*सरलता ही उत्तम आर्जव धर्म*
नागौर 10सितंबर। आज पर्युषण पर्व के तीसरे दिन सकल दिगंबर जैन समाज ने तपस्वी सम्राट आचार्य चैत्य सागर महाराजजी के सानिध्य में सभी दिगंबर जैन मंदिरों व नसियां जी में उत्तम आर्जव धर्म की पूजा अर्चना बहुत ही भक्ति पूर्वक की गई। इस अवसर पर समाज के स्टेट बैंक से रिटायर्ड एजीएम नथमल जैन ने बताया कि आज की पूजा का सार यही है कि उत्तम आर्जव सरल स्वभाव को कहते है। ऋजुता का भाव ही आर्जव है।थोड़ा सा भी धोखा दुख को देने वाला होता है। आर्जव धर्म कहता है *मन में हो सो वचन उचरिए, वचन होय सो तन से करिए* अर्थात जो विचार मन में हो वही वचन में रहना और जो वचन से कहा जाय वही काय से किया जाना चाहिए।
इस प्रकार मन वचन काय इन तीनों योगों को सरल करना चाहिए जैसे निर्मल स्वच्छ दर्पण में जैसा अपना मुंह करोगे वैसा ही दिखेगा। छल कपट की प्रीति अंगारों से प्रीति करने के समान है जैसे अंगारों में ऊपर राख दिखती है और अंदर अग्नि दहकती रहती है।अधिक छल करके कोई भी अधिक धन संपदा प्राप्त नहीं कर सकता बल्कि अधिक कर्म बंध करता है।परंतु मनुष्य उस कर्म बंध का ध्यान नहीं करता और छल कपट करता रहता है जैसे बिल्ली आंख बंद करके दूध पीते समय भय का त्याग करती है और पीछे मार पड़ने का ध्यान नहीं रखती। छल कपट करने वाले का चित हमेशा अशांत रहता है इसके विपरित जो सरल मन के हैं वे निश्चिंत रहते हैं। आंख से गिरा आंसू और नजरों से गिरा व्यक्ति फिर कभी नहीं उठते ।उत्तम आर्जव धर्म विश्वास जगाने की बात करता है शक्ल खराब हो पर बोली अच्छी रखिए। मन में पाप लक्ष्य भुला देता है।मिलेगा उतना ही जितना दिया है। आर्जव धर्म साधना से पैदा हुई सरलता स्थाई होती है सरल व्यक्ति हंस की प्रवृत्ति जीता है जबकि कपटी बगुले का आचरण अपनाता है वर्ण दोनों के समान है लेकिन स्वभाव दोनों के भिन्न है हंस सरोवर में मोती चुगता है जबकि बगुले की दृष्टि मछली पर ही बनी रहती है। आर्जव में असीम शक्ति होती है सरलता से बड़ा कोई वशीकरण मंत्र नहीं है यही प्रेरणा तीर्थंकरों आचार्यों महापुरुषों के जीवन से भी ली जा सकती है। इस अवसर पर आज सांय सभी मंदिरों में आरती , स्वाध्याय एवम विशेष धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रम धर्म प्रभावना हेतु आयोजित किए गए ।