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पंचांग -22-10-2024

 💥*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓
*⛅दिनांक - 22अक्टूबर 2024*
*⛅दिन - मंगलवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*

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*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शरद*
*⛅मास - कार्तिक*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
🌤️ *तिथि - षष्ठी    25:28:17 रात्रि तक तत्पश्चात सप्तमी*
*⛅नक्षत्र - आद्रा    29:37:43 रात्रि तक तत्पश्चात पुनर्वसु*
*⛅योग -     परिघ    08:44:46   रात्रि तक, तत्पश्चात शिव*
*⛅    करण    गर    13:52:18 दोपहर तक, तत्पश्चात  विष्टि भद्र*
*⛅राहु काल - दोपहर 08:05 से दोपहर 09:29 तक*
*⛅चन्द्र राशि~       मिथुन*
*⛅सूर्य राशि~       तुला*
*⛅सूर्योदय    ~06:40:08*
*⛅    सूर्यास्त~    17:58:22*

   *⛅    चोघडिया, दिन⛅*    
अमृत    06:40 - 08:05    शुभ
काल    08:05 - 09:29    अशुभ
शुभ    09:29 - 10:54    शुभ
रोग    10:54 - 12:19    अशुभ
उद्वेग    12:19 - 13:44    अशुभ
चर    13:44 - 15:09    शुभ
लाभ    15:09 - 16:34    शुभ
अमृत    16:34 - 17:59    शुभ
   *⛅    चोघडिया, रात⛅*    
चर    17:59 - 19:34    शुभ
रोग    19:34 - 21:09    अशुभ
काल    21:09 - 22:45    अशुभ
लाभ    22:45 - 24:20*    शुभ
उद्वेग    24:20 - 25:55    अशुभ
शुभ    25:55 - 27:30    शुभ
अमृत    27:30 - 29:05    शुभ
चर    29:05 - 30:40    शुभ
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  *⛅    व्रत विवरण एवं विशेष ~षष्ठी के दिन नीम के पत्ते, फल, या दातुन का इस्तेमाल करने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है, ऐसा माना जाता है.

💥* दीपावली ३१ अक्टूबर क्यों ?
💥*#दीपावली को लेकर कौन से मुख्य #बिंदु हैं और उनका अर्थ क्या है ? 🚩🚩

१. 💥*ज्योतिष में सूर्योदय को जो तिथि रहती है, पूरा दिन उसे ही मानते हैं । ये व्रत आदि निर्णय में सहायक होता है । तो चूंकि १ नवंबर को सूर्योदय होने पर अमावस्या तिथि पड़ती है तो विद्वान लोग १ नवम्बर के पक्षधर हैं।*
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२. 💥*दूसरा कारण देखने में आया कि प्रदोष व्यापिनी तिथि है । एक तो✅ #प्रदोष_व्रत होता है जो✅ #त्रयोदशी को शुक्ल और कृष्ण पक्ष में आता है ।
दूसरा होता है✅ #प्रदोष_काल । ये प्रत्येक दिन सूर्यास्त से दो घड़ी पहले और दो घड़ी बाद माना जाता है । दो घटी मतलब २४×२ = ४८ मिनट । प्रदोष काल में भगवान शिव का अधिकार होता है और उनकी पूजा होती है ।
#प्रदोष_व्यापिनी तिथि का अर्थ हुआ कि ये अमावस्या ३१ अक्टूबर को दिन ०३:५२:२० पर शुरू होकर १ नवंबर को शाम ०६:१६:०९ पर खत्म होती है । ज्योतिषी अर्थ में चंद्र और सूर्य एक राशि में रहते हैं और डिग्री बराबर रहती है । अमावस्या के बाद १२ डिग्री चंद्र के चलने से दूसरी तिथि पूर्ण होती है जो प्रतिपदा होती है ।
अब मामला क्या है १ नवंबर सायंकाल में भी प्रदोषकाल है । तो एक मत कहता है यदि दो दिन प्रदोष काल आ जाए तो दूसरे वाले को लेना चाहिए । (मैं इस मत का नहीं हूं )
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३. 💥*तीसरा मत है कि चतुर्दशी को #ग्रह_वेध नहीं किया जाता है । ये वैसा ही है जैसे दिन का लंच miss हो गया, तो शाम को घर जाते समय दिन का टिफिन क्या खोलना । घर में ही ताजा खायेंगे।  सूर्य चंद्र तो एक डिग्री पर आने ही वाले होते हैं ।* ✅

४. 💥*चौथा है #महानिशीथ_काल का होना । ✅निशीथ काल से सरल भाषा में समझिए कि जो तिथि पूरी रात्रि रहे । अमावस्या है तो भूत प्रेत वाली शक्तियां बहुत जागृत मानी जाती हैं ।*
तो इसमें क्या गड़बड़ है ? लक्ष्मी जी की पूजा में संशय । (मेरे अनुसार प्रदोष निपट जाने के बाद बड़े प्रेम से ३१ को लक्ष्मी पूजा करिए । निशीथ काल से कोई भय नहीं होता ।

५. 💥*एक मत स्वाति नक्षत्र को लेकर है । कि एक नवंबर को है । ये भी भ्रांति है । ३१ की रात पौने एक बजे चंद्रमा स्वाति नक्षत्र में प्रवेश कर जायेगा । स्मरण रहे भारतीय ज्योतिष का दिन सूर्योदय के बाद शुरू होता है । तो ये भी संशय नहीं है* ।

६. 💥*एक जन का और ही विचित्र मसला था । उनका कहना था कि तर्पण और नंदी श्राद्ध किए बिना लक्ष्मी पूजन कैसे करें ? और ये क्रिया सवेरे होती है।*

ये काफी गंभीर प्रश्न है ।  जहां तक मेरी समझ कहती है, यदि ऐसा किसी शास्त्र में लिखा भी होगा तो वो आदर्श स्थिति में लिखा होगा जब अमावस्या सवेरे ही पड़ती हो ।

थोड़ा विवेक से विचार करें तो लक्ष्मी पूजा ३१ की शाम और तर्पण श्राद्ध १ नवंबर की सुबह कर सकते हैं । ऐसा जरुरी बिल्कुल नहीं है कि एक के बिना दूसरा नहीं होगा । किसी के यहां अभाजा हो रखा हो तो वो तो वैसे भी दीपावली नहीं मनाते हैं ।

💥*मैने सवेरे विचार करके पोस्ट तो डाल दी थी, पर सोचा मैने स्वयं विचार किया है । दूसरा उत्तराखंडी पंडितों का विचार १ नवंबर का आ रहा । थोड़ा संशय हुआ । अपने गुरु महाराज से भी प्रश्न किया । ✅Same वही जो मैने पहले लिखा था।  इस पोस्ट को और विस्तृत बना दिया है ।*

💥*✅लक्ष्मी पूजन ✅३१ को रात्रि के पहले प्रहर में । सूर्यास्त के बाद लगभग पचास मिनट के बाद ।
जो साधक हैं, वो इस प्रचंड रात्रि का उपयोग बहुत अच्छे से कर सकते हैं ।  जय श्री बंसी वाले की
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से एवं उचित माध्यमों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*मंगल दोष,पितृ दोष,काल सर्प, गुरु चांडाल योग, वैधृति योग की शांति पूजा के लिए या जाप के लिए सम्पर्क करें -/*
*रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश प्रेम शर्मा नागौर (राजस्थान)*
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vipul

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