*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓*
🌤️*दिनांक -26 नवम्बर 2024*
🌤️ *दिन - मंगलवार*
🌤️ *विक्रम संवत - 2081*
🌤️ *शक संवत -1946*
🌤️ *अयन - दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु - हेमंत ॠतु*
🌤️ *मास - मार्गशीर्ष (गुजरात-महाराष्ट्र कार्तिक)*
🌤️*पक्ष - कृष्ण*
🌤️ *तिथि - दशमी रात्रि 03:47:01 तक तत्पश्चात द्वादशी*
🌤️* नक्षत्र हस्त 28:33:44तक तत्पश्चात चित्रा*
*⛅योग - प्रीति दोपहर 02:12:28 तक तत्पश्चात आयुष्मान*
*⛅राहु काल_हर जगह का अलग है- दोपहर 03:01 से शाम 04:20 तक*
*⛅सूर्योदय - 07:05:09*
*⛅सूर्यास्त - 05:39:39*
*⛅चन्द्र राशि~ कन्या*
*⛅सूर्य राशि ~ वृश्चिक*
*⛅दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:17 से 06:10 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:01 से दोपहर 12:44 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 11:56 नवम्बर 27 से रात्रि 12:50 नवम्बर 27 तक*
*⛅ व्रत पर्व विवरण - उतपत्ति एकादशी*
*⛅विशेष - एकादशी को शिम्बी (सेम) खाने से पुत्र का नाश होता है | (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
🌤️*चोघडिया, दिन*🌤️
रोग 07:05 - 08:24 अशुभ
उद्वेग 08:24 - 09:44 अशुभ
चर 09:44 - 11:03 शुभ
लाभ 11:03 - 12:22 शुभ
अमृत 12:22 - 13:42 शुभ
काल 13:42 - 15:01 अशुभ
शुभ 15:01 - 16:20 शुभ
रोग 16:20 - 17:40 अशुभ
🌤️*चोघडिया, रात*🌤️
काल 17:40 - 19:20 अशुभ
लाभ 19:20 - 21:01 शुभ
उद्वेग 21:01 - 22:42 अशुभ
शुभ 22:42 - 24:23 शुभ
अमृत 24:23 - 26:04 शुभ
चर 26:04 - 27:44 शुभ
रोग 27:44 - 29:25 अशुभ
काल 29:25 - 31:06 अशुभ
🌤️*उत्पन्ना एकादशी मंगलवार, 26, नवम्बर2024*
🌤️* 27,नवम्बर को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 13; 07 से 15;19
🌤️*पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय - 10;26
उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष मास की एकादशी तिथि का शास्त्रों में बड़ा ही महत्व है। इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है।।सूतजी कहने लगे हे ऋषियों इस व्रत का वृत्तांत और उत्पत्ति प्राचीनकाल में भगवान कृष्ण ने अपने परम भक्त युधिष्ठिर से कही थी। वही मैं तुमसे कहता हूँ।
🌤️* एक समय युधिष्ठिर ने भगवान से पूछा था कि एकादशी व्रत किस विधि से किया जाता है और उसका क्या फल प्राप्त होता है। उपवास के दिन जो क्रिया की जाती है आप कृपा करके मुझसे कहिए। यह वचन सुनकर श्रीकृष्ण कहने लगे हे युधिष्ठिर! मैं तुमसे एकादशी के व्रत का माहात्म्य कहता हूँ। सुनो।
🌤️*सर्वप्रथम हेमंत ऋतु में मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी से इस व्रत को प्रारंभ किया जाता है। दशमी को सायंकाल भोजन के बाद अच्छी प्रकार से दातुन करें ताकि अन्न का अंश मुँह में रह न जाए। रात्रि को भोजन कदापि न करें, न अधिक बोलें। एकादशी के दिन प्रात: 4 बजे उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इसके पश्चात शौच आदि से निवृत्त होकर शुद्ध जल से स्नान करें। व्रत करने वाला चोर, पाखंडी, परस्त्रीगामी, निंदक, मिथ्याभाषी तथा किसी भी प्रकार के पापी से बात न करे।
स्नान के पश्चात धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से भगवान का पूजन करें और रात को दीपदान करें। रात्रि में सोना या प्रसंग नहीं करना चाहिए। सारी रात भजन-कीर्तन आदि करना चाहिए। जो कुछ पहले जाने-अनजाने में पाप हो गए हों, उनकी क्षमा माँगनी चाहिए। धर्मात्मा पुरुषों को कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों की एकादशियों को समान समझना चाहिए।
🌤️*जो मनुष्य ऊपर लिखी विधि के अनुसार एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें शंखोद्धार तीर्थ में स्नान करके भगवान के दर्शन करने से जो फल प्राप्त होता है, वह एकादशी व्रत के सोलहवें भाग के भी समान नहीं है। व्यतिपात के दिन दान देने का लाख गुना फल होता है। संक्रांति से चार लाख गुना तथा सूर्य-चंद्र ग्रहण में स्नान-दान से जो पुण्य प्राप्त होता है वही पुण्य एकादशी के दिन व्रत करने से मिलता है।
