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पंचांग - 17-07-2024

 *🌤️ ~आज का पंचांग~🌤️*
🌤️  *दिनांक ~17  जुलाई 2024*
🌤️ *दिन ~  बुधवार*
🌤️ *विक्रम संवत ~ 2081 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार  2080)*
🌤️ *शक संवत ~1946*

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🌤️ *अयन ~ दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु ~ वर्षा ॠतु*
🌤️ *मास  ~आषाढ*
🌤️ *पक्ष ~ शुक्ल*
🌤️ *तिथि ~ एकादशी    21:02:17 शाम  तक तत्पश्चात  द्वादशी*
🌤️ *नक्षत्र  ~अनुराधा    27:11:42 तक तत्पश्चात         ज्येष्ठा*
🌤️ *योग ~     शुभ    07:02:52तक पश्चात शुक्ल*
🌤️ *करण    वणिज    08:53:43 पश्चात     बव*
🌤️ *चन्द्र राशि~      वृश्चिक*
🌤️ *सूर्य राशि~       कर्क    *
🌤️ *राहुकाल~हर जगह का अलग है- सुबह 12:41से सुबह 02:23 तक*
🌞 *सूर्योदय~05:52:38*
🌤️ *सूर्यास्त~ 19:29:43*
👉 *दिशाशूल - उत्तर दिशा मे*
🌤️ *ब्रह्म मुहूर्त    04:29 ए एम से 05:10 ए एम*
🌤️ *अभिजित मुहूर्त~    कोई नहीं*
🌤️ *निशिता मुहूर्त~    12:21 ए एम, जुलाई 18 से 01:02 ए एम, जुलाई 18*
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🌤️ *व्रत विशेष:गुरु प्रदोष व्रत  पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का आरंभ 18 जुलाई को रात 8:43:56 पीएम पर होगा और अगले दिन यानी 19 जुलाई 2024 को रात 07 बजकर 40:53 मिनट पर समाप्त होगा। इसलिए शिवपूजा के मुहूर्त को ध्यान में रखते हुए 18 जुलाई को ही प्रदोष व्रत रखा जाएगा।*


 *🌷~चोघडिया, दिन~🌷*
*लाभ    05:53 - 07:35    शुभ*
*अमृत    07:35 - 09:17    शुभ"
*काल    09:17 - 10:59    अशुभ*
*शुभ    10:59 - 12:41    शुभ*
*रोग    12:41 - 14:23    अशुभ*
*उद्वेग    14:23 - 16:05    अशुभ*
*चर    16:05 - 17:48    शुभ*
*लाभ    17:48 - 19:30    शुभ*

 *🌷~चोघडिया, रात~🌷*
*उद्वेग    19:30 - 20:48    अशुभ*
*शुभ    20:48 - 22:06    शुभ*
*अमृत    22:06 - 23:24    शुभ*
*चर    23:24 - 24:41    शुभ*
*रोग    24:41 - 25:59    अशुभ*
*काल    25:59 - 27:17    अशुभ*
*लाभ    27:17 - 28:35    शुभ*
*उद्वेग    28:35 - 29:53    अशुभ*
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        *🌷वेदों में 18 युद्ध कलाओं के विषयों पर मौलिक ज्ञान अर्जित है। प्राचीन वैदिक काल में आज के सभी तरह के आधुनिक अस्त्र-शस्त्र थे। इसका उल्लेख वेदों में मिलता है। उस काल की तकनीक आज के काल से भिन्न थी लेकिन अस्त्रों की मारक क्षमता उतनी ही थी जितनी कि आज के काल के अस्त्रों की है।*
      *🌷हालांकि ये किस तकनीक से संचालित होते थे, यह शोध का विषय हो सकता है, लेकिन यह तो तय था कि वे सभी दिव्यास्त्र मंत्रों की शक्ति से ही संचालित होते थे। अब सवाल यह उठता है कि कैसे?*

    *🌷 दो प्रकार के संहारक होते हैं:- 🌷*
  *🌷  अस्त्र और शस्त्र।🌷*
1.अस्त्र :
      'अस्त्र' उसे कहते थे, जो किसी मंत्र या किसी यंत्र द्वारा संचालित होते थे। मंत्र और यंत्र द्वारा फेंके जाने वाले अस्त्र बहुत ही भयानक होते थे। इनसे चारों तरफ हाहाकार मच जाता था।
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जैसे वर्तमान में यंत्र से फेंके जाने वाले अस्त्र तोप होती है।
  मंत्र से जैसे ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र, पर्जन्यास्त्र आदि।
 
