🌤️ ~आज का पंचांग~🌤️
🌤️ *दिनांक -15 जुलाई 2024*
🌤️ *दिन - सोमवार*
🌤️ *विक्रम संवत - 2081 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2080)*
🌤️ *शक संवत -1946*
🌤️ *अयन - दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु - वर्षा ॠतु*
🌤️ *मास - आषाढ*
🌤️ *पक्ष - शुक्ल*
🌤️ *तिथि - नवमी 07:18:46 शाम तक तत्पश्चात दशमी*
🌤️ *नक्षत्र - स्वाति 24:28:48 तक तत्पश्चात विशाखा*
🌤️ *योग - सिद्ध 06:58:39 तक पश्चात साध्य*
करण बालव 06:26:20पश्चात तेतूल*
🌤️ *राहुकाल-हर जगह का अलग है- सुबह 09:25 से सुबह 11:05 तक*
🌞 *सूर्योदय-05:51:38*
🌤️ *सूर्यास्त- 19:30:22*
👉 *दिशाशूल - पूर्व दिशा मे*
🚩 *व्रत पर्व विवरण-
💥 *विशेष - *अष्टमी के दिन व्रत रखते समय इन चीज़ों का सेवन नहीं करना चाहिए:
*🌷~चोघडिया, दिन~🌷*
अमृत 05:52 - 07:34 शुभ
काल 07:34 - 09:16 अशुभ
शुभ 09:16 - 10:59 शुभ
रोग 10:59 - 12:41 अशुभ
उद्वेग 12:41 - 14:23 अशुभ
चर 14:23 - 16:06 शुभ
लाभ 16:06 - 17:48 शुभ
अमृत 17:48 - 19:30 शुभ
*🌷~चोघडिया,रात~🌷*
चर 19:30 - 20:48 शुभ
रोग 20:48 - 22:06 अशुभ
काल 22:06 - 23:24 अशुभ
लाभ 23:24 - 24:41* शुभ
उद्वेग 24:41* - 25:59* अशुभ
शुभ 25:59* - 27:17* शुभ
अमृत 27:17* - 28:34* शुभ
चर 28:34* - 29:52* शुभ
*🌷 स्वरोदय विज्ञान 🌷*
*🌷स्वरोदय विज्ञान अपने आप में एक सम्पूर्ण विज्ञान है। स्वरोदय अर्थात नासिका के छिद्रों से ग्रहण किया जाने वाला श्वास जो कि वायु की शक्ल में होता है। विज्ञान अर्थात जॅहा पर किसी विषय की गूढ़तम बातें एंव प्रयोग कहे जाते है।
*🌷ध्वनिविज्ञान को स्वर-विज्ञान के नाम से जाना जाता है।
योग में यह एक नासिका से वायु का निरंतर प्रवाह भी है।
*🌷स्वर एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ ध्वनि या नोट है।
तीन मुख्य स्वर हैं:*
1. इड़ा नाड़ी या बायां स्वर (नाड़ी शरीर में प्राणिक ऊर्जा का प्रवाह है),
2. पिंगला नाड़ी या दायां स्वर और
3. सुषुम्ना या तीसरा स्वर।
प्रत्येक स्वर (बाएं और दाएं) 60 मिनट में बदलता है -
एक स्वर संबंधित व्यक्ति पर निर्भर करते हुए लगभग 1 से 1.5 घंटे तक सक्रिय रहता है,
और उसके बाद दूसरा स्वर प्रवाहित होना शुरू हो जाता है, यह चक्र दिन और रात के दौरान जारी रहता है।
*🌷 ज्योतिष शास्त्र में स्वरोदय विज्ञान इस बात को स्पष्ट करता है कि यदि नासा छिद्रों की श्वास प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए कोई कार्य किया जाये तो उसमें अपेक्षित सफलता अवश्य प्राप्त होती है।*
*🌷संसार का प्रत्येक जीव अपनी नासिका के छिद्रों द्वारा सॉंस अर्जन करता है एंव उसका विर्सजन करता है।इसी सांस के द्वारा प्रत्येक जीव के प्राण स्थिर रहते है।*
*🌷💥स्वर विज्ञान” को 🌡️ध्वनिशास्त्र,🌡️धनायललोचन,🌡️स्वनविज्ञान,🌡️स्वनीति,आदि नाम दिए गए हैं! 🌷*
*🌷 अंग्रेजी में उसके लिए “फोनेटिक्स और फोनोलॉजी” शब्दों का प्रयोग होता है! इन दोनों शब्दों की निर्मिती को “ग्रीक के फोन” से हुई हैं! *
* “स्वर विज्ञान” एक समग्र दृष्टिकोण है जो तत्वयुक्त स्वर विकास में महत्वपूर्ण है!*
*यह मुखर और गायकों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने और पिच में सुधार करने की अनुमति देता है!
