🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
*⛅दिनांक-25सितम्बर 2024*
*⛅दिन - बुधवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शरद*
*⛅मास - आश्विन*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - अष्टमी दोपहर 12:10:08तक तत्पश्चात नवमी*
*⛅नक्षत्र - आद्रा रात्रि10:22:38 तक तत्पश्चात पुनर्वसु*
*⛅योग वरियान रात्रि24:16:25 तक पश्चात परिघ*
*⛅चन्द्र राशि~ मिथुन *
*⛅सूर्य राशि~कन्या*
*⛅सूर्योदय~ 06:26:08*
*⛅सूर्यास्त~ 06:26:38*
*⛅राहु काल_हर जगह का अलग है- प्रातः 12:26 से दोपहर 01:56 तक*
*⛅दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:59 से 05:37 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - कोई नही*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:03 सितम्बर 26 से रात्रि 12:51 सितम्बर 26 तक*
*⛅चोघडिया, दिन⛅*
लाभ 06:26 - 07:56 शुभ
अमृत 07:56 - 09:26 शुभ
काल 09:26 - 10:56 अशुभ
शुभ 10:56 - 12:26 शुभ
रोग 12:26 - 13:56 अशुभ
उद्वेग 13:56 - 15:27 अशुभ
चर 15:27 - 16:57 शुभ
लाभ 16:57 - 18:27 शुभ
*⛅चोघडिया, रात⛅*
उद्वेग 18:27 - 19:57 अशुभ
शुभ 19:57 - 21:27 शुभ
अमृत 21:27 - 22:57 शुभ
चर 22:57 - 24:27 शुभ
रोग 24:27 - 25:57 अशुभ
काल 25:57 - 27:27 अशुभ
लाभ 27:27 - 28:57 शुभ
उद्वेग 28:57 - 30:27 अशुभ
भारतवर्ष में प्रत्येक दिन किसी न किसी महत्व से जुड़ा होता है. यहां मौजूद तिथि, नक्षत्र और दिनों का मेल होने पर कोई उत्सव, व्रत-त्यौहार इत्यादि संपन्न होते हैं. इन सभी का मेल एक उत्साह ओर विश्वास के साथ भक्ति और शक्ति के प्रतिबिंब को दर्शाने वाला होता है. इसी में एक व्रत आता है बुधाष्टमी व्रत.
बुधाष्टमी व्रत, जानें बुधाष्टमी पूजा विधि और कथा
बुधाष्टमी व्रत को बुधवार के दिन अष्टमी तिथि के पड़ने पर किया जाता है. परंतु विशेषता इस बार आश्विन मास में बुध अष्टमी आने के कारण इस व्रत को महालक्ष्मी पूजन से भी जोड़ा गया है और वैसे देखा जाए तो इसको जितिया व्रत के नाम से भी पुकारा जाता है यानी जीत का प्रतीक।
श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया गया बुधाष्टमी व्रत जीवन में सुख को लाता है. इसके अतिरिक्त मृत्यु पश्चात मोक्ष को प्र्दान करने में भी सहायक बनता है. कुछ मान्यताओं के अनुसार यह व्रत धर्मराज के निमित्त भी किया जाता है. बुध अष्टमी का व्रत करने वाले व्यक्ति को मृत्यु के पश्चात नरक की यातना नहीं झेलनी पड़ती है. व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है. उसके जीवन में शुभता आती है.
बुधाष्टमी पर्व
बुधाष्टमी का पर्व पौराणिक और लोक कथाओं के साथ जुडा़ हुआ है. बुध अष्टमी का उपवास करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर जाते हैं और पाप नष्ट हो जाते हैं. हमारे शास्त्रों में अष्टमी तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है. जिस बुधवार के दिन अष्टमी तिथि पड़ती है उसे बुध अष्टमी कहा जाता है. बुध अष्टमी के दिन सभी लोग विधिवत बुद्धदेव और सूर्य देव की पूजा अर्चना करते हैं. मान्यताओं के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में बुध कमजोर होता है उनके लिए बुध अष्टमी का व्रत बहुत ही फलदायी होता है.