 
2.शस्त्र :
     शस्त्र : हाथों से चलाए जाने के कारण इन्हें शस्त्र कहते हैं। शस्त्र दो प्रकार के होते थे यंत्र शस्त्र और हस्त शस्त्र।
    यंत्र शस्त्र के अंतर्गत शक्ति, तोमर, पाश, बाण सायक, शण, तीर, परिघ, भिन्दिपाल, नाराच आदि होते थे।
      हस्त शस्त्र के अंतर्गत ऋष्टि, गदा, चक्र, वज्र, त्रिशूल, असि, खंजर, खप्पर, खड्ग, चन्द्रहास, फरसा, मुशल, परशु, कुण्टा, शंकु, पट्टिश, वशि, तलवार, बरछा, बरछी, कुल्हाड़ा, चाकू, भुशुण्डी आदि।
         उक्त सभी से युद्ध लड़ा जाता था।
 
 
     *🌷 दिव्यास्त्रों की जानकारी :
      मंत्र द्वारा संचालित अस्त्रों को दिव्यास्त्र कहा जाता है।*
     प्राचीनकाल में दिव्यास्त्र चलाने की विद्या कुछ खास लोगों को ही सिखायी जाती थी।
      कर्ण ने ब्रह्मास्त्र चलाने के लिए परशुराम से शिक्षा ली थी। इस तरह द्रोणाचार्य ने कौरवों सहित पांचों पांडवों को शिक्षा दी थी।
 
 
     *🌷अस्त्रों के प्रमुख प्रकार :*
1. दिव्यास्त्र और 2. यांत्रिकास्त्र।

      1. दिव्यास्त्र :
     वे अस्त्र जो मंत्रों से चलाए जाते थे, उन्हें दिव्यास्त्र कहते हैं।
    ।प्रत्येक अस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मंत्र-तंत्र द्वारा उसका संचालन होता है।
     वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मांत्रिक-अस्त्र कहते हैं।
 
 
    *🌷 दिव्यास्त्रों के नाम :*
    1. आग्नेयास्त्र, 2. पर्जन्य, 3. वायव्य, 4. पन्नग, 5. गरूड़, 6. नारायणास्त्र, 7. पाशुपत, 8. ब्रह्मशिरा, 9. एकागिन्न 10. अमोघास्त्र और 11. ब्रह्मास्त्र।
      इसके अलावा कुछ ऐसे भयानक अस्त्र थे जो यंत्र या तंत्र से संचालित होते थे।
 
 
  *🌷 दिव्यास्त्रों का प्रभाव :*
       कहते हैं कि आग्नेयास्त्र से आसमान से अग्नि बरसती है तो पर्जन्य से भारी बारिश।
      इसी तरह वायव्य से आंधी और तूफान शुरू हो जाते थे।
     सभी अस्त्र शस्त्रों का प्रभाव इतना घातक था कि संपूर्ण युद्ध स्थल का वातावरण भयावह हो जाता था। इनसे बचना मुश्किल ही होता था।
   जो इन अस्त्रों की काट जानता था वही बच सकता था।
 
*🌷कैसे दिव्यास्त्रों को साधा जा सकता है?*
इसके लिए बहुत कठिन तप करना होता है। सर्वप्रथम पर व्रत, उपवास, ध्यान आदि करके मन को काबू में करने पांचों इंद्रियों को संचालित करने की शक्ति अर्जित की जाती है। जो व्यक्ति एकचित्त हो जाता है वही दिव्यास्त्र को प्राप्त करने की क्षमता रखता है। प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मंत्र, तंत्र और यंत्र के द्वारा उसका संचालन होता है। मंत्रों के बारे मे महादेवेन कीलितम में लिखा है कि आपके अन्दर योग्यता ,पात्रता और पवित्रता है तो मंत्र का प्रयोग आप कर सकते हैं अन्यथा नहीं।
 
