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सांसी समाज के युवक ने अनुकरणीय उदाहरण रखा सामने

 सांसी समाज के युवक ने अनुकरणीय उदाहरण रखा सामने

marriage


 *रातानाडा जोधपुर से आया परिवार खारिया कला गांव में बना मिसाल*
सादे सगाई दस्तूर में बिना टीका लिए की सगाई
 रातानाडा, जोधपुर से खारिया कला गांव में आया परिवार सांसी समाज के लिए मिसाल बनकर आया जहां इस समाज के युवक ने सादे समारोह में अपने ससुराल से बिना टीका के सगाई का दस्तूर संपन्न करवाया। जहां सांसी समाज के परिवारों में सगाई करने में भी लाखों का खर्च आता है वहीं इस परिवार में केवल परिवार के चार सदस्यों के साथ कन्या पक्ष के घर आकर बिना किसी तामझाम व खर्च के सगाई का दस्तूर संपन्न करवाया। स्वर्गीय भंवर लाल खारड़ा के पुत्र अजय सांसी ने बुटाटी के समीप स्थित खारिया कला गांव की शिक्षित  युवती नीतू पुत्री राजेश के साथ सगाई का दस्तूर संपन्न करवाया। मूल रूप से ग्रेजुएट व डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन जनर्लिज्म में किए हुए राजस्थान पर्यटन विभाग जोधपुर के लोकल गाइड ने ग्रेजुएशन में अध्यनरत व घर परिवार में सिलाई का कार्य करने वाली नीतू के साथ सगाई करके अपने  समाज में एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया।
मूल
neetu binjawat

रूप से यह समुदाय काफी गरीब समुदाय है। मुख्य रूप से कचरा बीनना, जूता पॉलिश का काम करना करनाकार्य है। शराब बनाना जैसे कार्यों तक में कुछ परिवार लगे हुए हैं। जिसका मूल कारण इनके रीति रिवाज है क्योंकि जन्म से लेकर मृत्यु हो तक के जितने भी क्रियाकलाप है उन सभी में बहुत सारे आडंबर जैसे पैरावणी औडावणी आदि में कपड़ा लेना देना, आवभगत मेहमानों की, मेहमानी खिलाना पिलाना इस चक्कर में बहुत सारा खर्चा हो जाता है।
एक सामान्य से सगाई भी इस समुदाय में छोटी बारात पर 3 लाख से ऊपर का खर्चा हो जाता है क्योंकि रिश्ता तय होने से लेकर सगाई तक मेहमानों का आना-जाना खाना पीना, खिलाना रिश्ता तय करना, शराब पिलाना, मिठाइयां, लस्सी पिलाना यहां तक कि जब दूल्हा दुल्हन के कपड़े भी तय किए जाते हैं तो उसमें भी विभिन्न प्रकार के खर्च किए जाते हैं। इस सभी के कारण जो नव दंपति जोड़ा  व्यवहारिक जीवन में आता है तो वह  सर पर कर्ज का बोझ लेकर निकलता है जिनकी मानसिकता में कर्ज तले तृप्त हो जाती है ना कोई खेती बाड़ी है ना कोई बड़ा बिजनेस है जिसके चलते धीरे-धीरे कचरा बीनना, चोरी चकारी जैसे व्यवसाय में जुड़ जाते हैं और कुछ लोग शराब  का व्यवसाय करने में लग जाते हैं। मूल रूप से  जो आडंबर  व शिक्षा का अभाव ही इनको पीछे की ओर धकेल रहे हैं।
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अजय के शब्दों में- *हम समाज के सक्षम परिवारों में से है। अगर हम यह आज आडंबर भी करते हैं तो हमें कोई दिक्कत नहीं है परंतु इनका कोई औचित्य नहीं होने के कारण हमने किसी भी प्रकार का कोई भी आडंबर नहीं किया व और वधू के दोनों के परिवार समझदार है और आपसे समझाइए से एक सामान्य रूप से हमने अपनी सगाई जो दस्तूर के रूप में संपन्न की और हमने वर वधू को मजबूत हो ऐसा आशीर्वाद दिया है।*


