🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
🌤️*दिनांक -27 सितम्बर 2024*
🌤️ *दिन - शुक्रवार*
🌤️ *विक्रम संवत - 2081*
🌤️ *शक संवत -1946*
🌤️ *अयन - दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु - शरद ॠतु*
🌤️ *मास - अश्विन*
🌤️ *पक्ष - कृष्ण*
🌤️ *तिथि - दशमी दोपहर 01:19:44 तक तत्पश्चात एकादशी*
🌤️ *नक्षत्र - पुष्य 28 सितम्बर रात्रि 01:19:27 तक तत्पश्चातत अश्लेशा*
🌤️ *योग - शिव रात्रि 11:32:27 तक तत्पश्चात सिद्ध*
🌤️ *राहुकाल - सुबह 10:56 से दोपहर 12:26 तक*
🌤️ *सूर्योदय -06:27:02*
🌤️ *सूर्यास्त- 18:24:21*
👉 *दिशाशूल - पश्चिम दिशा मे*
🌤️ *व्रत पर्व विवरण - एकादशी का श्राद्ध*
🌤️आज की कहानी उज्जैन के महाकाल मंदिर में काल भैरव को महाकाल का द्वारपाल कहा जाता है, और इसके पीछे एक पौराणिक और धार्मिक कथा जुड़ी हुई है।कथाओं के अनुसार, एक समय था जब ब्रह्मा जी ने अपनी सृष्टि रचना शक्ति पर घमंड करना शुरू कर दिया था। उनके इस अहंकार को समाप्त करने के लिए भगवान शिव ने काल भैरव का अवतार लिया। काल भैरव ने ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काट दिया, जिससे उनका अहंकार नष्ट हो गया। लेकिन इस कार्य के बाद काल भैरव को ब्रह्महत्या का दोष लगा। उस दोष से मुक्ति पाने के लिए काल भैरव को पूरे विश्व में भटकना पड़ा और अंततः उन्होंने उज्जैन में महाकाल के पास विश्राम किया।महाकाल भगवान शिव के एक रूप हैं और काल भैरव को उनका द्वारपाल कहा जाता है क्योंकि काल भैरव भगवान शिव के प्रिय हैं और उनकी रक्षा करते हैं। यह भी माना जाता है कि महाकाल के दर्शन करने से पहले काल भैरव की पूजा करने से ही महाकाल की कृपा प्राप्त होती है।काल भैरव को उज्जैन के महाकाल मंदिर के द्वारपाल के रूप में स्थापित किया गया है ताकि वे भक्तों की रक्षा करें और उन्हें भगवान महाकाल के दर्शन के योग्य बनाएं। यही कारण है कि काल भैरव को महाकाल का द्वारपाल कहा जाता है।
🌤️*विशेष -
*एकादशी व्रत के लाभ*
*27 सितम्बर 2024 शुक्रवार को दोपहर 01:19:44 से 28 सितम्बर, शनिवार को दोपहर 02:49:17 तक एकादशी है।*
🌤️*विशेष - 28 सितम्बर, शनिवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखे।*
*जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।*
🌤️*जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।*
🌤️ *एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं ।इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है ।*
🌤️*धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है ।*
🌤️ *कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है ।*
* श्राद्ध विशेष*
*पितृपक्ष में श्राद्ध में इसका पाठ जरूर करें।*
।। स्वधा स्तोत्र ।।
(हिंदीअर्थ सहित)
पितृपक्ष में श्राद्ध में इसका पाठ जरूर करें। या केवल तीन बार स्वधा, स्वधा, स्वधा बोलें, इतने से ही सौ श्राद्धों के समान पुण्य फल मिलता है।
ब्रह्मोवाच।
स्वधोच्चारणमात्रेण तीर्थस्नायी भवेन्नर:।
मुच्यते सर्वपापेभ्यो वाजपेयफलं लभेत्।।१।।
स्वधा स्वधा स्वधेत्येवं यदि वारत्रयं स्मरेत्।
श्राद्धस्य फलमाप्नोति कालस्य तर्पणस्य च।।२।।
श्राद्धकाले स्वधास्तोत्रं य: श्रृणोति समाहित:।
लभेच्छ्राद्धशतानां च पुण्यमेव न संशय:।।३।।
स्वधा स्वधा स्वधेत्येवं त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
प्रियां विनीतां स लभेत्साध्वीं पुत्रं गुणान्वितम्।।४।।
पितृणां प्राणतुल्या त्वं द्विजजीवनरूपिणी।
श्राद्धाधिष्ठातृदेवी च श्राद्धादीनां फलप्रदा।।५।।
बहिर्गच्छ मन्मनस: पितृणां तुष्टिहेतवे।
सम्प्रीतये द्विजातीनां गृहिणां वृद्धिहेतवे।।६।।
नित्या त्वं नित्यस्वरूपासि गुणरूपासि सुव्रते।
आविर्भावस्तिरोभाव: सृष्टौ च प्रलये तव।।७।।.
