🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
*⛅दिनांक - 21 अगस्त 2024*
*⛅दिन - बुधवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2081*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - वर्षा*
*⛅मास - भाद्रपद*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - द्वितीया शाम 17:06:14 तक तत्पश्चात तृतीया*
*⛅नक्षत्र - पूर्वभाद्रपद रात्रि 24:32:25 अगस्त 22 तक तत्पश्चात उत्तर भाद्रपद*
*⛅योग - सुकर्मा शाम 16:59:25 तक तत्पश्चात धृति*
*⛅राहु काल_हर जगह का अलग है- दोपहर 12:38 से दोपहर 02:15 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:10:26*
*⛅सूर्यास्त - 07:05:21*
*⛅चन्द्र राशि~ कुम्भ till 19:11:02*
*⛅चन्द्र राशि~ मीन from 19:11:02*
*⛅सूर्य राशि~ सिंह*
*⛅दिशा शूल - उत्तर दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:41 से 05:25 तक*
*⛅ अभिजीत मुहूर्त - कोई नहीं*
*⛅निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:16 अगस्त 22 से रात्रि 01:00 अगस्त 22 तक*
*⛅विशेष - द्वितीया को बृहती (छोटा बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*⛅कज्जली (सातुड़ी) तीज व्रत 22 अगस्त 2024 गुरुवार को होगी।*
*⛅चोघडिया, दिन⛅*
लाभ 06:10 - 07:47 शुभ
अमृत 07:47 - 09:24 शुभ
काल 09:24 - 11:01 अशुभ
शुभ 11:01 - 12:38 शुभ
रोग 12:38 - 14:15 अशुभ
उद्वेग 14:15 - 15:52 अशुभ
चर 15:52 - 17:28 शुभ
लाभ 17:28 - 19:05 शुभ
*⛅ चोघडिया, रात ⛅*
उद्वेग 19:05 - 20:29 अशुभ
शुभ 20:29 - 21:52 शुभ
अमृत 21:52 - 23:15 शुभ
चर 23:15 - 24:38* शुभ
रोग 24:38* - 26:01* अशुभ
काल 26:01* - 27:25* अशुभ
लाभ 27:25* - 28:48* शुभ
उद्वेग 28:48* - 30:11* अशुभ
*⛅यक्षिणियाँ ⛅* हिन्दू धर्म में कई जातियों का वर्णन है। ये तो हम सभी जानते हैं कि परमपिता ब्रह्मा ने ही पूरी सृष्टि का निर्माण किया। उसे सँभालने के लिए उन्होंने अपने मानस पुत्रों को प्रकट किया। उनमें से ही एक थे महर्षि मरीचि जो सप्तर्षियों में से एक थे। उनके पुत्र थे महर्षि कश्यप जिन्होंने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया और उनके ही संतानों से अनेकानेक जातियों का जन्म हुआ। महर्षि कश्यप से उत्पन्न जातियों के बारे में जानने के लिए यहाँ जाएँ।
*⛅ जातियों को भी कई प्रकार का माना गया है। इनमें से देवताओं का स्थान सबसे ऊँचा है और उनकी शक्तियां भी अपार मानी गयी हैं।
*⛅मृत्यु लोक में रहने वाले हम मानवों की शक्तियां सीमित हैं।
किन्तु कुछ ऐसी जातियां भी है जो देवताओं से नीची किन्तु मनुष्यों से बहुत अधिक शक्तिशाली मानी जाती हैं। यक्ष भी एक ऐसी ही जाति है।
इन्ही यक्षों की जो शक्ति हैं वो यक्षिणियाँ हैं।
*⛅ हालाँकि रामायण और पुराणों के अनुसार, यक्षों की उत्पत्ति राक्षसों के साथ स्वयं परमपिता ब्रह्मा से हुई थी। राक्षस वंश के बारे मे संक्षेप में कथा ये है कि जब ब्रह्मा जी ने जल की उत्पत्ति की तो उसकी रक्षा के लिए कुछ प्राणियों का निर्माण किया।
