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नगीना नगरी नागौर में प्रथम बार विश्व कल्याणकारी, सर्वशांति दायक, महाप्रभाविक श्रीभक्तामर अभिषेक विधान भव्य अनुष्ठान का आयोजन

 नगीना नगरी नागौर में प्रथम बार विश्व कल्याणकारी, सर्वशांति दायक, महाप्रभाविक श्रीभक्तामर अभिषेक विधान भव्य अनुष्ठान का आयोजन

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नागौर,,,नगीना नगरी नागौर में प्रथम बार विश्व कल्याणकारी,सर्वशांति दायक, महाप्रभाविक श्री भक्तामर अभिषेक विधान भव्य अनुष्ठान का आयोजन कनक अराधना भवन में रोजाना सुबह 9 बजे से भक्तामर प्रसारिका खरतरगच्छ जैन साध्वी मृगावतीश्रीजी, सुप्रिया श्रीजी, नित्योदयाश्रीजी के सानिध्य में चल रहा है |
 जैन साध्वी मृगावतीश्रीजी ने ने कहा कि भक्तामर के रचयिता  मानतुंगाचार्य को  राजा भोज ने मजबूत लोहे के जंजीरों से बांधकर अड़तालीस कोठरियों में बंदी बनाकर  रखा साथ ही राजा भोज ने क्रोधावेश में आदेश दिया  बन्दीगृह  मजबूत पहरा लगाया जावे। सम्पूर्ण उज्जयनी नगरी में हा-हाकार मच गया, योगीराज मानतुंगाचार्य तीन दिन-रात 75 राजवंश वन्दीगृह में कायोत्सर्ग ध्यान में लीन रहे।
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चतुर्थ दिवस अपने राज ध्यान में हृदय कमल पर विराजे युगादि तीर्थंकर श्री ऋषभ जिनेन्द्र की अड़तालीस काव्य, जो ऋद्धि, मंत्र गर्भित थे, रचकर स्तवन किया।
।उस कारगार में भी  भगवान को साक्षात देखते हुए मुनि मानतुंग  उनकी स्तुति कर रहे हैं, कहते हैं - हे अनिमेष दर्शनीय प्रभु!। आपके जैसा दुनिया में दूसरा नहीं है।  आप जिस जननी के गर्भ में आये वह भी महानता को प्राप्त हो गया।  आप एक साथ तीन लोकों को प्रकाशित करने वाले हैं।   हे धरतीतल के आभूषण, तीन लोक के भगवान, संसार समुद्र के शोषक आप तो सचेतक हो। इस प्रकार भक्ति एवं शांत रस से अति उत्तम, अलंकारों से सज्जित बसंत तिलका छंद में जब मुनि मानतुंग की मधुर स्वर लहरी वातावरण में गूंजी तो न केवल 48 व्यंजन तड़-तड़ कर टूट गए बल्कि यह ऋद्धि-मंत्र सहित हमारी अलौकिक साधना के रूप में सामने आया।
ज्योंही स्तोत्र पूर्ण हुआ त्योंही हथकड़ी, बेड़ी और सारे  ताले टूट गए।
बंदीगृह के पट खुल गए। उपसर्ग दूर समझ मुनिराज बाहर निकल कर चबूतरे पर आ विराजे। यह देख कर पहरेदार बड़े चिंतित हुए उन्होंने बिना किसी से कहे सुने फिर से उसी तरह  बंदी गृह में चले गए। सेवकों ने मुनिराज के बाहर और  भीतर बिराजे की बात महाराजाधिराज भोज को  कही।  इस वृत्तांत से राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ, परन्तु यह विचार आया कि बंदीगृह की रक्षा में कुछ त्रुटि हो सकती है।  सेवकों को पुनःआदेश दिया – जाओ! अच्छी तरह से और सावधानी से बन्द करे ।
