🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
*⛅दिनांक ~5 सितम्बर 2024*
*⛅दिन ~ गुरुवार*
*⛅विक्रम संवत् ~2081*
*⛅अयन ~दक्षिणायन*
*⛅ऋतु ~ शरद*
*⛅मास ~ भाद्रपद*
*⛅पक्ष ~ शुक्ल*
*⛅तिथि ~ द्वितीया दोपहर 12:20:45 तक तत्पश्चात तृतीया*
*⛅नक्षत्र ~ हस्त पूर्ण रात्रि तक*
*⛅योग ~ शुभ रात्रि 09:06:33 तक तत्पश्चात शुक्ल*
*⛅ करण कौलव~ 12:20:45*
*⛅राहु काल~हर जगह काअलग है~ दोपहर 02:07 से दोपहर 03:41 तक*
*⛅ चन्द्र राशि~ कन्या*
*⛅सूर्य राशि~ सिंह*
*⛅सूर्योदय ~ 06:17:08*
*⛅सूर्यास्त~ 06:49:3*(नागौर)
*⛅दिशा शूल ~दक्षिण दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त ~प्रातः 04:45 से प्रातः 05:30 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त ~ दोपहर 12:08 से 12:59 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त~ रात्रि 12:11 सितम्बर 06 से रात्रि 12:56 सितम्बर 06 तक*
*⛅चोघडिया, दिन⛅*
शुभ 06:17 - 07:51 शुभ
रोग 07:51 - 09:25 अशुभ
उद्वेग 09:25 - 10:59 अशुभ
चर 10:59 - 12:33 शुभ
लाभ 12:33 - 14:07 शुभ
अमृत 14:07 - 15:41 शुभ
काल 15:41 - 17:15 अशुभ
शुभ 17:15 - 18:50 शुभ
*⛅चोघडिया, रात⛅*
अमृत 18:50 - 20:16 शुभ
चर 20:16 - 21:42 शुभ
रोग 21:42 - 23:08 अशुभ
काल 23:08 - 24:34 अशुभ
लाभ 24:34 - 25:59 शुभ
उद्वेग 25:59 - 27:26 अशुभ
शुभ 27:26 - 28:52 शुभ
अमृत 28:52 - 30:18 शुभ
*⛅ व्रत पर्व विवरण - सर्वार्थसिद्धि योग (प्रातः 06:14 से प्रातः 06:23 तक), सामवेद उपकर्म, शिक्षक दिवस*
*⛅विशेष - द्वितीया को बृहती (छोटा बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध व तृतीया को परवल खाना शत्रु वृद्धि करता है |(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*⛅शिव का प्रतीक त्रिपुंड.*
त्रिपुंड का जो प्रतीक है वह एक अपने आप में अद्भुत संसार की पार ब्रह्म शक्ति के रूप में माना जाता है।
*⛅त्रिपुंड एक पवित्र संस्कार है जो हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। त्रिपुंड का अर्थ है तीन पुंड या तीन रेखाएं जो माथे पर लगाई जाती हैं। यह संस्कार आमतौर पर शैव सम्प्रदाय में किया जाता है।
*⛅त्रिपुंड की तीन रेखाएं अशुद्धता को दूर करने और आत्मा की शुद्धि के लिए मानी जाती हैं। यह संस्कार आमतौर पर शिव भक्ति के साथ जुड़ा होता है और शिव पूजा के दौरान किया जाता है।
*⛅त्रिपुंड के लाभ:
- आत्मा की शुद्धि
- अशुद्धता को दूर करना
- शिव भक्ति में वृद्धि
- आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि
*⛅त्रिपुंड कैसे लगाएं:
- त्रिपुंड लगाने से पहले माथे को साफ करें।
- त्रिपुंड की तीन रेखाएं माथे पर लगाएं।
- त्रिपुंड की रेखाएं अशुद्धता को दूर करने के लिए मानी जाती हैं।
- त्रिपुंड के बाद शिव पूजा करें।
*⛅आज कल देखा गया है, लोग ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने जाते है, और माथे पर त्रिपुंड लगवाते है, यह फैशन भी हो चला है, परन्तु यह क्रिया उचित तरीके से नही की जाति।
*⛅श्री त्रिपुण्ड रहस्य महापुराण कथा के अनुसार, त्रिपुंड में तीन रेखाएं होती है। जिसमें 27 देवी-देवताओं का निवास होता है।
पहली रेखा में नौ देवियों का निवास होता है।
दूसरी रेखा में नौ ग्रह यानी शनिदेव, सूर्य, गुरु, मंगल,चंद्रमा, बुध, शुक्र और राहु-केतु का वास होता है।
*⛅शिवलिंग पर बने त्रिपुण्ड् की तीन रेखाओं का रहस्य:
प्राय: साधु-सन्तों और विभिन्न पंथों के अनुयायियों के माथे पर अलग- अलग तरह के तिलक दिखाई देते हैं । तिलक विभिन्न सम्प्रदाय, अखाड़ों और पंथों की पहचान होते हैं । हिन्दू धर्म में संतों के जितने मत, पंथ और सम्प्रदाय है उन सबके तिलक भी अलग-अलग हैं । अपने-अपने इष्ट के अनुसार लोग तरह-तरह के तिलक लगाते हैं ।
*⛅शैव परम्परा का तिलक कहलाता है त्रिपुण्ड्र.....
