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पंचांग - 22-08-2024

 🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
*⛅दिनांक - 22 अगस्त 2024*
*⛅दिन - गुरुवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*

jyotish

*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - वर्षा*
*⛅मास - भाद्रपद*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - तृतीया  13:45:31 तक तत्पश्चात चतुर्थी*
*⛅नक्षत्र -     उत्तरभाद्रपदा    रात्रि 22:04:34अगस्त 22 तक तत्पश्चात     रेवती*
*⛅योग - धृति    13:09:09 शाम तक तत्पश्चात शूल*
*⛅करण    विष्टि भद्र~    13:45:31*
*⛅राहु काल_हर जगह का अलग है- दोपहर 02:14 से दोपहर 03:51 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:10:55*
*⛅सूर्यास्त - 07:04:22*
*⛅चन्द्र राशि~       मीन    *
*⛅सूर्य राशि~       सिंह*
*⛅दिशा शूल - दक्षिण दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:41 से 05:25 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त -  12:12 पी एम से 01:04 पी एम*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:16 अगस्त 23 से रात्रि 01:00 अगस्त 23 तक*
    *⛅चोघडिया, दिन⛅*
शुभ    06:11 - 07:48    शुभ
रोग    07:48 - 09:24    अशुभ
उद्वेग    09:24 - 11:01    अशुभ
चर    11:01 - 12:38    शुभ
लाभ    12:38 - 14:14    शुभ
अमृत    14:14 - 15:51    शुभ
काल    15:51 - 17:28    अशुभ
शुभ    17:28 - 19:04    शुभ
    *⛅चोघडिया, रात ⛅*
अमृत    19:04 - 20:28    शुभ
चर    20:28 - 21:51    शुभ
रोग    21:51 - 23:15    अशुभ
काल    23:15 - 24:38    अशुभ
लाभ    24:38 - 26:01    शुभ
उद्वेग    26:01 - 27:25अशुभ
शुभ    27:25 - 28:48    शुभ
अमृत    28:48 - 30:11    शुभ
kundli


*⛅विशेष व्रत~ कजली एवं सातुड़ी तीज भगवान शिव और माता पार्वती से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद पाने के लिए कजरी तीज का व्रत किया जाता है, इसलिए इस दिन व्रती महिलाओं को बहुत सी खास बातों का ध्यान रखना चाहिए. कजरी तीज के दिन पति से झगड़ा और कलह-क्लेश भूल से भी ना करें. इस वर्ष कजरी तीज 22 अगस्त, गुरुवार को मनाई जा रही है*

*⛅विशेष -तृतीया को परमल खाना निषेध है, क्योंकि यह शत्रुओं की वृद्धि करता है।


 *⛅शरीर में अनेक साधारण और अनेक असाधारण अंग हैं। असाधारण अंग जिन्हें ‘मर्म स्थान’ कहते हैं, केवल इसलिए मर्म स्थान नहीं कहे जाते कि वे बहुत सुकोमल एवं उपयोगी होते हैं, वरन् इसलिए भी कहे जाते हैं कि इनके भीतर गुप्त आध्यात्मिक शक्तियों के महत्त्वपूर्ण केन्द्र होते हैं। इन केन्द्रों में वे बीज सुरक्षित रखे रहते हैं, जिनका उत्कर्ष, जागरण हो जाये तो मनुष्य कुछ से कुछ बन सकता है। उसमें आत्मिक शक्तियों के स्रोत उमड़ सकते हैं और उस उभार के फलस्वरूप वह ऐसी अलौकिक शक्तियों का भण्डार बन सकता है जो साधारण लोगों के लिए अलौकिक आश्चर्य से कम प्रतीत नहीं होती।

 *⛅ऐसे मर्मस्थलों में मेरुदण्ड या रीढ़ का प्रमुख स्थान है। यह शरीर की आधारशिला है। यह मेरुदण्ड छोटे- छोटे तैंतीस अस्थि खण्डों से मिलकर बना है।

