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पंचांग - 19-09-2024

 🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
*⛅दिनांक -19 सितम्बर 2024*
*⛅दिन - गुरुवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*

Jyotish

*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शरद*
*⛅मास - भाद्रपद*
*⛅पक्ष - कृष्ण पक्ष*
*⛅तिथि - द्वितीया रात्रि    12:39:18 तक तत्पश्चात तृतीया*
*⛅नक्षत्र - रेवती     04:14:06 am  तक तत्पश्चात अश्विनी*
*⛅योग - धृति प्रातः 07:48 तक तत्पश्चात ध्रुव प्रातः 03:17:21*
*⛅राहु काल_हर  जगह का अलग है- दोपहर 01:59 से शाम 03:31 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:23:26*
*⛅सूर्यास्त - 06:33:23*

*⛅दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:48 से 05:38 तक*
*⛅अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:04 से दोपहर 12:53 तक*
सर्वार्थ सिद्धि योग    08:04 ए एम से 06:23 ए एम, सितम्बर 20*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:05 सितम्बर 20 से रात्रि 12:53 सितम्बर 20 तक*
*व्रत पर्व विवरण - गणेश विसर्जन, अनंत चतुर्दशी, महालय श्राद्ध आरम्भ*
      *⛅चोघडिया, दिन⛅*
शुभ    06:23 - 07:55    शुभ
रोग    07:55 - 09:26    अशुभ
उद्वेग    09:26 - 10:57    अशुभ
चर    10:57 - 12:28    शुभ
लाभ    12:28 - 13:59    शुभ
अमृत    13:59 - 15:31    शुभ
काल    15:31 - 17:02    अशुभ
शुभ    17:02 - 18:34    शुभ
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*⛅श्राद्ध पक्ष के समय क्यों नहीं किए जाते हैं शुभ कार्य ?
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श्राद्ध पितृत्व के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। सनातन धर्मानुसार प्रत्येक शुभ कार्य के आरंभ करने से पहले में मां-बाप तथा पितृगण को प्रणाम करना हमारा धर्म है। क्योंकि हमारे पुरखों की वंश परंपरा के कारण ही हम आज जीवित रहे हैं। सनातन धर्म के मतानुसार हमारे ऋषिमुनियों ने हिंदू वर्ष में सम्पादित 24 पक्षों में से एक पक्ष को पितृपक्ष अर्थात श्राद्धपक्ष का नाम दिया। पितृपक्ष में हम अपने पितृगण का श्राद्धकर्म, अर्ध्य, तर्पणतथा पिण्डदान के माध्यम से विशेष क्रिया संपन्न करते हैं। धर्मानुसार पितृगण की आत्मा को मुक्ति तथा शांति प्रदान करने हेतु विशिष्ट कर्मकाण्ड को 'श्राद्ध' कहते हैं।
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श्राद्धपक्ष में शुभकार्य वर्जित क्यों: हमारी संस्कृति में श्राद्ध का संबंध हमारे पूर्वजों की मृत्यु की तिथि से है। अतः श्राद्धपक्ष शुभ तथा नए कार्यों के प्रारंभ हेतु अशुभ काल माना गया है। जिस प्रकार हम अपने किसी परिजन की मृत्यु के बाद शोकाकुल अवधि में रहते हैं तथा शुभ, नियमित, मंगल, व्यावसायिक कार्यों को एक समय अविधि तक के लिए रोक देते हैं। उसी प्रकार पितृपक्ष में भी शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। श्राद्धपक्ष की 16 दिनों की समय अवधि में हम अपने पितृगण से तथा हमारे पितृगण हमसे जुड़े रहते हैं। अत: शुभ-मांगलिक कार्यों को वंचित रखकर हम पितृगण के प्रति पूरा सम्मान व एकाग्रता बनाए रखते हैं।