🌤️*अश्वमेध यज्ञ करने से सौ गुना तथा एक लाख तपस्वियों को साठ वर्ष तक भोजन कराने से दस गुना, दस ब्राह्मणों अथवा सौ ब्रह्मचारियों को भोजन कराने से हजार गुना पुण्य भूमिदान करने से होता है। उससे हजार गुना पुण्य कन्यादान से प्राप्त होता है। इससे भी दस गुना पुण्य विद्यादान करने से होता है। विद्यादान से दस गुना पुण्य भूखे को भोजन कराने से होता है। अन्नदान के समान इस संसार में कोई ऐसा कार्य नहीं जिससे देवता और पितर दोनों तृप्त होते हों परंतु एकादशी के व्रत का पुण्य सबसे अधिक होता है।
हजार यज्ञों से भी अधिक इसका फल होता है। इस व्रत का प्रभाव देवताओं को भी दुर्लभ है। रात्रि को भोजन करने वाले को उपवास का आधा फल मिलता है और दिन में एक बार भोजन करने वाले को भी आधा ही फल प्राप्त होता है। जबकि निर्जल व्रत रखने वाले का माहात्म्य तो देवता भी वर्णन नहीं कर सकते।
🌤️*युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! आपने हजारों यज्ञ और लाख गौदान को भी एकादशी व्रत के बराबर नहीं बताया। सो यह तिथि सब तिथियों से उत्तम कैसे हुई, बताइए।
भगवन कहने लगे- हे युधिष्ठिर! सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ। वह बड़ा बलवान और भयानक था। उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित करके भगा दिया। तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भयभीत होकर भगवान शिव से सारा वृत्तांत कहा और बोले हे कैलाशपति! मुर दैत्य से भयभीत होकर सब देवता मृत्यु लोक में फिर रहे हैं। तब भगवान शिव ने कहा- हे देवताओं! तीनों लोकों के स्वामी, भक्तों के दु:खों का नाश करने वाले भगवान विष्णु की शरण में जाओ।
वे ही तुम्हारे दु:खों को दूर कर सकते हैं। शिवजी के ऐसे वचन सुनकर सभी देवता क्षीरसागर में पहुँचे। वहाँ भगवान को शयन करते देख हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगेकि हे देवताओं द्वारा स्तुति करने योग्य प्रभो! आपको बारम्बार नमस्कार है, देवताओं की रक्षा करने वाले मधुसूदन! आपको नमस्कार है। आप हमारी रक्षा करें। दैत्यों से भयभीत होकर हम सब आपकी शरण में आए हैं।
🌤️*आप इस संसार के कर्ता, माता-पिता, उत्पत्ति और पालनकर्ता और संहार करने वाले हैं। सबको शांति प्रदान करने वाले हैं। आकाश और पाताल भी आप ही हैं। सबके पितामह ब्रह्मा, सूर्य, चंद्र, अग्नि, सामग्री, होम, आहुति, मंत्र, तंत्र, जप, यजमान, यज्ञ, कर्म, कर्ता, भोक्ता भी आप ही हैं। आप सर्वव्यापक हैं। आपके सिवा तीनों लोकों में चर तथा अचर कुछ भी नहीं है।
🌤️*हे भगवन्! दैत्यों ने हमको जीतकर स्वर्ग से भ्रष्ट कर दिया है और हम सब देवता इधर-उधर भागे-भागे फिर रहे हैं, आप उन दैत्यों से हम सबकी रक्षा करें।
इंद्र के ऐसे वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे कि हे इंद्र! ऐसा मायावी दैत्य कौन है जिसने सब देवताअओं को जीत लिया है, उसका नाम क्या है, उसमें कितना बल है और किसके आश्रय में है तथा उसका स्थान कहाँ है? यह सब मुझसे कहो।
🌤️*भगवान के ऐसे वचन सुनकर इंद्र बोले- भगवन! प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस थ उसके महापराक्रमी और लोकविख्यात मुर नाम का एक पुत्र हुआ। उसकी चंद्रावती नाम की नगरी है। उसी ने सब देवताअओं को स्वर्ग से निकालकर वहाँ अपना अधिकार जमा लिया है। उसने इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सबके स्थान पर अधिकार कर लिया है
सूर्य बनकर स्वयं ही प्रकाश करता है। स्वयं ही मेघ बन बैठा है और सबसे अजेय है। हे असुर निकंदन! उस दुष्ट को मारकर देवताओं को अजेय बनाइए।
🌤️* यह वचन सुनकर भगवान ने कहा- हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा। तुम चंद्रावती नगरी जाओ। इस प्रकार कहकर भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया। उस समय दैत्य मुर सेना सहित युद्ध भूमि में गरज रहा था। उसकी भयानक गर्जना सुनकर सभी देवता भय के मारे चारों दिशाओं में भागने लगे। जब स्वयं भगवान रणभूमि में आए तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र, आयुध लेकर दौड़े।
🌤️*भगवान ने उन्हें सर्प के समान अपने बाणों से बींध डाला। बहुत-से दैत्य मारे गए। केवल मुर बचा रहा। वह अविचल भाव से भगवान के साथ युद्ध करता रहा। भगवान जो-जो भी तीक्ष्ण बाण चलाते वह उसके लिए पुष्प सिद्ध होता। उसका शरीर छिन्न-भिन्न हो गया किंतु वह लगातार युद्ध करता रहा। दोनों के बीच मल्लयुद्ध भी हुआ।
तक उनका युद्ध चलता रहा किंतु मुर नहीं हारा। थककर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए। वहां हेमवती नामक सुंदर गुफा थी, उसमें विश्राम करने के लिए भगवान उसके अंदर प्रवेश कर गए। यह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका एक ही द्वार था। विष्णु भगवान वहां योगनिद्रा की गोद में सो गए।