अष्टमी तिथि का हिंदु पंचांग में बहुत महत्व रहा है. यह चन्द्र पक्ष के दो समय पर आती है. एक शुक्ल पक्ष के समय और दूसरी कृष्ण पक्ष के समय. इन दोनों ही समय पर बुधवार का संयोग इसे और भी शुभता देता है. यह तिथि प्रत्येक माह में दो बार आती है. जो अष्टमी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है, उस दिन बुधवार का समय होने पर बुधाष्टमी का पर्व अत्यंत शुभदायक होता है. शुक्ल पक्ष की अष्टमी के स्वामी भगवान शिव है. इसके साथ ही यह तिथि जया तिथियों की श्रेणी में आती है. इस कारण से ये बहुत ही शुभ मानी गयी है.
बुधाष्टमी दिलाता है विजय
बुधाष्टमी पर्व विजय की प्राप्ति के लिए बहुत ही उपयोगी होता है. यह व्रत उन कार्यों में सफलता दिलाने में बहुत सहायक बनता है जिनमें व्यक्ति को साहस और शौर्य की अधिक आवश्यकता होती है. धर्मराज, माँ दुर्गा और भगवान शिव की शक्ति के लिए भी बुधाष्टमी का व्रत बहुत महत्व होता है. इस व्रत की ऊर्जा का प्रवाह व्यक्ति को जीवन शक्ति और विपदाओं से आगे बढ़ने की क्षमता देता है. जिस पक्ष में बुधाष्टमी का अवसर हो उस दिन यह सिद्धि का योग बनाता है.
बुध अष्टमी तिथि में किसी पर विजय प्राप्ति करना उत्तम माना गया है. यह विजय दिलाने वाली तिथि है, इस कारण जिन भी चीजों में व्यक्ति को सफलता चाहिए वह सभी काम इस तिथि में करे तो उसे सकारात्मक फल मिल सकते हैं. यह दिन बुरे कर्मों के बंधन को दूर करता है. इस दिन लेखन कार्य, घर इत्यादि वास्तु से संबंधित काम, शिल्प निर्माण से संबंधी काम, अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले काम का आरम्भ भी सफलता देने वाला होता है.
बुध अष्टमी पूजन विधि-
बुध अष्टमी का व्रत करने के लिए पहले से ही सभी तैयारियों को कर लेना भी सही होता है. व्रत के पहले दिन व्रती को चाहिए कि वह सात्विकता और आध्यात्मिकता का आचरण करना चाहिए. बुधअष्टमी के दिन व्रती को चाहिए की वह ब्रह्म मुहूर्त समय पर उठना चाहिए. प्रातः काल उठकर स्नान कार्य करना चाहिए. यदि संभव हो सके तो इस दिन किसी पवित्र नदी या सरोवर इत्यादि में स्नान करना चाहिए. पर अगर ये संभव न हो सके तो घर पर ही स्नान कार्य करना चाहिए. घर पर अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करना गंगा स्नान जैसा फल दिलाने वाला होता है. अपने नित्य कार्यों को कर लेने के बाद व्रती को पूजा का संकल्प लेना चाहिए.
पूजा स्थान पर एक पानी से भरा कलश स्थापित करना चाहिए. कलश के पानी में गंगाजल भरना चाहिए. इस कलश को घर के पूजा स्थान में स्थापित करना उत्तम होता है.बुधाष्टमी के दिन बुध देव व बुध ग्रह का पूजन किया जाता है. पूजा में बुधाष्टमी कथा का पाठ भी करना उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है.
भक्त को चाहिए की इस दिन व्रत का संकल्प भी धारण करे. बुधाष्टमी के व्रत के अवसर पर संपूर्ण दिन मानसिक, वाचिक और आत्मिक शुद्धि का पालन करना चाहिए. इस भगवान के समक्ष धूप-दीप, पुष्प, गंध इत्यादि को अर्पित करना चाहिए. भगवान को विभिन्न पकवान और मेवे फल इत्यादि का अर्पित करने चाहिए. बुध भगवान की पूजा विधिवत तरीके से संपन्न करनी चाहिए. पूजा अर्चना करने के पश्चात भगवान बुध देव को को भोग लगाना चाहिए. पूजा समाप्ति के बाद भगवान का प्रसाद सभी लोगों में वितरित करना चाहिए.