*⛅धर्मशास्त्रों के मतानुसार पितृऋण: शास्त्रों के अनुसार मनुष्य योनी में जन्म लेते ही व्यक्ति पर तीन प्रकार के ऋण समाहित हो जाते हैं। इन तीन प्रकार के ऋणों में से एक ऋण है पितृऋण अत: धर्मशास्त्रों में पितृपक्ष में श्राद्धकर्म के अर्ध्य, तर्पण तथा पिण्डदान के माध्यम से पितृऋण से मुक्ति पाने का रास्ता बतलाया गया है।

*⛅पितृऋण से मुक्ति पाए बिना व्यक्ति का कल्याण होना असंभव है। शास्त्रानुसार पृथ्वी से ऊपर सत्य, तप, महा, जन, स्वर्ग, भुव:, भूमि ये सात लोक माने गए हैं। इन सात लोकों में से भुव: लोक को पितृलोक माना गया है।

*⛅ श्राद्धपक्ष की सोलह दिन की अवधी में पितृगण पितृलोक से चलकर भूलोक को आ जाते हैं। इन सोलह दिन की समयावधि में पितृलोक पर जल का अभाव हो जाता है, अतः पितृपक्ष में पितृगण पितृलोक से भूलोक आकार अपने वंशजो से तर्पण करवाकर तृप्त होते हैं। अतः यह विचारणीय विषय है कि जब व्यक्ति पर ऋण अर्थात कर्जा हो तो वो खुशी मनाकर शुभकार्य कैसे सम्पादित कर सकता है। पितृऋण के कारण ही पितृपक्ष में शुभकार्य नहीं किए जाते। पितृऋण से मुक्तिः शास्त्र कहते हैं की पितृऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध से बढ़कर कोई कर्म नहीं है। श्राद्धकर्म का अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में सर्वाधिक महत्व कहा गया है। इस समय सूर्य पृथ्वी के नजदीक रहते हैं, जिससे पृथ्वी पर पितृगण का प्रभाव अधिक पड़ता है इसलिए इस पक्ष में कर्म को महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों के अनुसार एक श्लोक इस प्रकार है।

एवं विधानतः श्राद्धं कुर्यात् स्वविभावोचितम्। आब्रह्मस्तम्बपर्यंतं जगत् प्रीणाति मानवः ॥

*⛅अर्थात् - जो व्यक्ति विधिपूर्वक श्राद्ध करता है, वह ब्रह्मा से लेकर घास तक सभी प्राणियों को संतृप्त कर देता है तथा अपने पूर्वजों के ऋण से मुक्ति पाता है। अतः स्वयं पर पितृत्व के कर्जों के मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।


*⛅विशेष - *🌹महालय श्राद्ध🌹*

🌹* 19 सितम्बर2024🌹*

*🔹महालय श्राद्ध या पितृ पक्ष एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तिथि से लेकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की तिथि तक मनाया जाता है, जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में पड़ता है।

महालय श्राद्ध के दौरान, लोग अपने पूर्वजों की आत्माओं को शांति और मोक्ष प्रदान करने के लिए विभिन्न अनुष्ठान और पूजाएं करते हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जो महालय श्राद्ध के बारे में जानने योग्य हैं:

1. पितृ पक्ष: महालय श्राद्ध को पितृ पक्ष भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पितरों का पक्ष।
2. श्राद्ध अनुष्ठान: इस त्योहार के दौरान, लोग अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं, जिसमें उनकी आत्माओं को भोजन, जल और अन्य आवश्यक वस्तुओं की पेशकश की जाती है।
3. तर्पण: तर्पण एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसमें जल और अन्य वस्तुओं को पूर्वजों की आत्माओं को अर्पित किया जाता है।
4. पिंड दान: पिंड दान एक अन्य महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसमें चावल, गेहूं और अन्य अनाजों को पूर्वजों की आत्माओं को अर्पित किया जाता है।
5. महालय अमावस्या: महालय अमावस्या महालय श्राद्ध का अंतिम दिन है, जो सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।

महालय श्राद्ध एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हमें अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता की भावना को बढ़ावा देता है।
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश प्रेम शर्मा नागौर (राजस्थान)*
*Mobile. 8387869068*
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🙏🌹
vipul

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