*🌷~पंचांग~🌷*
*🌷दिनांक - 17 जून 2024*
*🌷दिन - सोमवार*
*🌷विक्रम संवत् - 2081*
*🌷अयन - उत्तरायण*
*🌷ऋतु - ग्रीष्म*
*🌷मास - ज्येष्ठ*
*🌷पक्ष - शुक्ल*
*🌷तिथि - एकादशी अहोरात्र*
*🌷नक्षत्र - चित्रा 13:49:30 तत्पश्चात स्वाती*
*🌷योग- परिघा रात्रि 09:33:08 तक तत्पश्चात शिव*
*🌷राहु काल-हर जगह का अलग है- प्रातः 07:25 से प्रातः 09:09 तक*
*🌷सूर्योदय - 05:41:47*
*🌷सूर्यास्त - 07:30:24*
*🌷दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*🌷ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:19 से 05:00 तक*
*🌷अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12:08 से दोपहर 01:04 तक*
*🌷निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:16 जून 19 से रात्रि 12:57 जून 19तक*
*🌷~चोघडिया, दिन~🌷*
*अमृत 05:42 - 07:25 शुभ*
*काल 07:25 - 09:09 अशुभ*
*शुभ 09:09 - 10:53 शुभ*
*रोग 10:53 - 12:36 अशुभ*
*उद्वेग 12:36 - 14:20 अशुभ*
*चर 14:20 - 16:03 शुभ*
*लाभ 16:03 - 17:47 शुभ*
*अमृत 17:47 - 19:30 शुभ*
*🌷~चोघडिया,रात~🌷*
*चर 19:30 - 20:47 शुभ*
*रोग 20:47 - 22:03 अशुभ*
*काल 22:03 - 23:20 अशुभ*
*लाभ 23:20 - 24:36 शुभ*
*उद्वेग 24:36 - 25:53 अशुभ*
*शुभ 25:53 - 27:09 शुभ*
*अमृत 27:09 - 28:25 शुभ*
*चर 28:25* - 29:42 शुभ*
🌷व्रत पर्व विवरण - एकादशी वृद्धि तिथि*
*🌷विशेष - एकादशी को सिम्बी (सेम) खाने से पुत्र का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🌷भारतीय उपासना में व्रतों का बहुत महत्व है। प्रत्येक मास कोई न कोई महान व्रत आता ही रहता है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को बिना पानी पिए व्रत रखा जाता है तथा द्वादशी को परायण करके व्रत खोला जाता है। भीषण गर्मी के बीच तप की पराकाष्टा को दर्शाता है यह व्रत। इसमें दान-पुण्य एवं सेवा भाव का भी बहुत बड़ा महत्व शास्त्रों में बताया गया है।*
*🌷ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है, परंतु इस एकादशी को फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। यह एकादशी ग्रीष्म ऋतु में बड़े कष्ट और तपस्या से की जाती है। अतः अन्य एकादशियों से इसका महत्व सर्वोपरि है।*
*🌷इस एकादशी के करने से आयु और आरोग्य की वृद्धि तथा उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। महाभारत के अनुसार अधिक माससहित एक वर्ष की छब्बीसों एकादशियां न की जा सकें तो केवल निर्जला एकादशी का ही व्रत कर लेने से पूरा फल प्राप्त हो जाता है।*
*🌷वृषस्थे मिथुनस्थेऽर्के शुक्ला ह्येकादशी भवेत्
ज्येष्ठे मासि प्रयत्रेन सोपाष्या जलवर्जिता।*
*🌷निर्जला व्रत करने वाले को अपवित्र अवस्था में आचमन के सिवा बिंदू मात्र भी जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। यदि किसी प्रकार जल उपयोग में ले लिया जाए तो व्रत भंग हो जाता है। निर्जला एकादशी को संपूर्ण दिन-रात निर्जल व्रत रहकर द्वादशी को प्रातः स्नान करना चाहिए तथा सामर्थ्य के अनुसार वस्तुएं और जलयुक्त कलश का दान करना चाहिए। इसके अनन्तर व्रत का पारायण कर प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।*
*🌷कथा का महात्म्य :*
*इस बारे में एक कथा आती है कि पाण्डवों में भीमसेन शारीरिक शक्ति में सबसे बढ़-चढ़कर थे, उनके उदर में वृक नाम की अग्नि थी इसीलिए उन्हें वृकोदर भी कहा जाता है। वे जन्मजात शक्तिशाली तो थे ही, नागलोक में जाकर वहां के दस कुण्डों का रस पी लेने से उनमें दस हजार हाथियों के समान शक्ति हो गई थी। इस रसपान के प्रभाव से उनकी भोजन पचाने की क्षमता और भूख भी बढ़ गई थी।*
*🌷सभी पाण्डव तथा द्रौपदी एकादशियों का व्रत करते थे, परंतु भीम के लिए एकादशी व्रत दुष्कर थे। अतः व्यासजी ने उनसे ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत निर्जल रहते हुए करने को कहा तथा बताया कि इसके प्रभाव से तुम्हें वर्ष भर की एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होगा।*
*🌷व्यास जी के आदेशानुसार भीमसेन ने इस एकादशी का व्रत किया। इसलिए यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है।*
*🌷निर्जला एकादशी महिमा🌷*
*🌷वर्षभर में जितनी एकादशीयाँ होती हैं, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है ।*
*🌷एकादशी व्रत करनेवाले पुरुष के पास विशालकाय, विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्ड पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते ।*
*🌷स्त्री हो या पुरुष, यदि उसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है ।*
*🌷जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है । उसे एक एक प्रहर में कोटि कोटि स्वर्णमुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता है ।*
*🌷मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है ।*
*🌷जिन्होंने निर्जला एकादशी को उपवास किया है, वे ब्रह्महत्यारे, शराबी, चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं ।*
*🌷जो ‘निर्जला एकादशी’ के दिन ब्राह्मण को पर्याप्त दक्षिणा और भाँति भाँति के मिष्ठान्नों द्वारा सन्तुष्ट करता है उन्हें भगवान श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं ।*
*🌷जिन्होंने भगवान श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस ‘निर्जला एकादशी’ का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आनेवाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है ।*
*🌷जो निर्जला एकादशी के दिन श्रेष्ठ ब्राम्हण को अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु, जोता तथा छाता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है ।*
*🌷जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है ।*
▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🌞🔯🔮
*🌷~यह पंचांग नागौर (राजस्थान) सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्यौहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।*
*हमारा उद्देश्य मात्र आपको केवल जानकारी देना है। इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं।*
*राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
🕉️📿🔥🌞🚩🔱🚩🔥🔯