमाशयमें, अप् महाभूत-प्रधान।

√•अवलम्बक - हृदयमें, पृथ्वी महाभूत-प्रधान।

√•तर्पक - इन्द्रियोंमें, आकाश महाभूत-प्रधान।

√•श्लेषक-संधियोंमें, वायु महाभूत-प्रधान।

√•इस प्रकार हम देखते हैं कि शरीरमें सबके स्थान नियत हैं और प्रत्येकके कर्म भी शास्त्रमें वर्णित हैं। नाडी- परीक्षणसे पूर्व इनका ज्ञान होना नितान्त आवश्यक है; क्योंकि नाडी-ज्ञान इनके बिना सम्भव नहीं।

√•पुरुषके दायें हाथ एवं स्त्रीके बायें हाथके अंगुष्ठ- मूलसे कुछ दूरीपर तर्जनी, मध्यमा, अनामिका अँगुलियोंको क्रमशः रखकर कूर्पर-संधिको आश्रित न रखते हुए ९० डिग्रीके कोणपर चिकित्सक ध्यानस्थ हो हृदयसे आनेवाले स्पन्दनका अनुभव करे। तर्जनी, मध्यमा तथा अनामिकाके स्पन्दनोंको तरतम-विधिसे ज्ञात करके प्रत्येक अँगुलीके नीचे पाँचों भेदोंको तर्जनीके नीचे पाँचों वायु, मध्यमाके नीचे पाँचों पित्त तथा अनामिकाके नीचे पाँचों कफका ज्ञान प्राप्त करे और उनके स्थान एवं कर्मका ज्ञान होनेपर उनसे होनेवाले कर्मोंके लक्षणवाली व्याधिका होना सुनिश्चित करे। किसी कर्मको प्रश्नके रूपमें पूछनेपर उसकी यथार्थताका ज्ञान करे। दोष-भेदसे भी नाडी-परीक्षा की जाती है। दोषोंके अंशांशकी वृद्धि (भेद-स्वरूप) तर्जनी, मध्यमा तथा अनामिकाके स्पर्शमें स्पष्ट तरङ्गित होती है।

√•नाडी एवं नाडी-ज्ञानद्वारा रोगका ज्ञान प्राप्त करना एक असाधारण कार्य है। इसके लिये विपुल समय, ज्ञान एवं विपुल अनुभवकी अपेक्षा है। यहाँ अत्यन्त सूक्ष्म रूपमें दिशा-निर्देश किया गया है।
☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष*
*👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय*
*👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*।
*👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण*
*👉*राजवशीकरण*
*👉* शत्रुपराजय*
*👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति*
*👉 *भूतप्रेतबाधा नाश*
*👉*सर्वसिद्धि*
*👉 *सम्पूर्ण साफल्य हेतु, विशेष अनुष्ठान हेतु। संपर्क करें।*
*रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
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