जबकी गायन को या इस तरह से बोलना सीखना है! जो जीवन के लिए उनके मुख शरीर की रचना की रक्षा करता है!
*🌷 जो स्वर दो होते हैं “चंद्र स्वर और सूर्य स्वर” नासिका के दायें छिद्र से आने वाली सांस को “सूर्य स्वर” कहते हैं! और बायें और के छिद्र से आने वाली सास को “चंद्र स्वर” “कहते हैं!
इसे हम “स्वर विज्ञान” भी कहते हैं!
*🌷 यात्रा करते समय या अन्य किसी महत्वपूर्ण कार्य के समय यदि हमें कहीं जाना होता है! तो इस शकुन को आप अपना सकते हैं!
*🌷 सामान्यत स्वर योग का अर्थ श्वास लेने का वर्ग विज्ञान का अर्थ है!धमनी और को श्वसन ज्ञान जब हम दोनों नासिका से श्वसन लेते हैं तो इसे “सूर्य नाड़ी या पिंगला” नाड़ी कहते हैं!
*🌷 जब हम दोनों नासिका से श्वसन लेते हैं! तो इसे मध्य स्वर “सुषमा नाड़ी या मध्य स्वर” कहते हैं!
*🌷 ध्वनि के अभाव में भाषा की कल्पना नहीं की जा सकती संस्कृत में ध्वनि विज्ञान का पुराना नाम “शिक्षाशास्त्र” था! जिसे “स्वर विज्ञान” भी कहते है!
*🌷 श्वास देखकर क्या-क्या काम करने चाहिए :: 🌷*
*🌷 मध्यमा भवति क्रूरा दृष्टा सर्वत्र कर्मसु।
सर्वत्र शुभकार्येषु वामा भवति सिद्धिदा।। 🌷*
*🌷 मध्यमा नाड़ी क्रूर है और सभी कार्यो के लिए दुष्ट है बॉयी नाड़ी सभी शुभ कार्यो को पूर्ण करती है। 🌷*
*🌷 मध्यमा अर्थात सुषुम्ना जब नाक के दोनों छिद्रों से स्वर चल रहा हो तो प्रत्येक कार्य में विघ्न आते है।*
*🌷 बॉई अर्थात इड़ा नाड़ी यानि जब नाक के बॉयें छिद्र से स्वर चल रहा होता है तो उस दौरान प्रारम्भ किया गया प्रत्येक कार्य सफल होता है।*
🚩 निर्गमे तु शुभा वामा प्रवेशे दक्षिणा शुभा।
चन्द्रः समः सुविज्ञेयो रविस्त विषमः सदा।।🚩
*🌷 घर से जाते वक्त बॉये स्वर का चलना शुभ होता है और
घर वापसी करते समय दाहिना स्वर चलना उत्तम रहता है।*
🚩 सूर्यनाड़ीप्रवाहेण रौद्रकर्माणि कारयेत्।
सुषुम्नायाः प्रवाहेण भुक्तिमुक्तिफलानि च।। 🚩
*🌷 सूर्य नाड़ी के चलते समय रौद्र कार्य करें।*
*🌷 सुषुम्ना नाड़ी भोग और मोक्ष प्राप्त करवाती है।*
*🌷 किस स्वर में किस दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए*
🚩 तिष्ठेत्पूर्वोत्तरे चन्द्रो भनुः पश्चिमदक्षिणे।
दशनाड्याः प्रसारे तु न गच्छेद्याम्यपश्चिमे।। 🚩
*🌷 पूर्व तथा उत्तर दिशा में चन्द्र स्वर, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में सूर्य रहता है।*
🌡️ *दाहिना स्वर चलने पर पश्चिम या दक्षिण दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए।*
🚩वामाचार प्रवाहे तु न गच्छेत्पूर्व उत्तरे।
परिपंथि भयं तस्य गतोसौ न निवर्त्तते।।🚩
*🌷 *बॉयें स्वर के चलते समय पूर्व तथा उत्तर दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए।*
*🌷 इस यात्रा के करने से यात्री को शत्रु का भय होता है और कभी-कभी तो यात्री घर वापस भी नहीं आता है।*
🚩 वामावा दक्षिणे वापि यत्र संक्रमते शिवः।
कृत्वा तात्पादमादौ च यात्रा भवति सिद्धिदा।।🚩
