*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*⛅दिनांक - 06 जनवरी 2025*
*⛅दिन - सोमवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शिशिर*
*⛅मास - पौष*
*⛅पक्ष - शुक्ल*
*⛅तिथि - सप्तमी शाम 06:22:59 तक, तत्पश्चात अष्टमी*
*⛅नक्षत्र - उत्तर भाद्रपद शाम 07:05:24 तक तत्पश्चात रेवती*
*⛅योग - परिघ रात्रि 02:03:07 जनवरी 07 तक, तत्पश्चात शिव*
*⛅राहु काल - प्रातः 08:46 से प्रातः 10:04 तक*
*⛅ चन्द्र राशि- मीन*
*⛅सूर्य राशि- धनु*
*⛅सूर्योदय - 07:27:10*
*⛅सूर्यास्त - 05:54:03*
*⛅दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:32 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:20 से दोपहर 01:02 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:14 जनवरी 07 से रात्रि 01:08जनवरी 07 तक*
💥 *चोघडिया, दिन*💥
अमृत 07:27 - 08:46 शुभ
काल 08:46 - 10:04 अशुभ
शुभ 10:04 - 11:23 शुभ
रोग 11:23 - 12:41 अशुभ
उद्वेग 12:41 - 13:59 अशुभ
चर 13:59 - 15:18 शुभ
लाभ 15:18 - 16:36 शुभ
अमृत 16:36 - 17:55 शुभ
💥 *चोघडिया, रात*💥
चर 17:55 - 19:36 शुभ
रोग 19:36 - 21:18 अशुभ
काल 21:18 - 22:59 अशुभ
लाभ 22:59 - 24:41* शुभ
उद्वेग 24:41* - 26:23* अशुभ
शुभ 26:23* - 28:04* शुभ
अमृत 28:04* - 29:46* शुभ
चर 29:46* - 31:27* शुभ
*⛅सोमवार के दिन विशेष प्रयोग **⛅व्रत पर्व विवरण - श्री गुरु गोविंदसिंहजी जयंती*
*⛅विशेष - सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है व शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🔹शांति और समझ की ओर बढ़े, जो केवल आत्मज्ञान और सच्चे प्रेम से ही संभव है।
।। मानव अस्त
शांति और समझ की ओर बढ़े, जो केवल आत्मज्ञान और सच्चे प्रेम से ही संभव है।
।। मानव अस्तित्व में शक्ति उपासना ।।
माँ प्रत्येक जीव की आदि अनादि अनुभूति है। हम सबका अस्तित्व माँ के कारण है। माँ न होती तो हम न होते। माँ स्वाभाविक ही दिव्य हैं, देवी हैं, पूज्य हैं, वरेण्य हैं, नीराजन और आराधन के योग्य हैं।
मार्कण्डेय ऋषि ने ठीक ही दुर्गा सप्तशती (अध्याय- ५) में 'या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता बताकर नमस्तस्ये, नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमोनमः'
कहकर अनेक बार नमस्कार किया है। माँ का रस, रक्त और पोषण ही प्रत्येक जीव का मूलाधार है। ऋषियों ने इसीलिए माँ को देवी जाना और देवी को माता कहा। मां के निकट होना आनंददायी है।
हमारी भाषा में निकटता के लिए ‘उप’ शब्द का प्रयोग हुआ है। ‘उप’ बड़ा प्यारा है। इसी से ‘उपनिषद’ बना। उप से उपासना भी बना है।
उपनिषद् का अर्थ है- ठीक से निकट बैठना। उत्तरवैदिक काल में इसका प्रयोग आचार्य और शिष्य की ज्ञान निकटता था। उपासना का अर्थ भी निकट होना है। उपवास का भी अर्थ ‘उप-वास’ निकट रहना है। उपवास का अर्थ दिव्यता की निकटता है। दिव्यता की निकटता से भोजन बेमतलब हो जाता है।
उपासना और उपवास एक जैसे हैं। व्रत का अर्थ नियम पालन है। तैत्तिरीय उपनिषद् में 'नियम से भोजन करने को व्रत' कहा गया। व्रत उपवास दरअसल आंतरिक अनुशासन है। ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण ऊर्जा से स्वयं को जोड़ने का अनुष्ठान ही देवी उपासना है। हम पृथ्वी पुत्र हैं। पृथ्वी भी मां है। वही मूल है, वही आधार है। इस पर रहना, कर्म करना, कर्मफल पाना और अंततः इसी की गोद में जाना सतत् प्रवाही जीवनक्रम है।
ऋग्वेद के ऋषियों के लिए पृथ्वी माता है। माता पृथ्वी धारक है। पर्वतों को धारण करती है, मेघों को प्रेरित करती है। वनस्पतियां धारण करती हैं।