बुध अष्टमी व्रत कथा और महत्व
कई जगहों पर बुध अष्टमी के दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा होती है. श्री विष्णु भगवान का पूजन, श्री गणेश जी का पूजन भी किया जाता है. इस दिन घर को अच्छी तरह से साफ सुथरा करके इष्ट देव की पूजा करनी चाहिए. शास्त्रों के अनुसार बुध अष्टमी के दिन भगवान की पूजा करना जीवन में सकारात्मकता और शुभता लाने वाला माना जाता है.
बुधाष्टमी की कथा का संबंध वैवस्वत मनु से भी संबंधित बतायी गयी है. इसके अनुसार मनु के दस पुत्र हुए और एक पुत्री इला हुई थी. इला बाद में पुरुष बन गयी थी. इला के पुरुष बनने की कथा इस प्रकार रही कि मनु ने पुत्र की कामना से मित्रावरुण नामक यज्ञ किया. पर उस प्रभाव से पुत्री की प्राप्ति हुई. कन्या का नाम इला रखा गया.
इला को मित्रावरुण ने उसे अपने कुल की कन्या और मनु का पुत्र इल होने का वरदान दिया था. एक बार राजा इल एक शिकार का पीछा करते हुए, ऎसे स्थान में जा पहुंचे जिसे भग्वान शिव और पार्वती ने वरदान दिया था की उस स्थान में जो भी प्रवेश करेगा वह स्त्री रुप में हो जाएगा. उस प्रभाव के कारण वन में इल के प्रवेश करते ही वह स्त्री में बदल जाते हैं.
इला के सुंदर रुप को देख कर बुध उनसे प्रभावित हो जाते हैं. इला से विवाह कर लेते हैं. इला और बुध का विवाह के अवसर को बुधाष्टमी के रुप में मनाने की परंपरा रही.
*⛅|| सन्-2024/ श्राद्ध पक्ष ||*
*⛅ 18 सितंबर, बुधवार, पूर्णिमा से शुरू होकर 02 अक्टूबर, बुधवार अमावस्या को समाप्त होंगे।
*⛅पूर्णिमा, एकम 18 सितंबर, बुधवार,
*⛅द्वितीया, 19 सितम्बर, गुरुवार,
*⛅तृतीया, 20 सितम्बर, शुक्रवार,
*⛅चतुर्थी, 21 सितम्बर, शनिवार,
*⛅पंचमी, 22 सितम्बर, रविवार,
(दोपहर 15-43 तक )
*⛅षष्ठी, 23 सितम्बर, सोमवार,
(दोपहर 13-50 तक )
*⛅सप्तमी, 24 सितम्बर, मंगलवार,
( दोपहर 12-38 तक)
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(जो की आज से श्राद्ध है)
*⛅अष्टमी, 25 सितम्बर, बुधवार,
(दोपहर 12-10 तक)
*⛅नवमी, 25 सितम्बर, गुरुवार,
( दोपहर 12-25 तक)
*⛅दशमी, 27 सितम्बर, शुक्रवार,
(दोपहर 01-20 तक)
*⛅एकादशी, 28 सितम्बर, शनिवार,
(दोपहर 02-49 तक)
*⛅द्वादशी, 29 सितम्बर, रविवार,
*⛅त्रयोदशी, 30 सितम्बर, सोमवार,
*⛅चतुर्दशी, 01 अक्टूबर, मंगलवार,
*⛅अमावस्या, 02 अक्टूबर, बुधवार,
*⛅कुछ पंचांग (कैलेण्डरों) में सप्तमी का श्राद्ध 23 सितम्बर, दशमी का श्राद्ध 26 सितंबर व एकादशी का श्राद्ध 27 सितंबर को लिखा है। इसका कारण है कि इन महालय श्राद्धों का शास्त्रोक्त समय अपराह्णकाल होता है, जो कि इन दिनों में लगभग दोपहर 1-30 से 4:00 बजे तक रहेगा। यह समय देरी का होने के कारण राजस्थान क्षेत्र(उत्तर भारत) में सही नहीं बैठ पाता है। अत:उनको आप अपने समय अनुसार ही देखें।
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से एवं उचित माध्यमों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश प्रेम शर्मा नागौर (राजस्थान)*
*Mobile. 8387869068*
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