*🌷 बॉया या दाहिना कोई भी स्वर चल रहा हो और साथ ही सुषुम्ना भी चल रही हो तो....... मुख्य स्वर की तरफ वाला पॉव आगे बढ़ाकर यात्रा करनी चाहिए।
ऐसा करने से सफलता प्राप्त होती है।*
*🌷 तत्वज्ञान {सॉंस के द्वारा}-*
🚩 मध्ये पृथ्वी ह्मधश्चापाश्चोर्ध्व वहति चानलः।
तिर्यग्वायुप्रवाहश्च नभो वहति सक्रमः।। 🚩
*🌷 तत्वों के अधिकार में होने के कारण तत्व की ही भॉति स्वर भी चलता है।*
* पृथ्वी तत्व युक्त चलने वाली सॉस मध्य में चलती है।*
*जल तत्व से युक्त होकर चलने वाली श्वांस नीचे को बहती है।*
*अग्नि तत्व से युक्त हेाकर चलने वाली श्वांस ऊपर की ओर चलती है।*
*वायु तत्व से युक्त होकर चलने वाली श्वांस तिरछी चलती है
और आकाश तत्व से युक्त होकर चलने वाली श्वांस दोनों छिद्रों से प्रवाहित होती है।*
*🌷 तत्व निवास 🌷*
🚩 स्कन्धद्वये स्थितो वाह्रिर्नाभिमूले प्रभंजनः।
जानुदेशे क्षितिस्तोयं पादान्ते मस्तके नभः।।🚩
*🌷 दोनों कन्धों पर अग्नि तत्व निवास करता है।*
*नाभि में वायु तत्व, घुटनों में पृथ्वी तत्व, पॉवों में जल तत्व और सिर में आकाश तत्व निवास करता है।*
*🌷 *🌷 *🌷
* नासिका के दाहिने छिद्र अथवा बाएं छिद्र से श्वास आगमन को "स्वर चलना" कहा जाता है।*
* नासिका के दाहिने छिद्र से चलने वाले स्वर को "सूर्य स्वर" और बाएं छिद्र से चलने वाले स्वर को "चन्द्र स्वर" कहते हैं।*
* सूर्य स्वर को भगवान शिव का जबकि चन्द्र स्वर को शक्ति की आराध्य देवी माँ का प्रतीक माना जाता है।*
* स्वर शास्त्र के अनुसार वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन राशियां चन्द्र स्वर से तथा मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु एवं कुम्भ राशियाँ सूर्य स्वर से मान्य होती हैं।*
* चन्द्र स्वर में श्वास चलने को "इडा" और सूर्य स्वर में श्वास चलने को "पिंगला" कहा जाता है। दोनों छिद्रों से चलने वाली श्वास प्रक्रिया "सुषुम्ना स्वर" कहलाती है।*
* चन्द्र स्वर चलने पर बायां पैर और सूर्य स्वर चलने पर दाहिना पैर आगे बढाकर यात्रा करना शुभ होता है।चन्द्र स्वर चलते समय किये गए समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।।*
*🌷 कौनसा स्वर चलने पर कौन सा कार्य करना शुभ होता है-:*
* 🌷 सूर्य स्वर-:*
* सूर्य स्वर चलने के दौरान अध्ययन एवं अध्यापन करना, शास्त्रों का पठन-पाठन, पशुओं की खरीद-फरोख्त,औषधि सेवन, शारीरिक श्रम, तंत्र-मन्त्र साधना, वाहन का शुभारम्भ करना जैसे कार्य किये जा सकते हैं।।*
*🌷🌙चंद्र स्वर-:*
* चन्द्र स्वर चलते समय गृह प्रवेश, शिक्षा का शुभारम्भ, धार्मिक अनुष्ठान, नए वस्त्र और आभूषण धारण करना, भू-संपत्ति का क्रय-विक्रय, नए व्यापार का शुभारम्भ, नवीन मित्र सम्बन्ध बनाना, कृषि कार्य और पारस्परिक विवादों का निस्तारण करना जैसे कार्य शुभ फल देने वाले होते हैं।*
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
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