*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
🌤️*दिनांक -12दिसम्बर 2024*
🌤️*दिन - गुरूवार*
🌤️*विक्रम संवत - 2081*
🌤️*शक संवत -1946*
🌤️*अयन - दक्षिणायन*
🌤️*ऋतु - हेमंत ॠतु*
🌤️*मास - मार्गशीर्ष*
🌤️*पक्ष - शुक्ल*
🌤️*तिथि - द्वादशी रात्रि 10:25:48 तक तत्पश्चात त्रयोदशी*
🌤️ *नक्षत्र - अश्विनी सुबह 09:51:40 तक तत्पश्चात भरणी*
🌤️*योग - परिघ शाम 03:21:56 तक तत्पश्चात शिव*
🌤️*राहुकाल - दोपहर 01:47 से शाम 03:05 तक*
🌤️*सूर्योदय 07:16:41*
🌤️*सूर्यास्त - 5:41:10*
🌤️* चन्द्र राशि- मेष*
🌤️*सूर्य राशि- वृश्चिक*
👉 *दिशाशूल - दक्षिण दिशा मे*
*⛅*चोघडिया, दिन*⛅*
लाभ 07:16 - 08:34 शुभ
अमृत 08:34 - 09:52 शुभ
काल 09:52 - 11:10 अशुभ
शुभ 11:10 - 12:28 शुभ
रोग 12:28 - 13:47 अशुभ
उद्वेग 13:47 - 15:05 अशुभ
चर 15:05 - 16:23 शुभ
लाभ 16:23 - 17:41 शुभ
*⛅*चोघडिया, रात *⛅*
उद्वेग 17:41 - 19:23 अशुभ
शुभ 19:23 - 21:05 शुभ
अमृत 21:05 - 22:47 शुभ
चर 22:47 - 24:29* शुभ
रोग 24:29 - 26:11 अशुभ
काल 26:11 - 27:53 अशुभ
लाभ 27:53 - 29:35 शुभ
उद्वेग 29:35 - 31:17 अशुभ
🚩 *व्रत पर्व विवरण - अखंड द्वादशी*
💥 *विशेष- द्वादशी को
पूतिका(पोई) अथवा त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
💥 *मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी* 💥 👉🏻 *12 दिसम्बर 2024 गुरुवार को मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी है ।*
➡ *वराहपुराण के अनुसार जो पुरुष नियमपूर्वक रहकर कार्तिक, मार्गशीर्ष एवं बैशाख महीनों की द्वादशी तिथियों के दिन खिले हुए पुष्पों की वनमाला तथा चन्दन आदि को मुझ पर चढ़ाता है, उसने मानो बारह वर्षों तक मेरी पूजा कर ली।*
➡ *वराहपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष मास में चन्दन एवं कमल के पुष्प को एक साथ मिलाकर जो भगवान विष्णु को अर्पण करता है, उसे महान फल प्राप्त होता है।*
➡ *अग्निपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष के शुक्लपक्ष की द्वादशी को श्रीकृष्ण का पूजन करके जो मनुष्य लवण का दान करता हैं, वह सम्पूर्ण रसों के दान का फल प्राप्त करता हैं |*
➡ *महाभारत अनुशासनपर्व*
*द्वादश्यां मार्गशीर्षे तु अहोरात्रेण केशवम्।*
*अर्च्याश्वमेधं प्राप्नोति दुष्कृतं चास्य नश्यति।।*
*जो मार्गशीर्ष की द्वादशी को दिन-रात उपवास करके ‘केशव’ नाम से मेरी पूजा करता है, उसे अश्वमेघ-यज्ञ का फल मिलता है।*
➡ *स्कन्दपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष मास में श्रीभगवान विष्णु को, उनके अन्य स्वरुप को स्नान कराने का विशेष महत्व है विशेषतः द्वादशी को । इस दिन श्रीकृष्ण को शंख के द्वारा दूध से स्नान कराएं।*
➡ *तीनलोक_चौदहभुवन!!