उनमें से ही पहले थे यक्ष एवं राक्षस।
*⛅ जब ब्रह्मा जी ने पूछा कि इस जल की रक्षा कौन करेगा तो *⛅ हेति और *⛅ प्रहेति नामक दो प्राणियों ने उसकी रक्षा का प्रण लिया और इसीलिए वे राक्षस कहलाये।
*⛅ ब्रह्मा जी से ही उत्पन्न एक अन्य जाति ने उस जल के यक्षण, अर्थात पूजा और वृद्धि का प्रण लिया और वे यक्ष कहलाये।
*⛅ हालाँकि प्रथम यक्ष कौन था इसके बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती। कुछ लोग कुबेर को प्रथम यक्ष मानते हैं किन्तु उनका जन्म बहुत बाद में हुआ।
*⛅ आगे चल कर इन्ही यक्षों की शक्तियां यक्षिणियां कहलाईं।
आगे चल कर जब कुबेर यक्षों के राजा और दिग्पाल बनें तो ये सभी यक्षिणियां उनकी अनुचरी बनी।
*⛅ आज भी यक्षिणियों को कुबेर की द्वारपाल के रूप में चित्रित किया जाता है। ये भगवान रूद्र की सेविकाएं भी हैं।
*⛅ ऐसी मान्यता है कि यक्षिणियों का निवास पृथ्वी पर और पृथ्वी के निकट के लोकों में ही होता है और वे इस पृथ्वी की सभी सम्पदाओं की रक्षा करती हैं।
*⛅ आम तौर पर लोग यक्षिणियों को भूत-प्रेत इत्यादि से जोड़ कर देखते हैं किन्तु ये सच नहीं है।
*⛅ यक्षिणी एक अलग ही जाति होती है जो अप्सराओं से मिलती जुलती लगती हैं, पर अप्सरा और यक्षिणी दोनों अलग हैं।
*⛅ ये अत्यंत सुन्दर, कामुक और आकर्षक देह वाली होती हैं और इनमें कई अलौकिक शक्तियां भी होती हैं।
*⛅ हिन्दू धर्म में वैसे तो असंख्य यक्षणियों का वर्णन हैं किन्तु उनमें से ३६ प्रमुख मानी जाती हैं। इन ३६ यक्षिणियों में से भी ८ सबसे प्रमुख हैं जिन्हे "अष्ट-यक्षिणी" कहा जाता है।
ये आठों मनुष्यों को वरदान या श्राप देने में सक्षम होती हैं।
*⛅ आम तौर पर यक्षिणियों को सौम्य, दयालु और अच्छे स्वभाव वाला बताया गया है जो मनुष्यों की सहायता करती हैं किन्तु हमारे ग्रंथों में कई बुरी यक्षिणियों के बारे में भी बताया गया है।
*⛅ अन्य यक्षिणियों की भांति ही ये भी अति शक्तिशाली होती हैं। अति सुन्दर होते हुए भी कई बुरी यक्षिणियां भयानक रूप में रहती हैं और मनुष्यों का अहित करती हैं।
*⛅ इन्ही बुरी यक्षिणियों को आम भाषा में "पिशाचिनी" कहा जाता है।
*⛅ यक्षिणियों का निवास स्थान वैसे तो पृथ्वी पर और किसी अन्य लोक में कहीं भी हो सकता है किन्तु पृथ्वी पर यक्षिणियों को अशोक के वृक्षों से बहुत मोह होता है और उनका स्थान अशोक के पेड़ पर या उसके नीचे माना जाता है।
*⛅ इसीलिए भारत में ऐसा कहा जाता है कि रात्रि में अशोक के पेड़ों के निकट नहीं जाना चाहिए।
*⛅ अशोक के पेडों के अतिरिक्त यक्षिणी पर्वतों, नदियों, तालाबों, वनों, पत्थरों अत्यादि कई स्थानों पर रह सकती है।
*⛅ ऐसा माना जाता है कि ये मनुष्यों के निकट नहीं रहती और उन्हें एकांतवास प्रिय होता है।
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश प्रेम शर्मा नागौर (राजस्थान)
Mobile. 8387869068
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