💥*🗓*आज का पञ्चाङ्ग*🗓
*⛅दिनांक - 21अक्टूबर 2024*
*⛅दिन - सोमवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शरद*
*⛅मास - कार्तिक*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
🌤️ *तिथि - पंचमी 26:28:43 रात्रि तक तत्पश्चात षष्ठी*
*⛅नक्षत्र - रोहिणी 06:49:23*
*⛅नक्षत्र मृगशीर्षा 29:49:59
तक तत्पश्चात आद्रा*
*⛅योग - वरियान 11:10:06 रात्रितक, तत्पश्चात गर परिघ*
*⛅ करण कौलव 15:16:59 दोपहर तक, तत्पश्चात गर*
*⛅राहु काल - दोपहर 08:04 से दोपहर 09:29 तक*
*⛅ चन्द्र राशि ~वृषभ till 18:14:04*
*⛅चन्द्र राशि~ मिथुन from 18:14:04*
*⛅सूर्य राशि~ तुला*
*⛅सूर्योदय - 06:39:29*
*⛅सूर्यास्त - 05:59:12*
*⛅दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:57 से 05:48 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - 11:57 ए एम से 12:43 पी एम*
*⛅निशिता मुहूर्त- 11:54 पी एम से 12:45 ए एम, अक्टूबर 22*
*⛅व्रत पर्व विवरण - आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते
सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् । श्वेत पद्माधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॐ श्री सूर्याय नमः
हे आदिदेव! आपको प्रणाम है,आप मुझ पर प्रसन्न हों, हे दिवाकर,हे प्रभाकर आपको प्रणाम है। सात घोड़ोंवाले रथ पर सवार,हाथ मे श्वेत कमल धारण किए हुए,कश्यपकुमार सूर्य को मेरा प्रणाम।
ॐ सूर्याय नम: ॐ घृणिं सूर्य्य: आदित्य: ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः । ॐ सूर्याय नम: । ॐ घृणि सूर्याय नम: । ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
*⛅चोघडिया, दिन⛅*
अमृत 06:39 - 08:04 शुभ
काल 08:04 - 09:29 अशुभ
शुभ 09:29 - 10:54 शुभ
रोग 10:54 - 12:19 अशुभ
उद्वेग 12:19 - 13:44 अशुभ
चर 13:44 - 15:09 शुभ
लाभ 15:09 - 16:34 शुभ
अमृत 16:34 - 17:59 शुभ
*⛅चोघडिया, रात⛅*
चर 17:59 - 19:34 शुभ
रोग 19:34 - 21:09 अशुभ
काल 21:09 - 22:45 अशुभ
लाभ 22:45 - 24:20 शुभ
उद्वेग 24:20 - 25:55 अशुभ
शुभ 25:55 - 27:30 शुभ
अमृत 27:30 - 29:05 शुभ
चर 29:05 - 30:*⛅
कार्तिक मास की शुरुआत हुए चार दिवस गुजर गए हैं। आईए जानते हैं कार्तिक मास का महत्व।
जय विष्णु गोविंदा जय महालक्ष्मी मां......
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*कार्तिक माहात्म्य - अध्याय–01*
नैमिषारण्य तीर्थ में श्रीसूतजी ने अठ्ठासी हजार शौनकादि ऋषियों से कहा–‘अब मैं आपको कार्तिक मास की कथा विस्तारपूर्वक सुनाता हूँ, जिसका श्रवण करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त समय में वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।’
सूतजी ने कहा–‘श्रीकृष्ण जी से अनुमति लेकर देवर्षि नारद के चले जाने के पश्चात सत्यभामा प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण से बोली।
सत्यभामा ने कहा–‘हे प्रभु! मैं धन्य हुई, मेरा जन्म सफल हुआ, मुझ जैसी त्रौलोक्य सुन्दरी के जन्मदाता भी धन्य हैं, जो आपकी सोलह हजार स्त्रियों के बीच में आपकी परम प्यारी पत्नी बनी। मैंने आपके साथ नारद जी को वह कल्पवृक्ष आदिपुरुष विधिपूर्वक दान में दिया, परन्तु वही कल्पवृक्ष मेरे घर लहराया करता है। यह बात मृत्युलोक में किसी स्त्री को ज्ञात नहीं है।
हे त्रिलोकीनाथ! मैं आपसे कुछ पूछने की इच्छुक हूँ। आप मुझे कृपया कार्तिक माहात्म्य की कथा विस्तार पूर्वक सुनाइये जिसको सुनकर मेरा हित हो और जिसके करने से कल्पपर्यन्त भी आप मुझसे विमुख न हों।’