सामान्य रूप से कन्या पक्ष जब वर पक्ष के घर जाता है या वर पक्ष कन्या पक्ष के घर जाता है तो  तो परिवार के रिश्तेदारों की संख्या बहुत अधिक रहती है लेकिन इस सगाई में वर पक्ष के मात्र चार सदस्य ही वधू के घर सगाई का दस्तूर करने के निमित्त पहुंचे ताकि कन्या पक्ष को अर्थ भार अधिक वहन नहीं करना पड़े। साथ ही वर पक्ष की आवभगत के लिए किसी भी प्रकार का वस्त्र, नगद में सीख मिठाई या  शराब पीने पिलाने से बिल्कुल वर्जित किया गया है।
 *सामाजिक सरोकार के लिए खुद से आहुति देनी होगी - अजय सांसी*
समाज विकास का ज्ञान हमेशा सामने से ही दिया जाता है पर स्वयं अनुसरण करें ऐसी अपेक्षा बहुत ही कम रहती है। परंतु कुछ उदाहरण ऐसे समझ में उभर कर आते हैं कि खुद को दीपक की तरह जलने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। इसी के बीच सांसी कॉलोनी रातानाडा में हमेशा अच्छे काम करने के लिए सभी आग्रह किए जाते हैं परंतु उनका अनुसरण कोई नहीं करता स्वंय से आहुति कोई नहीं देता इन जैसी हजारों समस्याओं को देखते हुए वर्तमान में सांसी समुदाय में सगाई की रस्म जो बहुत खर्चीली हो गई है। तरह-तरह के आडंबर उसमें जोड़ दिए गए हैं जैसे सगाई की बात तय करने के लिए शराब पिलाना, बहुत सारे लोगों को लाना ले जाना, लस्सी पिलाना, कपड़े खरीदने में पूरे खानदान को ले जाना, दूल्हा दुल्हन के कपड़ों को चिन्हित करने के लिए खानदान को ले जाना यह आडंबर इतना भयानक रूप ले चुके है जो मूल रूप से उसकी कोई आवश्यकता नहीं है। फिल्मी और बड़े घरनो से जो रीति-रिवाज निकाल कर आज उनकी बस्तियों में वह एक नासूर बन गए हैं केवल दिखावे के कारण और आर्थिक रूप से प्रत्येक परिवार दब रहा है। फिर सगाई के समय तरह-तरह के ढोंग करना, रॉयल एंट्री, गाड़ियों पर एंट्री, पटाखे सो बाजी करना, केक काटना तरह-तरह के व्यंजन बनाना जिसके कारण बस्ती में और समाज में आपराधिक गतिविधियां रूकना कठिन सा है और नवाचार सा रुक गया है।
उसी के निमित्त वर पक्ष के परिवार के माता, भाई और बहन और जमाई केवल चार सदस्य कन्या पक्ष के घर गए दस्तूर का नारियल दिया और शादी की तारीख तय करके आ गए जिसमें कोई भी आडंबर को शामिल नहीं किया। इस पहल में सबसे पहले  अपने जीवनसाथी को और उनके परिवार को भी समझाया उन्होंने भी समझा और साथ निभाया। जो जितने भी आडंबर होते हैं उनका त्याग कर एक साधारण बिल्कुल शुद्ध हिंदू रीति रिवाज से जो हमारे बुजुर्ग करते आ रहे थे उस विधि से सगाई का कार्य संपन्न किया यह  एक बहुत बड़ा युद्ध था क्योंकि हमारे समाज में हर क्षेत्र में सामाजिक कुरीतियों का प्रचंड बोलबाला है परंतु मैं मेरे परिवार और जीवनसाथी की समझदारी से इसमें सफल रहा और आगे भी मैं अपना पूरा जीवन इन सामाजिक कुर्तियां को त्याग कर एक आदर्श समाज बनाने के लिए ही प्रयासरत रहूंगा।

हर लड़की का सपना होता है कि जब वह वैवाहिक गठबंधन में बने जाए तो उसके जितने भी रीति रिवाज होते हैं और उसका परिवार उसके लिए कोई कमी नहीं रखता परंतु फिजूल का खर्चा और जो बेफिजूल के रीति रिवाज आज हमारे बीच में आ गए हैं एक नासूर बन गए हैं। हां हम एक संपन्न परिवार है यह चीज हम करें तो हमें बोझ नहीं लगता परंतु हमारे ऐसे संस्कार नहीं है हमारे माता-पिता ने हमें संस्कार दिए हैं परंतु समाज में ऐसे भी परिवार है जो अपनी खुशियों को गिरवी रखकर इन आडंबरों में पिसते जाते हैं जब मेरे सामने ऐसा प्रस्ताव आया तो शुरू में मुझे भी कठिन लगा कैसे होगा क्या होगा परंतु अजय के विश्वास  और परिवार समझाइए से यह कार्य हमने संपन्न किया और आज हमें अच्छा लग रहा है कि हमने एक आदर्श प्रयास किया जो आगे जाकर समाज के लिए एक सकारात्मक प्रभाव छोड़ेगा और सबसे बड़ी बात की आज हम शिक्षित है तो हमने अपनी शिक्षा का सदुपयोग लिया है। मुझे गर्व है कि मुझे ऐसा  परिवार मिल रहा है। ~ नीतू बिदावत, खरिया कला, नागौर।

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