 *⛅इस प्रत्येक खण्ड में तत्त्वदर्शियों को ऐसी विशेष शक्तियाँ परिलक्षित होती हैं, जिनका सम्बन्ध दैवी शक्तियों से है। देवताओं में जिन शक्तियों का केन्द्र होता है, वे शक्तियाँ भिन्न- भिन्न रूप में मेरुदण्ड के इन अस्थि खण्डों में पाई जाती हैं, इसलिए यह निष्कर्ष निकाला गया है कि मेरुदण्ड तैंतीस देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है। आठ वसु, बारह आदित्य, ग्यारह रुद्र, इन्द्र और प्रजापति इन तैंतीसों की शक्तियाँ उसमें बीज रूप से उपस्थित रहती हैं।
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 *⛅इस पोले मेरुदण्ड में शरीर विज्ञान के अनुसार नाडिय़ाँ हैं और ये विविध कार्यों में नियोजित रहती हैं। अध्यात्म विज्ञान के अनुसार उनमें तीन प्रमुख नाडिय़ाँ हैं- १. इड़ा, २. पिङ्गला, ३. सुषुम्ना। यह तीन नाडिय़ाँ मेरुदण्ड को चीरने पर प्रत्यक्ष रूप से आँखों द्वारा नहीं देखी जा सकतीं, इनका सम्बन्ध सूक्ष्म जगत् से है। यह एक प्रकार का विद्युत् प्रवाह है। जैसे बिजली से चलने वाले यन्त्रों में नेगेटिव और पोजेटिव, ऋण और धन धाराएँ दौड़ती हैं और उन दोनों का जहाँ मिलन होता है, वहीं शक्ति पैदा हो जाती है, इसी प्रकार इड़ा को नेगेटिव, पिङ्गला को पोजेटिव कह सकते हैं। इड़ा को चन्द्र नाड़ी और पिङ्गला को सूर्य नाड़ी भी कहते हैं। मोटे शब्दों में इन्हें ठण्डी- गरम धाराएँ कहा जा सकता है। दोनों के मिलने से जो तीसरी शक्ति उत्पन्न होती है, उसे सुषुम्ना कहते हैं। प्रयाग में गंगा और यमुना मिलती हैं। इस मिलन से एक तीसरी सूक्ष्म सरिता और विनिर्मित होती है, जिसे सरस्वती कहते हैं। इस प्रकार तीन नदियों से त्रिवेणी बन जाती है। मेरुदण्ड के अन्तर्गत भी ऐसी आध्यात्मिक त्रिवेणी है। इड़ा, पिङ्गला की दो धाराएँ मिलकर सुषुम्ना की सृष्टि करती हैं और एक पूर्ण त्रिवर्ग बन जाता है।

 *⛅यह त्रिवेणी ऊपर मस्तिष्क के मध्य केन्द्र से, ब्रह्मरन्ध्र से, सहस्रार कमल से सम्बन्धित और नीचे मेरुदण्ड का जहाँ नुकीला अन्त है, वहाँ लिङ्गं मूल और गुदा के बीच ‘सीवन’ स्थान की सीध में पहुँचकर रुक जाती है, यही इस त्रिवेणी का आदि- अन्त है।

 *⛅सुषुम्ना नाड़ी के भीतर एक और त्रिवर्ग है। उसके अन्तर्गत भी तीन अत्यन्त सूक्ष्म धाराएँ प्रवाहित होती हैं, जिन्हें वज्रा, चित्रणी और ब्रह्मनाड़ी कहते हैं। जैसे केले के तने को काटने पर उसमें एक के भीतर एक परत दिखाई पड़ती है, वैसे ही सुषुम्ना के भीतर वज्रा है, वज्रा के भीतर चित्रणी और चित्रणी के भीतर ब्रह्मनाड़ी है। यह ब्रह्मनाड़ी सब नाडिय़ों का मर्मस्थल, केन्द्र एवं शक्तिसार है। इस मर्म की सुरक्षा के लिए ही उस पर इतने परत चढ़े हैं।

 *⛅यह ब्रह्मनाड़ी मस्तिष्क के केन्द्र में- ब्रह्मरन्ध्र में पहुँचकर हजारों भागों में चारों ओर फैल जाती है, इसी से उस स्थान को सहस्रदल कमल कहते हैं। विष्णुजी की शय्या, शेषजी के सहस्र फनों पर होने का अलंकार भी इस सहस्रदल कमल से लिया गया है। भगवान् बुद्ध आदि अवतारी पुरुषों के मस्तक पर एक विशेष प्रकार के गुंजलकदार बालों का अस्तित्व हम उनकी मूर्तियों अथवा चित्रों में देखते हैं। यह इस प्रकार के बाल नहीं हैं, वरन् सहस्रदल कमल का कलात्मक चित्र है। यह सहस्रदल सूक्ष्म लोकों में, विश्वव्यापी शक्तियों से सम्बन्धित है। रेडियो- ट्रान्समीटर से ध्वनि विस्तारक तन्तु फैलाये जाते हैं जिन्हें ‘एरियल’ कहते हैं। तन्तुओं के द्वारा सूक्ष्म आकाश में ध्वनि को फेंका जाता है और बढ़ती हुई तरंगों को पकड़ा जाता है। मस्तिष्क का ‘एरियल’ सहस्रार कमल है। उसके द्वारा परमात्मसत्ता की अनन्त शक्तियों को सूक्ष्म लोक में से पकड़ा जाता है। जैसे भूखा अजगर जब जाग्रत् होकर लम्बी साँसें खींचता है, तो आकाश में उड़ते पक्षियों को अपनी तीव्र शक्तियों से जकड़ लेता है और वे मन्त्रमुग्ध की तरह खिंचते हुए अजगर के मुँह में चले जाते हैं, उसी प्रकार जाग्रत् हुआ सहस्रमुखी शेषनाग- सहस्रार कमल अनन्त प्रकार की सिद्धियों को लोक- लोकान्तरों से खींच लेता है। जैसे कोई अजगर जब क्रुद्ध होकर विषैली फुँफकार मारता है, तो एक सीमा तक वायुमण्डल को विषैला कर देता है, उसी प्रकार जाग्रत् हुए सहस्रार कमल द्वारा शक्तिशाली भावना तरंगें प्रवाहित करके साधारण जीव- जन्तुओं एवं मनुष्यों को ही नहीं, वरन् सूक्ष्म लोकों की आत्माओं को भी प्रभावित और आकर्षित किया जा सकता है। शक्तिशाली ट्रान्समीटर द्वारा किया हुआ अमेरिका का ब्राडकास्ट भारत में सुना जाता है। शक्तिशाली सहस्रार द्वारा निक्षेपित भावना प्रवाह भी लोक- लोकान्तरों के सूक्ष्म तत्त्वों को हिला देता है।

