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पंचांग - 14-07-2024

 🌤️ ~आज का पंचांग~🌤️
🌤️  *दिनांक -14जुलाई 2024*
🌤️ *दिन - रविवार*
🌤️ *विक्रम संवत - 2081 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार  2080)*

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🌤️ *शक संवत -1946*
🌤️ *अयन - दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु - वर्षा ॠतु*
🌤️ *मास - आषाढ*
🌤️ *पक्ष - शुक्ल*
🌤️ *तिथि - अष्टमी शाम 05:25:28 तक तत्पश्चात नवमी*
🌤️ *नक्षत्र - चित्रा शाम 10:05:27 तक तत्पश्चात     स्वाति*
🌤️ *योग - शिव 06:14:00 तक पश्चात सिद्ध*
🌤️ *राहुकाल-हर जगह का अलग है- सुबह 09:25 से सुबह 11:05 तक*
🌞 *सूर्योदय-05:51:09*
🌤️ *सूर्यास्त- 19:30:40*
👉 *दिशाशूल - पूर्व दिशा मे*
🚩 *व्रत पर्व विवरण-
💥 *विशेष - *अष्टमी के दिन व्रत रखते समय इन चीज़ों का सेवन नहीं करना चाहिए:
तामसिक भोजन, जैसे लहसुन, प्याज़, मांस, ठंडा-बासी खाना, या दूषित खाना
अनाज, जैसे गेहूं, चावल का आटा, चने का आटा
रोज़ाना वाला नमक
हल्दी और खटाई*
 
•••शत्रुता के विभिन्न स्वरूप एवं वर्तमान सामाजिक विसंगतियां•••

√•उदात्त एवं पुनीत मानसिकता के नवनीत निमिषों में वैदिक व्यक्तित्व ने विपुल विश्व के लिए परम प्रभु से प्रार्थना की थी
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"ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
 सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत् ॥"

√•(हे प्रभु! विश्व में सभी प्राणी सुखी जीवन व्यतीत करें, सबके शरीर स्वस्थ हों, सब कल्याण के भागी हों। कोई प्राणी संसार में दुखी न रहे।)

√•इसी प्रकार गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में अपनी कल्पना में चित्रित आदर्श सामाजिक व्यवस्था के प्रतीक 'रामराज्य' के लक्षण रेखांकित करते हुए लिखा है-

"बयरु न कर काहू सन कोई  
रामप्रताप विषमता खोई।"

√•किन्तु इतिहास के संदर्शन, अतीत के अवगाहन तथा वर्तमान के विवेचन से इस सत्य का साक्षात्कार होता है कि विषमता-शत्रुता विरहित समाज मंगलकामी महामनुष्यों के मार्मिक मस्तिष्क में ही सुरक्षित है। अभी तक वह यथार्थ की वसुधा पर अवतरित नहीं हुआ है। प्रकृति के रहस्य यह स्पष्ट करते हैं कि समस्त सृष्टि असम्भवों की सम्भावना एवं विरुद्धों का समुच्चय है। निरन्तर सकारात्मक तथा नकारात्मक शक्तियों का तुमुल द्वन्द्व सक्रिय है। आलोक एवं तिमिर की भाँति ममता-निर्ममता, समता-विषमता, तृप्ति-तृषा, सरसता-विरसता, मधुरता-विधुरता, राग-विराग, वसन्त-पत्रान्त एवं शत्रुता-मित्रता का अभिन्न संयोग पग पग पर उपलब्ध होता है। मनुष्य क्रोध तथा करुणा के सन्धिबिन्दु पर अवस्थित एक नैसर्गिक विस्मय के अतिरिक्त और क्या है! इस सनातन सूत्र का काव्यात्मक भाष्य तुलसी के इन शब्दों में प्राप्त है
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"व्यापि रहेउ संसार महुँ माया कटकु प्रचंड ।
 सेनापति कामादि भट दंभ कपट पाखंड ॥"

√•(माया की प्रचण्ड सेना संसार भर में छायी हुई है। कामादि लोभ - उसके सेनापति हैं और दंभ, कपट तथा पाखण्ड योद्धा हैं।) काम, क्रोध और इसीलिए वह निष्कर्षतः कहते हैं -
क्रमश:..... आगे भी है कल के

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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
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