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पंचांग - 29-12-2024

 

jyotish

*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
*⛅दिनांक -29 दिसम्बर 2024*
*⛅दिन - रविवार *
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शिशिर*
*⛅मास - पौष*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - चतुर्दशी प्रातः 04:00:57am दिसम्बर 30 तक, तत्पश्चात अमावस्या*
*⛅नक्षत्र -     ज्येष्ठ11:21:13pm
तक तत्पश्चात मूल नक्षत्र*
*⛅योग - गण्ड    21:40:07 तक, तत्पश्चात वृद्वि योग*

*⛅राहु काल_हर  जगह का अलग है- प्रातः04:31pm से  05:49pm तक*
*⛅सूर्योदय - 07:25:15*
*⛅सूर्यास्त - 05:49:21*
*⛅चन्द्र राशि-    वृश्चिक    till 23:21:13*
*⛅चन्द्र राशि    -   धनु    from 23:21:13*
*⛅सूर्य राशि-       धनु*
*⛅दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:35 से 06:30 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:16 से दोपहर 12:58 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:10 दिसम्बर 30 से रात्रि 01:05 दिसम्बर 30 तक*

   *⛅*चोघडिया, दिन*⛅*
उद्वेग    07:25 - 08:43    अशुभ
चर    08:43 - 10:01    शुभ
लाभ    10:01 - 11:19    शुभ
अमृत    11:19 - 12:37    शुभ
काल    12:37 - 13:55    अशुभ
शुभ    13:55 - 15:13    शुभ
रोग    15:13 - 16:31    अशुभ
उद्वेग    16:31 - 17:49    अशुभ
  *⛅*चोघडिया, रात*⛅*
शुभ    17:49 - 19:31    शुभ
अमृत    19:31 - 21:13    शुभ
चर    21:13 - 22:55    शुभ
रोग    22:55 - 24:37    अशुभ
काल    24:37* - 26:20    अशुभ
लाभ    26:20 - 28:02    शुभ
उद्वेग    28:02 - 29:44    अशुभ
शुभ    29:44 - 31:26    शुभ
kundli


*⛅ व्रत पर्व विवरण - रवि चतुर्दशी*
*⛅विशेष -  चतुर्दशी के दिन मांस-मदिरा समेत तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए. वहीं, अनंत चतुर्दशी के दिन नमक का सेवन नहीं करना चाहिए. अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखने वालों को प्याज़, लहसून से युक्त भोजन भी नहीं खाना चाहिए नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

*🪷*⭐आज का टॉपिक महाकुंभ का रहस्य 💜💜*
*🪷 *महाकुंभ का रहस्य*🪷*
*🪷 स्थान_  प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक।*
*🪷 नदियां _ त्रिवेणी, गंगा, शिप्रा, गोदावरी।*
*🪷ग्रहयुति _ सूर्य, चन्द्र, बृहस्पति।*
*🪷सर्वप्रमुख तिथि_अमावस्या।*
 *🪷अवधि _ दो चान्द्र मास ।*
*🪷आवर्तन काल _ बारह वर्ष ( कभी कभी ग्यारह वर्ष )*
*🪷वृष के बृहस्पति होने पर माघ मास में प्रयाग।*
*🪷कुंभ के बृहस्पति होने पर वैशाख में हरिद्वार।*
*🪷सिंह  के बृहस्पति होने पर वैशाख में उज्जैन।*
*🪷 सिंह के बृहस्पति होने पर  भाद्रपद में नासिक।*
*🪷उज्जैनऔरनासिक का कुंभ एकही संवतमें लगता है।*
*🪷दोनों के बीच केवल दो चंद्रमास का अंतराल होता है।*
*🪷आध्यात्मिक महत्त्व *🪷*
*🪷 भगवान ब्रह्मा ने भारतवर्ष के चार नगरों में तीर्थजल में
अमृत रसायन डालने का आदेश देवगुरु बृहस्पति को दिया। साक्षी बने सूर्य और चन्द्र। सूर्य चन्द्र की जब भी युति होती है तिथि अमावस्या होती है।अतः सर्व प्रमुख
तिथि अमावस्या होती है।*    

*🪷सर्वप्रमुख काल ब्राह्म मुहूर्त से लेकर सूर्योदय तक का होता है। गौण काल सूर्यास्त तक।*

*🪷जल सोम तत्त्व है जिसका राजा चंद्रमा है। अमृत रसायन को देवगुरु बृहस्पति अपनी रश्मियों से तीर्थ जल में निक्षेपित करते हैं जिसे भगवान सूर्य मकर राशि के काल में पृथ्वी तक निर्विघ्न पहुंचाते हैं। महाकुंभ में सोम तत्त्व और अमृत तत्व का सम्मिलन होता है जो आत्मा को
मोक्ष मार्ग पर ले जाता है।*