*🌷 ब्रह्मास्त्र क्या है?*

           ब्रह्मास्त्र अचूक अस्त्र है, जो शत्रु और उसके पक्ष का नाश करके ही छोड़ता है। इसका प्रतिकार दूसरे ब्रह्मास्त्र से ही हो सकता है, अन्यथा नहीं।
        महर्षि वेदव्यास लिखते हैं कि जहां ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है वहां 12 वर्षों तक पर्जन्य वृष्टि (जीव-जंतु, पेड़-पौधे आदि की उत्पत्ति) नहीं हो पाती।'
इसका मतलब यह कि यह परमाणु बम जैसे है।
       रामायण काल में भी परमाणु अस्त्र छोड़ा गया था और महाभारत काल में भी।
       ब्रह्मास्त्र का प्रयोग महाभारत में अर्जुन और अश्वत्थामा के अलावा कर्ण जानता था। परन्तु अपने गुरु परशुराम के शाप के कारण कर्ण अपने अंत समय में इसके प्रयोग करने की विद्या भूल गया था।
ब्रह्मशिरा :
       इसकी शक्ति ब्रह्मास्त्र जैसी ही थी। यह एक महाविनाशकारी अस्त्र था। ब्रह्मशिरा का अर्थ होता है ब्रह्माजी के सिर। इसका प्रयोग महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण, गुरु द्रोण और अर्जुन ही जानते ते।
      अश्वत्थामा भी इसका प्रयोग करना जानता था लेकिन वह इसको वापस लेना नहीं जानता था। युद्ध के अंत में उसने क्रोधवश यह चला दिया था। जवाब में अर्जुन ने भी अश्वत्थामा पर ब्रह्मशिरा का प्रयोग कर दिया।

        परन्तु बाद में जब ऋषि मुनियों ने अर्जुन एवं अश्व्थामा को समझाया की इन दो महाविनाशकारी अस्त्रों के आपस में टकराने से पृथ्वी में प्रलय आ जाएगी तब अर्जुन ने इसे वापस ले लिया कुंति अश्वत्थामा ऐसा नहीं कर पाया और उसने इस अस्त्र को अर्जुन की पुत्रवधु उत्तरा के गर्भ की ओर मोड़ दिया। इससे उत्तरा का गर्भ मृत हो गया।
      भगवान श्री कृष्ण को अश्वत्थामा के इस कृत्य पर बहुत क्रोध आया।
     उन्होंने अश्वत्थामा तीन हजार वर्षों बीमारियों के साथ भटकने का शाप दे दिया। बाद में उन्होंने उत्तरा के गर्भ को फिर से जीवित भी कर दिया था।
 
*🌷 वासवी शक्ति:-*
      इसे अमोघ अस्त्र भी कहा जाता है।
      यह महाविनाशकारी अस्त्र इंद्र के पास था। इस अस्त्र की खासियत यह थी कि इसे एक बार ही प्रयोग किया जा सकता था और यह अचूक था।
      कर्ण को यह अस्त्र इंद्र ने कवच कुंडल के एवज में दिया था। कर्ण इस अस्त्र का प्रयोग अर्जुन पर करना चाहता था।
           परन्तु कर्ण को वासवी शक्ति अस्त्र का प्रयोग न चाहते हुई भी अपने मित्र दुर्योधन के कहने पर अति शक्तिशाली योद्धा घटोत्कच पर करना पड़ा।
 पाशुपत अस्त्र :-
 महादेव शिव का पाशुपत अस्त्र महाविनाशकारी अस्त्र है। इससे सम्पूर्ण विश्व का नाश कुछ ही पलो में हो सकता है।
   इस अस्त्र की खासियत यह है कि इसका प्रयोग केवल दुष्टों के वध के लिए ही किया जाता है अन्यथा यह अस्त्र पलटकर प्रयोग करने वाले को मार देता है।
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     *🌷 नारायणास्त्र:-*
    यह अस्त्र भी पाशुपतास्त्र के समान ही महाविनाशकारी है।
           नारायण अस्त्र से बचने का कोई उपाय नहीं है।
      यदि इस अस्त्र का प्रयोग एक बार किया जाता है तो समूर्ण संसार में कोई ऐसी शक्ति नहीं जो इसे रोक सके। इस अस्त्र को सिर्फ एक ही तरीके से रोका जा सकता है और वह है अपने सभी अस्त्र त्याग कर नर्मतापूर्वक अपने आप को समर्पित कर देना। क्योंकि यदि शत्रु कहीं भी होगा तो नारायणास्त्र उसे ढूढ़कर उसका वध कर ही देता है।
     केवल इसके सामने खुद को समर्पित कर देना ही इसके प्रभाव से बचने का उपाय है।
 
 
       इस तरह हमने देखा की दिव्यास्त्र कई तरह के होते हैं परन्तु इन्हें साधने के लिए खुद को तप में तपाना होता है।
    प्रत्येक दिव्यास्त्र को साधने के लिए वेदों में मंत्र दिए गए हैं। वेदों के वे मंत्र यहां नहीं दिए जा रहे हैं।
        यदि आप चाहते हैं कि आप भी दिव्यास्त्रों की शक्ति से संपन्न हो जाएं तो इसके लिए आपको वेद और उपनिषदों का गहन अध्ययन करना होगा।

