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पंचांग - 13-07-2024

 *🌷~आज का पंचांग~🌷*
*🌷दिनांक ~13 जुलाई 2024*
*🌷दिन ~ शनिवार*
*🌷विक्रम संवत् ~2081*

jyotish
*🌷अयन ~ दक्षिणायण*

*🌷ऋतु ~ वर्षा*
*🌷मास ~ आषाढ़*
*🌷पक्ष ~ शुक्ल*
*🌷तिथि ~  सप्तमी दोपहर 03.04:58 जुलाई 13 तक तत्पश्चात अष्टमी*
*🌷नक्षत्र ~ हस्त शाम 07:13:38 तक तत्पश्चात चित्रा*
*🌷योग ~  शिव पूर्ण रात्रि*
*🌷करण~    वणिज    15:04:58  तत्पश्चात शिव*
*🌷राहु काल~हर जगह का अलग है- प्रातः 09:16 से  प्रातः 10:58 तक*
*🌷सूर्योदय ~ 05:50:40*
*🌷सूर्यास्त ~ 07:30:56*
*🌷चन्द्र राशि~       कन्या*
*🌷सूर्य राशि~       मिथुन*
*🌷दिशा शूल ~ पूर्व दिशा में*
*🌷ब्राह्ममुहूर्त ~ प्रातः 04:27 से 05:08 तक*
*🌷अभिजीत मुहूर्त ~  दोपहर 12:13 से दोपहर 01:08*
*🌷निशिता मुहूर्त~ रात्रि 12:20 जुलाई 14 से रात्रि 01:02 जुलाई 14 तक*
 *🌷~चोघडिया, दिन~🌷*
*काल    05:51 - 07:33    अशुभ*
*शुभ    07:33 - 09:16    शुभ*
*रोग    09:16 - 10:58    अशुभ*
*उद्वेग    10:58 - 12:41    अशुभ*
*चर    12:41 - 14:23    शुभ*
*लाभ    14:23 - 16:06    शुभ*
*अमृत    16:06 - 17:48    शुभ*
*काल    17:48 - 19:31    अशुभ*

 *🌷~चोघडिया,रात~🌷*
*लाभ    19:31 - 20:48    शुभ*
*उद्वेग    20:48 - 22:06    अशुभ*
*शुभ    22:06 - 23:24    शुभ*
*अमृत    23:24 - 24:41शुभ*
*चर    24:41 - 25:59    शुभ*
*रोग    25:59 - 27:16    अशुभ*
*काल    27:16 - 28:34    अशुभ*
*लाभ    28:34 - 29:51    शुभ*
kundli



*🌷विशेष ~सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ते हैं और शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

*🌷ब्रह्म पुराण' के 118 वें अध्याय में शनिदेव कहते हैं- 'मेरे दिन अर्थात् शनिवार को जो मनुष्य नियमित रूप से पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उनके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उनको कोई पीड़ा नहीं होगी। जो शनिवार को प्रातःकाल उठकर पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उन्हें ग्रहजन्य पीड़ा नहीं होगी।' (ब्रह्म पुराण')*

*🌷शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए 'ॐ नमः शिवाय।' का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है। (ब्रह्म पुराण')*
 
*🌷हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है ।(पद्म पुराण)*

*🌷धार्मिक कर्मकांड में आसन पर बैठना आवश्यक क्यों?🌷*
*🌷पूजा-पाठ, साधना, तपस्या आदि कर्मकांड के लिए उपयुक्त आसन पर बैठने का विशेष महत्त्व होता है। हमारे महर्षियों के अनुसार जिस स्थान पर प्रभु को बैठाया जाता है, उसे दर्भासन कहते हैं और जिस पर स्वयं साधक बैठता है, उसे आसन कहते हैं।*

*🌷योगियों की भाषा में यह शरीर भी आसन है और प्रभु के भजन में इसे समर्पित करना सबसे बड़ी पूजा है।*
*जैसा देश वैसा भेष* वाली बात भक्त को अपने इष्ट के समीप पहुंचा देती है।*
*🌷कभी जमीन पर बैठकर पूजा नहीं करनी चाहिए, ऐसा करने से पूजा का पुण्य भूमि को चला जाता है। ब्रह्मांडपुराण तंत्रसार में कहा गया है कि इन कर्मकांडों हेतु भूमि पर बैठने से दुख, पत्थर पर बैठने से रोग, पत्तों पर बैठने से चित्तभ्रम, लकड़ी पर बैठने से दुर्भाग्य, घास-फूस पर बैठने से अपयश, कपड़े पर बैठने से तपस्या में हानि और बांस पर बैठने से दरिद्रता आती है।*