*🪷एक दीर्घजीवी व्यक्ति अपने जीवन में दश बार कुंभ स्नान कर सकता है। शैशव काल में माता पिता कुंभ स्नान कराते हैं
कुम्भ के अतिविशिष्ट क्षणों में योगी कुंभक विधि से द्रुपदा गायत्री का जप जलके भीतर करते हैं।शेव योगियों में यह गुप्त विधि चलती थी।*
*🪷मोक्ष एक जटिल और अनेक जन्म साध्य प्रक्रिया है।अतः इसे एक स्नान विधि से सरल तम प्रक्रिया में महाकुंभ उतारता है। भगवान ब्रह्मा ने अपनी सृष्टि को यह सरल उपाय दिया है।महाकुंभ मोक्ष प्राप्ति का सरलतम द्वार है।*

*🪷 महाकुंभ में योगी जन और सिद्ध गण स्नान करने आते हैं। इन्हें पहचानने की विधि गुप्त और जटिल है। सभी संभावित तपस्वी को प्रणाम करना कुंभ में मिलने वाला अति विशिष्ट अवसर होता है।*
*🪷 अमृत कुंभ का मुख आकाश की ओर होता है जो विशिष्ट क्षण में तीर्थ में गिरता है।इसे योगी जन गिरते हुए देख पाते हैं। त्राटक सिद्ध व्यक्ति इसे देख सकता है।
ॐ*
🙏🚩🚩जय जय सिया राम राम  🚩🚩🙏😊😍😊*

*🪷*👉अरिष्ट ग्रहों से उत्पन्न समस्या से मुक्ति पाने के लिए सरल एवं अचूक उपाय--*

👉: *मन के नेत्र से दर्शन करना
प्रत्यक्षीकरण नेत्र और श्रवण इंद्रिय से सर्वाधिक होता है।*

 *🪷 नेत्र से देखे हुएको हम परम प्रमाण मानते हैं। कान से सुने को भी । फिर भी इस सृष्टि के रहस्य और सृष्टि कर्ता की उपस्थिति को अधिकांश मनुष्य नहीं जानते,बल्कि उसे न देख सुन पाने के कारण काल्पनिक या उसका न होना ही मानते हैं।*
*🪷 वस्तुतः अधिकांश आबादी आज प्राणायाम,ध्यान,धारणा
से दूर होने के कारण अपनी ग्यारहवीं इंद्रिय को ही नहीं जानती। यदि जानती भी है तो उसे पुनः पुनः संस्कारित करना नहीं जानती।
*🪷 मन ग्यारहवीं इंद्रिय है। यह ज्ञान इंद्रिय और कर्मेंद्रियों को आदेशित करता रहता है।अतः मन के माध्यम से हमें उस
अनंत सृष्टि और उस परमब्रह्म को देखने सुनने का प्रयास
करना चाहिए .....*
*🪷 न संदृशे तिष्ठति रूपमस्य न चक्षुषा पश्यति कश्चनैनम् ।
हृदा मनीषा मनसाभिक्लृप्तो य एवं विदुरमृतास्ते भवन्ति।
मैने अपने जीवन के अनेक क्षणों में इसी दर्शन दृष्टि और
अमृत वाणी के श्रवण से प्रबोध प्राप्त किया है तथा मृत्यु से अपने को बचाया है। हमेशा नेत्र और श्रवण पर ही विश्वास नहीं किया जाता बल्कि कभी कभी अंतः मन बुद्धि श्रवण पर अधिक विश्वास करना पड़ता है।यह सतत ध्यान की प्रक्रिया से सभी को प्राप्त होता रहता है।अनेक लोग फेसबुक पर लिखते भी रहते हैं। मैने इसे इसलिए लिखा कि लोग स्वयं से इस दिशा में प्रयत्न शील हो सकें।
आसन के साथ प्राणायाम और आगे ध्यान की प्रक्रिया शुरू करते ही मन के नेत्र खुलने लगते हैं। इसका उपयुक्त काल प्रातः का होता है।*

*🪷 जब मन देखने और सुनने लगता है तब मुख की वैखरी और कान की आवाज दोनों को विश्राम मिल जाता है।*
"तब मन बोलने लगता है जिसे मौन का भाषण कहते हैं। कान बिना बोले सुनने लगता है जिसे ब्रह्म नाद कहते हैं।*
 *🪷 प्रयास पूर्वक मन से देखने सुनने का प्रयास करना चाहिए। यह सभी के लिए संभव है। यह सरल सहज योग है। इसे करते रहना चाहिए।इससे विश्व दृष्टि मिलती है। *
🙏😍🙏
☠️🐍जय श्री महाकाल सरकार ☠️🐍*🪷*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*👉कामना-भेद-बन्दी-मोक्ष*
*👉वाद-विवाद(मुकदमे में) जय*
*👉दबेयानष्ट-धनकी पुनः प्राप्ति*।
*👉*वाणीस्तम्भन-मुख-मुद्रण*
*👉*राजवशीकरण*
*👉* शत्रुपराजय*
*👉*नपुंसकतानाश/ पुनःपुरुषत्व-प्राप्ति*
*👉 *भूतप्रेतबाधा नाश*
*👉*सर्वसिद्धि*
*👉 *सम्पूर्ण साफल्य हेतु, विशेष अनुष्ठान हेतु। संपर्क करें।*
*रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश "प्रेमजी", नागौर (राज,)*
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