मुर भी पीछे-पीछे आ गया और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्यत हुआ तभी भगवान के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई। देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया
🌤️*श्री हरि जब योगनिद्रा की गोद से उठे, तो सब बातों को जानकर उस देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, अत: आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी। आपके भक्त वही होंगे, जो मेरे भक्त हैं
🌤️*एकादशी की आरती
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।।
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।।
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ।
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।।
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।।
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।।
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।।
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।।
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।।
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।।
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।
🌤️*!!क्लेशहरनामामृत_स्तोत्र!!
(हिन्दीअर्थ सहित)
श्रीकेशवं क्लेशहरं वरेण्यमानन्दरूपं परमाथमेव।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका:।।१।।
अर्थात्—भगवान केशव जो दयालु हैं सबका क्लेश हरने वाले, सबसे श्रेष्ठ, आनन्दरूप और परमार्थ-तत्त्व से युक्त हैं । उनका नामरूप अमृत ही सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
श्रीपद्मनाभं कमलेक्षणं च आधाररूपं जगतां महेशम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। २ ।।
अर्थात्—भगवान विष्णु की नाभि से कमल प्रकट हुआ है । उनके नेत्र कमल के समान सुन्दर हैं । वे जगत के आधारभूत और महेश्वर हैं । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
🌤️*पापापहं व्याधि विनाशरूपमानन्ददं दानवदैत्य नाशनम्।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ३ ।।
अर्थात्—भगवान विष्णु पापों का नाश करके आनन्द प्रदान करते हैं । वे दानवों और दैत्यों का संहार करने वाले हैं । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
यज्ञांगरूपं च रथांगपाणिं पुण्याकरं सौख्यमनन्तरूपम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ४ ।।
अर्थात्—यज्ञ भगवान के अंगरूप हैं, उनके हाथ में सुदर्शनचक्र शोभा पाता है । वे पुण्य की निधि और सुख रूप हैं । उनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं है । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
विश्वाधिवासं विमलं विरामं रामाभिधानं रमणं मुरारिम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ५ ।।
अर्थात्—सम्पूर्ण विश्व उनके हृदय में निवास करता है । वे निर्मल, सबको आराम देने वाले, ‘राम’ नाम से विख्यात, सबमें रमण करने वाले तथा मुर दैत्य के शत्रु हैं । उनका नामरूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
आदित्यरूपं तमसां विनाशं चन्द्रप्रकाशं मलपंकजानाम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ६ ।।
अर्थात्—भगवान केशव आदित्य (सूर्य) स्वरूप, अंधकार के नाशक, मल रूप कमलों के लिए चांदनी रूप हैं । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
सखड्गपाणिं मधुसूदनाख्यं तं श्रीनिवासं सगुणं सुरेशम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ७ ।।
अर्थात्—जिनके हाथों में नन्दक नामक खड्ग है, जो मधुसूदन नाम से प्रसिद्ध, लक्ष्मी के निवास स्थान, सगुण और देवेश्वर हैं, उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
नामामृतं दोषहरं सुपुण्यमधीत्य यो माधवविष्णुभक्त: ।
प्रभातकाले नियतो महात्मा स याति मुक्तिं न हि कारणं च ।। ८ ।।
अर्थात्—यह नामामृत स्तोत्र दोषहारी और पुण्य देने वाला है । लक्ष्मीपति भगवान विष्णु में भक्ति रखने वाला जो पुरुष प्रतिदिन प्रात:काल नियमपूर्वक इसका पाठ करता है, वह मुक्त हो जाता है, पुन: प्रकृति के अधीन नहीं होता है ▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
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