*🌷उल्लेखनीय है कि बिना आसन बिछाए धार्मिक कर्मकांड करने के लिए बैठने से उसमें सिद्धि अर्थात पूर्ण सफलता नहीं मिलती, ऐसे संकेत हमारे धर्मशास्त्र में दिए गए हैं। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि काले हिरण के चर्म, कुशासन, गोबर का चौका, चीता या बाघ के चर्म, लाल कंबल आदि का आसन उपयोग में लेते थे। इसके पीछे मान्यता यह थी कि काले हिरण के चर्म से निर्मित आसन का प्रयोग करने से ज्ञान की सिद्धि होती है। कुश के आसन पर बैठकर जाप करने से सभी प्रकार के मंत्र सिद्ध होते हैं। गोबर के चौके पर बैठने से पवित्रता मिलती है। चीता या बाघ के चर्म से निर्मित आसन पर बैठने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। लाल कंबल से बने आसन पर बैठने से किसी इच्छा से किए जाने वाले कर्मों में सफलता मिलती है।*

*🌷आपने देखा होगा कि साधु-महात्मा, ऋषि-मुनि जो नियमित रूप से पूजा-पाठ व धार्मिक अनुष्ठान करते रहते हैं। एक विशेष प्रकार की आध्यात्मिक शक्ति का संचय होने के कारण उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली बन जाता है। चेहरे पर तेज और विशेष प्रकार की चमक देखने को मिलती है। ये लोग कर्मकांड करते समय विद्युत के कुचालक आसन बिछाकर बैठते हैं, क्योंकि इससे उनकी संचित की गई शक्ति व्यर्थ नहीं जाती। अन्यथा सुचालक आसन के माध्यम से शक्ति लीक होकर पृथ्वी में चली जाने से व्यर्थ हो जाएगी और साधना का इच्छित लाभ नहीं मिलेगा। यही आसन बिछाने का वैज्ञानिक कारण है। नंगे पैर पूजा करना भी उचित नहीं है। हो सके तो पूजा का आसन व वस्त्र अलग रखने चाहिए जो शुद्ध रहे तथा अपना आसन, माला आदि किसी को नहीं देने चाहिए, इससे पुण्य क्षय हो जाता है।*

*🌷निम्न आसनों का विशेष महत्व है।🌷*
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*🌷कंबल का आसन:👉 कंबल के आसन पर बैठकर पूजा करना सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। लाल रंग का कंबल मां भगवती, लक्ष्मी, हनुमानजी आदि की पूजा के लिए तो सर्वोत्तम माना जाता है।*

*🌷आसन हमेशा चौकोर होना चाहिए, कंबल के आसन के अभाव में कपड़े का या रेशमी आसन चल सकता है।*

*🌷कुश का आसन:👉  योगियों के लिए यह आसन सर्वश्रेष्ठ है। यह कुश नामक घास से बनाया जाता है, जो भगवान के शरीर से उत्पन्न हुई है।*

*🌷इन आसनों पर बैठकर पूजा करने से सर्वसिद्धि मिलती है।🌷*
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*विशेषतः पिंड श्राद्ध इत्यादि के कार्यों में कुश का आसन सर्वश्रेष्ठ माना गया है,*

*स्त्रियों को कुश का आसन प्रयोग में नहीं लाना चाहिए, इससे अनिष्ट हो सकता है।*

*🌷किसी भी मंत्र को सिद्ध करने में कुश का आसन सबसे अधिक प्रभावी है।*

*🌷मृगचर्म आसन:👉  यह ब्रह्मचर्य, ज्ञान, वैराग्य, सिद्धि, शांति एवं मोक्ष प्रदान करने वाला सर्वश्रेष्ठ आसन है।*

*🌷इस पर बैठकर पूजा करने से सारी इंद्रियां संयमित रहती हैं। कीड़े मकोड़ों, रक्त विकार, वायु-पित्त विकार आदि से साधक की रक्षा करता है।*
*यह शारीरिक ऊर्जा भी प्रदान करता है।*

*🌷व्याघ्र चर्म आसन:👉 इस आसन का प्रयोग बड़े-बड़े यति, योगी तथा साधु-महात्मा एवं स्वयं भगवान शंकर करते हैं।*

*🌷यह आसन सात्विक गुण, धन-वैभव, भू-संपदा, पद-प्रतिष्ठा आदि प्रदान करता है।*

*🌷आसन पर बैठने से पूर्व आसन का पूजन करना चाहिए या एक एक चम्मच जल एवं एक फूल आसन के नीचे अवश्य चढ़ाना चाहिए।*

*🌷आसन देवता से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि मैं जब तक आपके ऊपर बैठकर पूजा करूं तब तक आप मेरी रक्षा करें तथा मुझे सिद्धि प्रदान करें। (पूजा में आसन विनियोग का विशेष महत्व है)।*

*🌷पूजा के बाद अपने आसन को मोड़कर रख देना चाहिए किसी को प्रयोग के लिए नहीं देना चाहिए।*
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*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको  केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*

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