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पहरेदारों ने कहा कि वे पुनः वही दशा प्रकट करते हैं, जो सकल व्रती शासक बाहर निकलती है और सीधे राजसभा में ही जा पहुंचती है।महात्मा जी के दिव्य शरीर पर प्रभाव से राजा का हृदय कांप गया। उन्होंने कालिदास को कहा कि कविराज! मेरा आसन कंपित हो रहा है, मैं अब इस सिंहासन पर रुककर भी नहीं जा सकता। कालिदास ने उसी राजा को धैर्य बंधाया और  उसी समय योगासन में बैठकर कालिका स्तोत्र का ज्ञान कराया। जिसके प्रभाव से कालिका देवी अवतरित हुईं।
मुनिराज के निकट चक्रेश्वरी देवी के प्रत्यक्ष दर्शन नीचे दिये गये हैं। देवी चक्रेश्वरी की भव्य सौम्या और कालिका का विकराल प्रचंड रूप देखकर राजसभा चकित हो गईं। देवी चक्रेश्वरी ने कहा कि - कालिके! तू यहाँ क्यों आया? क्या अब तुने मुनि, महात्माओं पर उपसर्ग करने की ठानी है! अच्छा, देखो अब मैं तेरी कैसी दशा करता हूँ। प्रभावशालिनी चक्रेश्वरी की भुकुटी चढ़ी देखकर कुटिल कालिका कांप बनी। और नाना प्रकार से प्रार्थना करते हुए प्रार्थना की - हे माता! क्षमा करो, अब मैं ऐसी कृति कभी नहीं करूंगी। इस पर चक्रेश्वरी देवी ने काली को बहुत-सा धर्मोपदेश दिया और कहा कि - ''मैं श्री प्रभातदेव जिनेन्द्र की मुख्य सेविका हूं।'' उनकी भाव पूर्ण अक्षुण्ण भक्ति श्री मुनि मानतुंगाचार्य ने अडतालिस श्लोकों में की, मुझे बड़ी प्रशंसा हुई और मैंने ही राजा भोज के कारगार से बंधन मुक्त कर महात्मा मुनि मानतुंग को यहां स्थापित किया।  सभी समर्थकों के कार्यों को पूरा करना मेरा दायित्व है। कालिका ने मुनि श्री से क्षमा प्रार्थना की ओर अदृश्य हो गई।राजा भोज और कालिदास ने मुनिराज का प्रताप देखा क्षमा-याचना की और बड़ी भक्ति भाव की स्तुति। येगीश्वर मुनि मानतुंगाचार्य ने मौन त्याग कर उपदेशामृत की कामना की। राजा भोज ने मुनिराज से श्रावक व्रत के लिए और अपने राज्य में जैन धर्म के विशेष प्रचार एवं प्रसार को प्रभावित किया। श्रेष्ठ सुदत्त एवं जिनेन्द्र भक्त कवि धनंजय को भी जैन धर्म की प्रभावना से महान हर्ष हुआ।  रहस्यमय श्रद्धा एवं भक्ति के साथ किसी भी प्रकार की इच्छा लेकर ऋद्धि मंत्र सहित जप करता है, उसे न केवल अपनी मनोवांछित वस्तु प्राप्त होती है, बल्कि स्वर्ग एवं मोक्ष जैसा सुख भी मिलता है।भक्तमर्मन्त्रहीलिंग लोग" भक्तामर स्तोत्र की शक्ति से अपने पंखों की उड़ान का अन्वेषण करें और स्वास्थ्य, धन और खुशी प्राप्त करें।"
जैन साध्वी सुप्रिया श्रीजी ने संस्कृत में लिखें भक्तामर स्तोत्र के गाथा को हिन्दी में विस्तार से समझाया |
  खरतरगच्छ संघ के अध्यक्ष गौतम चन्द कोठारी ओर प्रवक्ता प्रदीप डागा ने बताया कि रविवार के भक्तामर स्त्रोत के लाभार्थी  विपिन विपुल डागा परिवार जयपुर वाले एंव देवीचंद चिराग खजांची परिवार ने लिया
 खरतरगच्छ श्री संघ के अध्यक्ष गौतम कोठारी ने कहा कि श्रीपाल, विजय राज कोठारी चैन्नई वाले, धनराज कोठारी बिकानेर वाले एंव नरेंद्र डागा नागपुर वालों का खरतरगच्छ श्री संघ की ओर से तिलक लगाकर एवं साफा,माला पहनाकर स्वागत किया गया | भक्तामर
इस अवसर पर स्त्री- पुरुष ओर बच्चे उपस्थित थे।।

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