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देवउठनी एकादशी एवं तुलसी विवाह,शुभ मुहूर्त और पूजा का विधि-विधान

 देवउठनी एकादशी एवं तुलसी विवाह,शुभ मुहूर्त और पूजा का विधि-विधान

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एकादशी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आती है। माना जाता है कि इस दिन श्रीहरि विष्णु पांच माह के बाद शयनकाल से जागते हैं। देव उठने के बाद सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। इस दिन रात में शालिग्रामजी और तुलसी माता का विवाह होता है। इतना शुभ दिन होने की वजह से विवाह के लिए भी ये दिन बहुत शुभ माना जाता है। इसे मनाने की परंपरा भी अलग-अलग इलाकों में भिन्न है।
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क्षीरसागर में भगवान विष्णु के जागते ही शुभ व मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं और इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है। इस दिन चावल के आटे से घरों में चौक बनाया जाता है और गन्ने का मंडप बनाकर श्रीहरि की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन तुलसी के पौधे का दान करने का बहुत उत्तम बताया गया है।
थाली या शंख बजाकर जगाते हैं देव को.......
.देव उठनी एकादशी के दिन ही भगवान श्री हरि के शालीग्राम रूप का विवाह तुलसी के साथ किया जाता है . .
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इस तिथि से ही विवाह एवम्‌ अन्य मांगलिक कार्य होने शुरू हो जाते हैं . . देवोत्थान एकादशी को हिंदू पंचांग के अनुसार स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया है . .अर्थात इस दिन किसी भी मंगल या शुभ कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि की आवश्यकता नहीं होती . इस दिन आरंभ किए गए कार्यों में सफलता प्राप्त होती है . . इसलिए इस दिन को विवाह, सगाई, नींव पूजन, गृह प्रवेश, वाहन खरीदारी, व्यापार या नया कार्य शुरू करने के लिए शुभ माना गया है . .
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एक मान्यता के अनुसार . . जिन दंपतियों की संतान नहीं होती उन्हें एक बार तुलसी का विवाह कर कन्यादान अवश्य करना चाहिये .
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आज करते है ..तुलसी विवाह . . तुलसी विवाह संपन्न कराने के लिए एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए और तुलसी जी के साथ विष्णु जी की शालीग्राम रूप में घर में स्थापित करनी चाहिए . . तुलसी के पौधे और विष्णु जी की मूर्ति को पीले वस्त्रों से सजाना चाहिए . . तुलसी विवाह के लिए तुलसी के पौधे को सजाकर उसके चारों तरफ गन्ने का मंडप बनाना चाहिए . तुलसी जी के पौधे पर चुनरी या ओढ़नी चढ़ानी चाहिए . इसके बाद जिस प्रकार एक विवाह के रिवाज होते हैं उसी तरह तुलसी विवाह की भी रस्में निभानी चाहिए. .

द्वादशी के दिन पुन: तुलसी जी और विष्णु जी की पूजा कर और व्रत का पारण करना चाहिए . . भोजन के पश्चात तुलसी के स्वत: गलकर या टूटकर गिरे हुए पत्तों को खाना शुभ होता है . . इस दिन गन्ना, आंवला और बेर का फल खाने से जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं . .
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तुलसी विवाह हिन्दु देवता विष्णु या उनके अवतार कृष्ण के साथ तुलसी के पौधे का आनुष्ठानिक विवाह है.

 हिंदू धर्म में तुलसी माता और शालिग्राम भगवान के विवाह का आयोजन करना बेहद शुभ माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से विष्णुजी और मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सुख-सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं. इसके अलावा तुलसी विवाह संपन्न करवाने से कन्यादान के समान फल की प्राप्ति होती है.

*23 नवंबर 2023 को है तुलसी विवाह, शुभ मुहूर्त और पूजा का विधि-विधान*





तुलसी विवाह का मुहूर्त
हिंदू धर्म में कार्तिक का महीना लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है. कहा जाता है कि इस महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा के बाद जागते हैं, उनके जागते ही सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. इसके साथ ही हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ही तुलसी और शालिग्राम भगवान का विवाह किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि तुलसी विवाह संपन्न करवाने से कन्यादान के समान फल मिलता है और मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं. साथ ही तुलसी जी और शालिग्राम की कृपा से विवाह में आने वाली बाधाएं भी दूर होती हैं और शादीशुदा जीवन में भी खुशियां बनी रहती हैं.