भगवान शिव के मस्तक पर और शिवलिंग पर सफेद चंदन या भस्म से लगाई गई तीन आड़ी रेखाएं त्रिपुण्ड कहलाती हैं । ये भगवान शिव के श्रृंगार का हिस्सा हैं । शैव परम्परा में शैव संन्यासी ललाट पर चंदन या भस्म से तीन आड़ी रेखा त्रिपुण्ड् बनाते हैं ।
*⛅बीच की तीन अंगुलियों से भस्म लेकर भक्तिपूर्वक ललाट में त्रिपुण्ड लगाना चाहिए । ललाट से लेकर नेत्रपर्यन्त और मस्तक से लेकर भौंहों (भ्रकुटी) तक त्रिपुण्ड् लगाया जाता है
*⛅भस्म मध्याह्न से पहले जल मिला कर, मध्याह्न में चंदन मिलाकर और सायंकाल सूखी भस्म ही त्रिपुण्ड् रूप में लगानी चाहिए ।
*⛅त्रिपुण्ड् की तीन आड़ी रेखाओं का रहस्य .......
*⛅त्रिपुण्ड् की तीनों रेखाओं में से प्रत्येक के नौ-नौ देवता हैं, जो सभी अंगों में स्थित हैं ।
1- पहली रेखा—गार्हपत्य अग्नि, प्रणव का प्रथम अक्षर अकार, रजोगुण, पृथ्वी, धर्म, क्रियाशक्ति, ऋग्वेद, प्रात:कालीन हवन और महादेव—ये त्रिपुण्ड्र की प्रथम रेखा के नौ देवता हैं ।
2-- दूसरी रेखा— दक्षिणाग्नि, प्रणव का दूसरा अक्षर उकार, सत्वगुण, आकाश, अन्तरात्मा, इच्छाशक्ति, यजुर्वेद, मध्याह्न के हवन और महेश्वर—ये दूसरी रेखा के नौ देवता हैं ।
3-- तीसरी रेखा—आहवनीय अग्नि, प्रणव का तीसरा अक्षर मकार, तमोगुण, स्वर्गलोक, परमात्मा, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तीसरे हवन और शिव—ये तीसरी रेखा के नौ देवता हैं ।
शरीर के बत्तीस, सोलह, आठ या पांच स्थानों पर त्रिपुण्ड लगाया जाता है
*⛅त्रिपुण्ड लगाने के बत्तीस स्थान.....
मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों नाक, मुख, कण्ठ, दोनों हाथ, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, दोनों पार्श्व भाग, नाभि, दोनों अण्डकोष, दोनों उरु, दोनों गुल्फ, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैर ।
*⛅त्रिपुण्ड् लगाने के सोलह स्थान....
मस्तक, ललाट, कण्ठ, दोनों कंधों, दोनों भुजाओं, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, नाभि, दोनों पसलियों, तथा पृष्ठभाग में ।
*⛅त्रिपुण्ड् लगाने के आठ स्थान.......
गुह्य स्थान, ललाट, दोनों कान, दोनों कंधे, हृदय, और नाभि ।
त्रिपुण्ड लगाने के पांच स्थान......
मस्तक, दोनों भुजायें, हृदय और नाभि।
इन सम्पूर्ण अंगों में स्थान देवता बताये गये हैं उनका नाम लेकर त्रिपुण्ड् धारण करना चाहिए ।
त्रिपुण्ड धारण करने का फल.......
👉इस प्रकार जो कोई भी मनुष्य भस्म का त्रिपुण्ड करता है वह छोटे-बड़े सभी पापों से मुक्त होकर परम पवित्र हो जाता है ।
👉उसे सब तीर्थों में स्नान का फल मिल जाता है । त्रिपुण्ड भोग और मोक्ष को देने वाला है ।
👉वह सभी रुद्र-मन्त्रों को जपने का अधिकारी होता है ।
वह सब भोगों को भोगता है और मृत्यु के बाद शिव-सायुज्य मुक्ति प्राप्त करता है ।
उसे पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता है ।
👉गौरीशंकर तिलक.....
👉कुछ शिव-भक्त शिवजी का त्रिपुण्ड लगाकर उसके बीच में माता गौरी के लिए रोली का बिन्दु लगाते हैं । इसे वे गौरीशंकर का स्वरूप मानते हैं ।
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश प्रेम शर्मा नागौर (राजस्थान)
Mobile. 8387869068
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