राधा तू बड़ भागिनि कौन तपस्या कीन,
तीनलोक चौदह भुवन सब तेरे आधीन।
➡ * विष्णुपुराण के अनुसार लोकों या भुवनों की संख्या चौदह है। इनमें से सात लोकों को ऊर्ध्वलोक व सात को अधोलोक कहा गया है। यहाँ सात ऊर्ध्वलोकों का विवरण निम्न है।
➡ *1. भूलोक: वह लोक जहाँ मनुष्य पैरों से या जहाज, नौका आदि से जा सकता है। अर्थात हमारी पूरी पृथ्वी भूलोक के अन्तर्गत है।
➡ *2. भुवर्लोक: पृथ्वी से लेकर सूर्य तक अन्तरिक्ष में जो क्षेत्र है वह भुवर्लोक कहा गया है और यहाँ उसमें अन्तरिक्षवासी देवता निवास करते हैं।
➡ *3. स्वर्लोक: सूर्य से लेकर ध्रुवमण्डल तक जो प्रदेश है उसे स्वर्लोक कहा गया है और इस क्षेत्र में इन्द्र आदि स्वर्गवासी देवता निवास करते हैं।
➡ *पूर्वोक्त तीन लोकों को ही त्रिलोकी या त्रिभुवन कहा गया है और इन्द्र आदि देवताओं का अधिकारक्षेत्र इन्हीं लोकों तक सीमित है।
➡ *4. महर्लोक: यह लोक ध्रुव से एक करोड़ योजन दूर है। यहाँ भृगु आदि सिद्धगण निवास करते हैं।
➡ *5. जनलोक: यह लोक महर्लोक से दो करोड़ योजन ऊपर है और यहाँ सनकादिक आदि ऋषि निवास करते हैं।
➡ *6. तपलोक: यह लोक जनलोक से आठ करोड़ योजन दूर है और यहाँ वैराज नाम के देवता निवास करते हैं।
➡ *7. सत्यलोक: यह लोक तपलोक से बारह करोड़ योजन ऊपर है और यहाँ ब्रह्मा निवास करते हैं अतः इसे ब्रह्मलोक भी कहते हैं और सर्वोच्च श्रेणी के ऋषि मुनि यहीं निवास करते हैं।
➡ * जैसा कि विष्णु पुराण में कहा गया है नीचे के तीनों लोकों का स्वरूप उस तरह से चिरकालिक नहीं है यहाँ जिस तरह से ऊपर के लोकों का है और वे प्रलयकाल में नष्ट हो जाते हैं जबकि ऊपर के तीनों लोक इससे अप्रभावित रहते हैं।
➡ *अतः भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक को ‘कृतक लोक’ कहा गया है और जनलोक, तपलोक और सत्यलोक को ‘अकृतक लोक’। महर्लोक प्रलयकाल के दौरान नष्ट तो नहीं होता पर रहने के अयोग्य हो जाता है अतः वहाँ के निवासी जनलोक चले जाते हैं। यहां इस कारण महर्लोक को ‘कृतकाकृतक’ कहा गया है।
➡ *यहाँ जिस तरह से ऊर्ध्वलोक हैं और उसी तरह से सात अधोलोक भी हैं जिन्हें पाताल कहा गया है। यहाँ इन सात पाताल लोकों के नाम निम्न हैं।
➡ *1. अतल: यह हमारी पृथ्वी से दस हजार योजन की गहराई पर है और इसकी भूमि शुक्ल यानी सफेद है।
➡ *2. वितल: यह अतल से भी दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि कृष्ण यानी काली है।
➡ *3. नितल: यह वितल से भी दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि अरुण यानी प्रातः कालीन सूर्य के रङ्ग की है।
➡ *4. गभस्तिमान: यह नितल से भी दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि पीत यानी पीली है।
➡ *5. महातल: गभस्तिमान से यह दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि शर्करामयी यानी कँकरीली है।
➡ *6. सुतल: यह गभस्तिमान से दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि शैली अर्थात पथरीली बतायी गयी है।
➡ *7. पाताल: यह सुतल से भी दस हजार योजन नीचे है और इसकी भूमि सुवर्णमयी यानी स्वर्ण निर्मित है।
➡ *इन सात अधोलोकों में दैत्य, दानव और नाग निवास करते हैं।
➡ *हम यह कह सकते हैं कि अन्ततोगत्वा हर लोक भगवान् के अधीन है। यहां (हर ईश्वरवादी ऐसा ही मानेगा।) फिर भी हम अलग अलग लोकों की प्रकृति को देखें तो यह माननें को बाध्य होगें कि जिस प्रकार हमारे लोक में कई राज्य है और उनकी शासनपद्धति भिन्न है और यहां शासक भी भिन्न हैं उसी प्रकार से अन्य लोकों में भी यही बात है।
➡ *पाताललोकों के वर्णन से प्रकट होता है कि उसमें दैत्यों, दानवों और नागों के बहुत से नगर हैं और यहां इसी प्रकार से स्वर्ग में भी इन्द्र, वरुण, चन्द्रमा आदि के नगर हैं। ऊपर के लोक महर्लोक जनलोक, तपलोक और सत्यलोक के निवासी इतने उन्नत हैं कि वहाँ किसी सत्ता की आवश्यकता ही नहीं है।
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
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👉वाद-विवाद (मुकदमे में) जय👉दबे या नष्ट-धन की पुनः प्राप्ति👉 वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण
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👉 शत्रुपराजय
👉नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति
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*रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश प्रेम शर्मा, नागौर* *(राजस्थान)*
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