पंचांग के मुताबिक, इस साल तुलसी माता का विवाह 23 नवंबर कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को होगा।
   
    इसी दिन भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह बड़े ही धूमधाम से किया जाएगा. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 नवंबर को रात 11.03 बजे से शुरू हो रही है. इसका समापन 23 नवंबर की रात 9:01:24 बजे होगा. एकादशी तिथि पर रात्रि पूजा का मुहूर्त शाम 5.25 से रात 08:46 तक है. आप चाहें तो इस मुहूर्त में तुलसी विवाह संपन्न करा सकते हैं.
ज्यादातर लोग इस तिथि को करते हैं तुलसी का विवाह
ऐसा माना जाता है कि ज्यादातर लोग कार्तिक माह की द्वादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह करते हैं तो इस साल कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि की शुरुआत 23 नवंबर को रात 9 बजकर 1 मिनट से शुरू होगी और 24 नवंबर को 19:06: 09 तक रहेगी।
शुभ मुहूर्त तुलसी विवाह के लिए 24 नवंबर 2023 को दोपहर 12:22 से 1.41 मिनट तक  विवाह का शुभ मुहूर्त भी है। उसके बाद . इस दिन शाम 5 बजकर 25 मिनट से शाम 6 बजकर 4 मिनट प्रदोष काल का शुभ मुहूर्त बन रहा है. इसलिए इस मुहूर्त में भी लोग तुलसी माता का विवाह संपन्न करा सकते हैं।
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ऐसे करें तुलसी विवाह
सभी भक्तों को तुलसी विवाह के लिए सबसे पहले लकड़ी की एक साफ चौकी पर आसन बिछाएं और गमले को गेरू से रंग दें और चौकी के ऊपर तुलसी जी को स्थापित करें।.
दूसरी चौकी पर भी आसन बिछाएं और उस पर शालिग्राम भगवान को स्थापित करें और दोनों चौकियों के ऊपर गन्ने से मंडप सजाएं.
अब एक कलश में जल भरकर रखें और उसमें पांच या फिर सात आम के पत्ते लगाकर पूजा स्थल पर स्थापित करें.
फिर शालिग्राम व तुलसी के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें और रोली या कुमकुम से तिलक करें. तुलसी पर लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं, चूड़ी,बिंदी आदि चीजों से तुलसी का श्रृंगार जरूर करें.
सावधानी से चौकी समेत शालिग्राम को हाथों में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा कराएं और पूजा संपन्न होने के बाद तुलसी व शालिग्राम की आरती करें और उनसे सुख सौभाग्य की कामना करें.
तुलसी विवाह का महत्व
मान्यता है कि जो व्यक्ति विधि-विधान के साथ तुलसी विवाह करता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही तुलसी और भगवान शालिग्राम का विधिवत पूजन करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और घर में जीवन भर सुख समृद्धि बनी रहती है. इसके अलावा परिवार के लोगों पर किसी प्रकार का कोई संकट नहीं आता है.
रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश प्रेम शर्मा नागौर।


. . . 23-11-2023 . . . देव उठनी एकादशी . . जिसे प्रबोधिनी एकादशी और देवुत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है . .
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= देव उठनी एकादशी के दिन ही भगवान श्री हरि के शालीग्राम रूप का विवाह तुलसी के साथ किया जाता है . .
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= एक मान्यता के अनुसार . . जिन दंपतियों की संतान नहीं होती उन्हें एक बार तुलसी का विवाह कर कन्यादान अवश्य करना चाहिये .
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= आज करते है ..तुलसी विवाह . . तुलसी विवाह संपन्न कराने के लिए एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए और तुलसी जी के साथ विष्णु जी की शालीग्राम रूप में घर में स्थापित करनी चाहिए . . तुलसी के पौधे और विष्णु जी की मूर्ति को पीले वस्त्रों से सजाना चाहिए . . तुलसी विवाह के लिए तुलसी के पौधे को सजाकर उसके चारों तरफ गन्ने का मंडप बनाना चाहिए . तुलसी जी के पौधे पर चुनरी या ओढ़नी चढ़ानी चाहिए . इसके बाद जिस प्रकार एक विवाह के रिवाज होते हैं उसी तरह तुलसी विवाह की भी रस्में निभानी चाहिए. .
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= द्वादशी के दिन पुन: तुलसी जी और विष्णु जी की पूजा कर और व्रत का पारण करना चाहिए . . भोजन के पश्चात तुलसी के स्वत: गलकर या टूटकर गिरे हुए पत्तों को खाना शुभ होता है . . इस दिन गन्ना, आंवला और बेर का फल खाने से जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं . .

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