ऋग्वेद में रात्रि भी एक देवी हैं 'वे अविनाशी-अमत्र्या हैं, वे आकाश पुत्री हैं, पहले अंतरिक्ष को और बाद में निचले-ऊचे क्षेत्रों को आच्छादित करती है। उनके आगमन पर हम सब गौ, अश्वादि और पशु पक्षी भी विश्राम करते हैं।
प्रार्थना है कि मेरी स्तुतियाँ सुनो।' (ऋग्वेद- १० / १२७) दुर्गा सप्तशती में निद्रा भी माता और देवी है। प्रकृति की शक्तियां स्त्रीलिंग या पुल्लिंग नहीं हो सकती। देवरूप माँ की उपासना अतिप्राचीन है। सृष्टि का विकास जल से हुआ। यूनानी दार्शनिक थेल्स भी ऐसा ही मानते थे। ऋग्वेद में भी यही धारणा है।
अधिकांश विश्वदर्शन में जल सृष्टि का आदि तत्व है। ऋग्वेद में ‘जल माताएं’ आपः मातरम् हैं और देवियां हैं। ऋग्वेद के अपो देवीः और आपों मातरः गम्भीर अर्थ वाले हैं। उन्हें बहुवचन रूप में याद किया गया है।
भारत में सामाजिक विकास के आदिम काल में ही जल माताओं की उपासना जारी है।
संसार के प्रत्येक जड़ चेतन को जन्म देने वाली यही आपः माताएं हैं- विश्वस्य स्थातुर्जगतो जनित्रीः (ऋग्वेद- ६ / ५० / ७) ऋग्वेद के बड़े प्रभावशाली देवता है अग्नि। इन्हें भी आपः माताओं ने जन्म दिया है: तमापो अग्निं जनयन्त मातरः (ऋग्वेद- १० / ९१ / ६)
ऋग्वेद, अथर्ववेद में अदिति भी देवी है। आदित्य-सूर्य उनके पुत्र हैं। अदिति माता पिता हैं और अदिति ही पुत्र भी हैं। अदिति जैसा देव प्रतीक (या देवी) विश्व की किसी भी संस्कृति में नहीं है 'जो कुछ हो चुका-भूत और जो आगे होगा वह सब अदिति हैं।'
ऋग्वेद में वाणी की देवी वाग्देवी (ऋग्वेद- १० / १२५) हैं। वे रूद्र और वसुओं के साथ चलती हैं।
देवी ऋग्वेद के वाक्सूक्त (१० / १२५) में कहती हैं- 'मैं रूद्रगणों वसुगणों के साथ भ्रमण करती हूँ। मित्र, वरूण, इन्द्र, अग्नि और अश्विनी कुमारों को धारण करती हूँ। मेरा स्वरूप विभिन्न रूपों में विद्यमान है। प्राणियों की श्रवण, मनन, दर्शन क्षमता का कारण मैं ही हूँ। मेरा उद्गम आकाश में अप् (सृष्टि निर्माण का आदि तत्व) है। मैं समस्त लोकों की सर्जक हूँ आदि। वे ‘राष्ट्री संगमनी वसूनां-राष्ट्रवासियों और उनके सम्पूर्ण वैभव को संगठित करने वाली शक्ति-राष्ट्री है।’ (ऋग्वेद- १० / १२५ / ३)
सूर्योदय के पूर्व का सौन्दर्य हैं ऊषा। ऋग्वेद के एक सूक्त (१ / १२४) में ऊषा की स्तुति में कहते हैं 'ये ऊषा देवी नियम पालन करती हैं। नियमित रूप से आती हैं और मनुष्यों की आयु को लगातार कम करती हैं।'
(वही मन्त्र- २) फिर कहते हैं, 'ऊषा स्वर्ग की कन्या जैसी प्रकाश के वस्त्र धारण करके प्रतिदिन पूरब से वैसे ही आती हैं जैसे विदुषी नारी मर्यादा मार्ग से ही चलती है।' (वही, ३) ऊषा देवी हैं, इसीलिए उनकी स्तुतियाँ है, 'वे सबको प्रकाश आनंद देती हैं। अपने पराए का भेद नहीं करतीं, छोटे से दूर नहीं होती, बड़े का त्याग नहीं करती।' (वही, ६) यहां समत्व दृष्टि की सीधी चर्चा है। ऋग्वेद में 'सम्पूर्ण प्राणियों में सर्वप्रथम ऊषा ही जागती हैं।' (१ / १२३ / २) प्रार्थना है कि 'हमारे मुख दिव्य स्तुति गान करे।
☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष*
*👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय*
*👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*।
*👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण*
*👉*राजवशीकरण*
*👉* शत्रुपराजय*
*👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति*
*👉 *भूतप्रेतबाधा नाश*
*👉*सर्वसिद्धि*
*👉 *सम्पूर्ण साफल्य हेतु, विशेष अनुष्ठान हेतु। संपर्क करें।*
*रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞🔯🔮🪷