कृतध्न पुत्रो को भगवान महावीर के जीवन दर्शन से प्रेरणा लेनी चाहिए
कनक आराधना भवन, काली पोल में साध्वी मृगावतीश्रीजी ने कहा कि तीर्थंकर भगवान गर्भ में तीन ज्ञान मति, श्रुत, ओर अवधि ज्ञान सहित होते हैं| चौथा ज्ञान मन:पर्यव ज्ञान दीक्षा लेते ही हो जाता है,पांचवा ज्ञान केवल ज्ञान उत्कृष्ट कोटि की साधना करने के बाद होता है साध्वी ने कहा कि हर तीर्थंकर ओर चक्रवर्ती की माता चौदह शुभ स्वप्न देखती है जबकि चक्रवर्ती की माता अस्पष्ट स्वप्न व तीर्थंकर की माता स्पष्ट स्वप्न देखती है| चौदह स्वप्न गज,ऋषभ,सिंह, लक्ष्मी,फुलमाला,पुर्ण चन्द्र,सुर्य ध्वजा,कलश,पदम सरोवर,क्षीरसमुद्, देव विमान, रत्नों की राशि, अग्नि शिखा |
साध्वी ने कहा कि आज के कृतध्न पुत्रो को भगवान महावीर के जीवन दर्शन से प्रेरणा लेनी चाहिए | ओर अपने माता-पिता व सभी का सम्मान करना चाहिए | किसी तत्वज्ञ ने सही कहा है ' दुख सहना मां - बाप के खातिर फर्ज तो है अहसान नहीं| कर्ज है उनका तेरे सिर पर भिक्षा या कोई दान नहीं |
कनक आराधना भवन में साध्वी मृगावतीश्रीजी, सुप्रियाश्रीजी, नित्योदयाश्रीजी ने महावीर स्वामी का जन्म वाचन किया | श्रृद्धालुओं द्वारा भगवान को पालने में झुलाया गया तथा सभी भक्तजनों के छापे लगाऐ गए | पयुर्षण पर्व अपने भीतर के अंतर भावों के खोजने का दिन है | इस अवसर पर श्रावक- श्राविकाएं उपस्थित थे |
पयुर्षण महापर्व आध्यात्मिक पर्व है इसका जो केन्द्रीय तत्व है वह है - आत्मा। आत्मा के निरामय ज्योतिर्मय स्वरूप को प्रकट करने में पर्युषण महापर्व अहम भुमिका निभाता है | यह पर्व मनुष्य - मनुष्य को जोड़ने व मानव ह्रदय को संशोधित करने का पर्व है | यह मन कि खिड़कियों, रोशनदानों एवं दरवाजो को खोलने का पर्व है |
साध्वी ने भगवान महावीर के जीवन चरित्र का विवेचन करते हुए कहा कि द्वेष से खतरनाक राग है | राग आग है भले ही प्रशस्त हो अथवा अप्रशस्त | अप्रशस्त से हटने के लिए प्रशस्त है परन्तु प्रशस्त का शमन बिना आत्म शुद्धि के नहीं होता है |
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ समाज में पर्युषण महापर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। जैन समाज के मन्दिरों में सजावट, रोशनी व भगवान की आंगी रचना का कार्यक्रम धूमधाम से चल रहा हैं। उपासरों में सांय काल में प्रतिक्रमण के बाद श्रद्धालु मन्दिरों में दर्शन करने का आनन्द व लाभ उठाते है। भास्कर खजान्ची ने बताया कि हीरावाड़ी स्थित आदिनाथ भगवान के प्राचीन मन्दिर में दादा आदेश्वर, दादा गुरुदेव के पगलियों व अधिष्ठायक देव भैरूजी की विशेष आकर्षक आंगी रचना कल्प खजान्ची, विकास बोथरा, कुशल खजान्ची, विनय बोथरा, प्रदीप डागा, अंकित डागा ने की इसमें पुजारी चन्द्रप्रकाश बोहरा ने भी सहयोग किया। आंगी रचना में विशेष प्रकार के रंगीन स्टोन, मोती, लेश, मैदा लकड़ी, चमकी आदि समान का उपयोग करते हुए चांदी की आंगी पर सजावट की जाती है। इसके बाद सजी हुई चांदी की आंगी भगवान को पहनाई जाती है। ईशा खजान्ची, कल्प खजान्ची, नलिनी खजान्ची व कुशल खजान्ची ने पाट पर रंगीन चावलों से भगवान की माता को आए हुए चौदह सपनों की विशेष रंगोली (गवली) बनाई। रंगोली (गवली) व आंगी रचना में चार से पाँच घंटे का समय लगता हैं। श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ श्री संघ में विकास बोथरा (शेरू) के अखण्ड उपवास का आज पाँचवा दिन है। मन्दिर में आंगी रचना व रंगोली (गवली) की सजावट को देखने व दर्शन करने श्रद्धालुओं का शाम को तांता लगा रहता है।