सूतजी आगे बोले–‘सत्यभामा के ऎसे वचन सुनकर श्रीकृष्ण ने हँसते हुए सत्यभामा का हाथ पकड़ा और अपने सेवकों को वहीं रूकने के लिए कहकर विलासयुक्त अपनी पत्नी को कल्पवृक्ष के नीचे ले गये फिर हंसकर बोले।
श्रीकृष्ण ने कहा–‘हे प्रिये! सोलह हजार रानियों में से तुम मुझे प्राणों के समान प्यारी हो। तुम्हारे लिए मैंने इन्द्र एवं देवताओं से विरोध किया था। हे कान्ते! जो बात तुमने मुझसे पूछी है, उसे सुनो।
एक दिन मैंने (श्रीकृष्ण) तुम्हारी (सत्यभामा) इच्छापूर्ति के लिए गरुड़ पर सवार होकर इन्द्रलोक जाकर कल्पवृक्ष माँगा। इन्द्र द्वारा मना किये जाने पर इन्द्र एवं गरुड़ में घोर संग्राम हुआ और गौ लोक में भी गरुड़ जी गौओं से युद्ध किया।
गरुड़ की चोंच की चोट से उनके कान एवं पूंछ कटकर गिरने लगे जिससे तीन वस्तुएँ उत्पन्न हुई। कान से तम्बाकू, पूँछ से गोभी और रक्त से मेहंदी बनी। इन तीनों का प्रयोग करने वाले को मोक्ष नहीं मिलता।
तब गौओं ने भी क्रोधित होकर गरुड़ पर वार किया जिससे उनके तीन पंख टूटकर गिर गये। इनके पहले पंख से नीलकण्ठ, दूसरे से मोर और तीसरे से चकवा-चकवी उत्पन्न हुए। हे प्रिये! इन तीनों का दर्शन करने मात्र से ही शुभ फल प्राप्त हो जाता है।’
यह सुनकर सत्यभामा ने कहा–‘हे प्रभो! कृपया मुझे मेरे पूर्व जन्मों के विषय में बताइए कि मैंने पूर्व जन्म में कौन-कौन से दान, व्रत व जप नहीं किए हैं। मेरा स्वभाव कैसा था, मेरे जन्मदाता कौन थे और मुझे मृत्युलोक में जन्म क्यों लेना पड़ा। मैंने ऐसा कौन सा पुण्य कर्म किया था जिससे मैं आपकी अर्द्धांगिनी हुई ?’
श्रीकृष्ण ने कहा–‘हे प्रिये! अब मै तुम्हारे द्वारा पूर्व जन्म में किये गये पुण्य कर्मों को विस्तार पूर्वक कहता हूँ, उसे सुनो।
पूर्व समय में सतयुग के अन्त में मायापुरी में अत्रिगोत्र में वेद-वेदान्त का ज्ञाता देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण निवास करता था। वह प्रतिदिन अतिथियों की सेवा, हवन और सूर्य भगवान का पूजन किया करता था। वह सूर्य के समान तेजस्वी था।
वृद्धावस्था में उसे गुणवती नामक कन्या की प्राप्ति हुई। उस पुत्रहीन ब्राह्मण ने अपनी कन्या का विवाह अपने ही चन्द्र नामक शिष्य के साथ कर दिया। वह चन्द्र को अपने पुत्र के समान मानता था और चन्द्र भी उसे अपने पिता की भाँति सम्मान देता था।
एक दिन वे दोनों कुश व समिधा लेने के लिए जंगल में गये। जब वे हिमालय की तलहटी में भ्रमण कर रहे थे, तब उन्हें एक राक्षस आता हुआ दिखाई दिया। उस राक्षस को देखकर भय के कारण उनके अंग शिथिल हो गये और वे वहाँ से भागने में भी असमर्थ हो गये।
तब उस काल के समान राक्षस ने उन दोनों को मार डाला। चूंकि वे धर्मात्मा थे इसलिए मेरे पार्षद उन्हें मेरे वैकुण्ठ धाम में मेरे पास ले आये। उन दोनों द्वारा आजीवन सूर्य भगवान की पूजा किये जाने के कारण मैं दोनों पर अति प्रसन्न हुआ।
गणेश जी, शिवजी, सूर्य व देवी–इन सबकी पूजा करने वाले मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मैं एक होता हुआ भी काल और कर्मों के भेद से पांच प्रकार का होता हूँ। जैसे–एक देवदत्त, पिता, भ्राता, आदि नामों से पुकारा जाता है।
जब वे दोनों विमान पर आरुढ़ होकर सूर्य के समान तेजस्वी, रूपवान, चन्दन की माला धारण किये हुए मेरे भवन में आये तो वे दिव्य भोगों को भोगने लगे। ▬▬▬▬▬▬
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
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*रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश प्रेम शर्मा नागौर (राजस्थान)*
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