  *🌷शस्त्र क्या होते हैं?*

     शस्त्र :
       हाथों से चलाए जाने के कारण इन्हें शस्त्र कहते हैं। शस्त्र दो प्रकार के होते थे यंत्र शस्त्र और हस्त शस्त्र। उस काल में युद्ध के दौरान शरीर के विभिन्न अंगों की रक्षा का उल्लेख भी मिलता है। उदाहरणार्थ शरीर के लिए चर्म तथा कवच का, सिर के लिए शिरस्त्राण और गले के लिए कंठत्राण इत्यादि का।
 
 
 *🌷  शस्त्र के सामान्य भाग:*
*1. काटने वाले शस्त्र, जैसे तलवार, परशु आदि।
2. भोंकने वाले शस्त्र, जैसे बरछा, त्रिशूल आदि।
3. कुंद शस्त्र, जैसे गदा, लट्ठ आदि।*
 
*यंत्र शस्त्र :*
   *यंत्र शस्त्र के अंतर्गत शक्ति, तोमर, पाश, बाण सायक, शण, तीर, परिघ, भिन्दिपाल, नाराच आदि होते थे।*
 
*हस्त्र शस्त्र :*
      *। हस्त शस्त्र के अंतर्गत ऋष्टि, गदा, चक्र, वज्र, त्रिशूल, असि, खंजर, खप्पर, खड्ग, चन्द्रहास, फरसा, मुशल, परशु, कुण्टा, शंकु, पट्टिश, वशि, तलवार, बरछा, बरछी, कुल्हाड़ा, चाकू, भुशुण्डी आदि। उक्त सभी से युद्ध लड़ा जाता था।
 
  *अस्त्र क्या होते हैं?*

       *'अस्त्र' उसे कहते थे, जो किसी मंत्र या किसी यंत्र द्वारा संचालित होते थे।*
   * ।।मंत्र और यंत्र द्वारा फेंके जाने वाले अस्त्र बहुत ही भयानक होते थे। इनसे चारों तरफ हाहाकार मच जाता था।  जैसे वर्तमान में यंत्र से फेंके जाने वाले अस्त्र तोप होती है।
  अस्त्र के सामान्य भाग:-*

*1. हाथ से फेंके जाने वाले अस्त्र, जैसे भाला, त्रिशुल आदि।
2. वे अस्त्र जो यंत्र द्वारा फेंके जाते हैं, जैसे बाण, गुलेल आदि।
3. वे अस्त्र जो मंत्र या तंत्र द्वारा फेंके जाते हैं, जैसे नारायाणास्त्र, पा‍शुपत ब्रह्मास्त्र आदि।
 यजुर्वेद के उपवेद धनुर्वेद में अस्त्र और शस्त्रों के संबंध में विस्तार से बताया गया है।*
     *अस्त्र शस्त्रों के संबंध में धनुर्वेद, धनुष-चन्द्रोदय और धनुष-प्रदीप इन 3 प्राचीन ग्रंथों का अक्सर जिक्र होता है।*
    *।।  अग्नि पुराण में धनुर्वेद के विषय में उल्लेख किया गया है कि उसमें अस्त्रों के प्रमुख 4 भाग बताए गए हैं-*
* 1. अमुक्ता, 2. मुक्ता, 3. मुक्तामुक्त और 4. मुक्तसंनिवृत्ती।*
 
 
*अमुक्ता : अमुक्ता को शस्त्रों की श्रेणी में रखा गया है। ये वे शस्त्र होते थे, जो फेंके नहीं जा सकते थे। अमुक्ता के 2 प्रकार हैं- 1. हस्त-शस्त्र : हाथ में पकड़कर आघात करने वाले हथियार जैसे तलवार, गदा आदि। 2. बाहू-युद्ध : नि:शस्त्र होकर युद्ध करना।*
 
 
* मुक्ता : मुक्ता को अस्त्रों की श्रेणी में रखा गया, जो फेंके जा सकते थे। मुक्ता के 2 प्रकार हैं:- *
*1. पाणिमुक्ता : अर्थात हाथ से फेंके जाने वाले अस्त्र जैसे भाला और*
*2. यंत्रमुक्ता : अर्थात यंत्र द्वारा फेंके जाने वाले अस्त्र जैसे बाण, जो धनुष से फेंका जाता है।*
 
*मुक्तामुक्त : हाथ में पकड़कर किंतु अस्त्र की तरह प्रहार करने वाले शस्त्र जैसे कि बर्छी, त्रिशूल आदि। अर्थात वे शस्त्र जो फेंककर या बिना फेंके दोनों प्रकार से प्रयोग किए जाते थे।*
 
 
* मुक्तसंनिवृत्ती : वे शस्त्र जो फेंककर लौटाए जा सकते थे, जैसे चक्र आदि।*
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
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