ऊँ स्वस्तिश्च नम: स्वाहा स्वधा त्वं दक्षिणा तथा।
निरूपिताश्चतुर्वेदे षट् प्रशस्ताश्च कर्मिणाम्।।८।।
पुरासीस्त्वं स्वधागोपी गोलोके राधिकासखी।
धृतोरसि स्वधात्मानं कृतं तेन स्वधा स्मृता।।९।।
इत्येवमुक्त्वा स ब्रह्मा ब्रह्मलोके च संसदि।
तस्थौ च सहसा सद्य: स्वधा साविर्बभूव ह।।१०।।
तदा पितृभ्य: प्रददौ तामेव कमलाननाम्।
तां सम्प्राप्य ययुस्ते च पितरश्च प्रहर्षिता:।।११।।
स्वधास्तोत्रमिदं पुण्यं य: श्रृणोति समाहित:।
स स्नात: सर्वतीर्थेषु वेदपाठफलं लभेत्।।१२।।
अर्थ-
ब्रह्मा जी बोले- ‘स्वधा’ शब्द के उच्चारण से मानव तीर्थ स्नायी हो जाता है। वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर वाजपेय यज्ञ के फल का अधिकारी हो जाता है।
अर्थ-
स्वधा, स्वधा, स्वधा- इस प्रकार यदि तीन बार स्मरण किया जाए तो श्राद्ध, काल और तर्पण के फल पुरुष को प्राप्त हो जाते हैं।
अर्थ-
श्राद्ध के अवसर पर जो पुरुष सावधान होकर स्वधा देवी के स्तोत्र का श्रवण करता है, वह सौ श्राद्धों का पुण्य पा लेता है, इसमें संशय नहीं है।
अर्थ-
जो मानव स्वधा, स्वधा, स्वधा- इस पवित्र नाम का त्रिकाल सन्ध्या समय पाठ करता है, उसे विनीत, पतिव्रता एवं प्रिय पत्नी प्राप्त होती है तथा सद्गुण संपन्न पुत्र का लाभ होता है।
अर्थ-
देवि! तुम पितरों के लिए प्राणतुल्य और ब्राह्मणों के लिए जीवनस्वरूपिणी हो। तुम्हें श्राद्ध की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। तुम्हारी ही कृपा से श्राद्ध और तर्पण आदि के फल मिलते हैं।
अर्थ-
तुम पितरों की तुष्टि, द्विजातियों की प्रीति तथा गृहस्थों की अभिवृद्धि के लिए मुझ ब्रह्मा के मन से निकलकर बाहर जाओ।
अर्थ-
सुव्रते! तुम नित्य हो, तुम्हारा विग्रह नित्य और गुणमय है। तुम सृष्टि के समय प्रकट होती हो और प्रलयकाल में तुम्हारा तिरोभाव हो जाता है।
अर्थ-
तुम ऊँ, नम:, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा एवं दक्षिणा हो। चारों वेदों द्वारा तुम्हारे इन छ: स्वरूपों का निरूपण किया गया है, कर्मकाण्डी लोगों में इन छहों की मान्यता है।
अर्थ-
हे देवि! तुम पहले गोलोक में ‘स्वधा’ नाम की गोपी थी और राधिका की सखी थी, भगवान कृष्ण ने अपने वक्ष: स्थल पर तुम्हें धारण किया इसी कारण तुम ‘स्वधा’ नाम से जानी गई।
अर्थ-
इस प्रकार देवी स्वधा की महिमा गाकर ब्रह्मा जी अपनी सभा में विराजमान हो गए। इतने में सहसा भगवती स्वधा उनके सामने प्रकट हो गई।
अर्थ-
तब पितामह ने उन कमलनयनी देवी को पितरों के प्रति समर्पण कर दिया। उन देवी की प्राप्ति से पितर अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने लोक को चले गए।
अर्थ-
यह भगवती स्वधा का पुनीत स्तोत्र है। जो पुरुष समाहित चित्त से इस स्तोत्र का श्रवण करता है, उसने मानो सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान कर लिया और वह वेद पाठ का फल प्राप्त कर लेता है।
।। इति श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणे प्रकृतिखण्डे ब्रह्माकृतं स्वधास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
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*रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश प्रेम शर्मा नागौर (राजस्थान)*
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