 *⛅अब मेरुदण्ड के नीचे के भाग को, मूल को लीजिये। सुषुम्ना के भीतर रहने वाली तीन नाडिय़ों में सबसे सूक्ष्म ब्रह्मनाड़ी मेरुदण्ड के अन्तिम भाग के समीप एक काले वर्ण के षट्कोण वाले परमाणु से लिपटकर बँध जाती है। छप्पर को मजबूत बाँधने के लिए दीवार में खूँटे गाड़ते हैं और उन खूँटों में छप्पर से सम्बन्धित रस्सी को बाँध देते हैं। इसी प्रकार उस षट्कोण कृष्ण वर्ण परमाणु से ब्रह्मनाड़ी को बाँधकर इस शरीर से प्राणों के छप्पर को जकड़ देने की व्यवस्था की गयी है।

 *⛅कूर्म से ब्रह्मनाड़ी के गुन्थन स्थल को आध्यात्मिक भाषा में ‘कुण्डलिनी’ कहते हैं। जैसे काले रंग का होने से आदमी का नाम कलुआ भी पड़ जाता है, वैसे ही कुण्डलाकार बनी हुई इस आकृति को ‘कुण्डलिनी’ कहा जाता है। यह साढ़े तीन लपेटे उस कू र्म में लगाये हुए है और मुँह नीचे को है। विवाह संस्कारों में इसी की नकल करके ‘‘भाँवर या फेरे’’ होते हैं। साढ़े तीन (सुविधा की दृष्टि से चार) परिक्रमा किये जाने और मुँह नीचा किये जाने का विधान इस कुण्डलिनी के आधार पर ही रखा गया है, क्योंकि भावी जीवन- निर्माण की व्यवस्थित आधारशिला, पति- पत्नी का कूर्म और ब्रह्मनाड़ी मिलन वैसा ही महत्त्वपूर्ण है जैसा कि शरीर और प्राण को जोडऩे में कुण्डलिनी का महत्त्व है।

 *⛅इस कुण्डलिनी की महिमा, शक्ति और उपयोगिता इतनी अधिक है कि उसको भली प्रकार समझने में मनुष्य की बुद्धि लडख़ड़ा जाती है। भौतिक विज्ञान के अन्वेषकों के लिये आज ‘परमाणु’ एक पहेली बना हुआ है। उसके तोडऩे की एक क्रिया मालूम हो जाने का चमत्कार दुनिया ने प्रलयंकर परमाणु बम के रूप में देख लिया। अभी उसके अनेकों विध्वंसक और रचनात्मक पहलू बाकी हैं। सर आर्थर का कथन है कि ‘‘यदि परमाणु शक्ति का पूरा ज्ञान और उपयोग मनुष्य को मालूम हो गया, तो उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं रहेगा। यह सूर्य के टुकड़े- टुकड़े करके उसेगर्द में मिला सकेगा और जो चाहेगा, वह वस्तु या प्राणी मनमाने ढंग से पैदा कर लिया करेगा। ऐसे- ऐसे यन्त्र उसके पास होंगे, जिनसे सारी पृथ्वी एक मुहल्ले में रहने वाली आबादी की तरह हो जायेगी। कोई व्यक्ति चाहे कहीं क्षण भर में आ जा सकेगा और चाहे जिससे जो वस्तु ले दे सकेगा तथा देश- देशान्तरों में स्थित लोगों से ऐसे ही घुल- मिलकर वार्तालाप कर सकेगा, जैसे दो मित्र आपस में बैठे- बैठे गप्पें लड़ाते रहते हैं।’’ जड़ जगत् के एक परमाणु की शक्ति का आकलन करने पर उसकी महत्ता को देखकर आश्चर्य की सीमा नहीं रहती। फिर चैतन्य जगत् का एक स्फुल्लिंग जो जड़ परमाणु की अपेक्षा अनन्त गुना शक्तिशाली है, कितना अद्भुत होगा, इसकी तो कल्पना कर सकना भी कठिन है।
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश प्रेम शर्मा नागौर (राजस्थान)
Mobile. 8387869068
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