नागौर। 24सितंबर 2023
*उत्तम संयम आत्म उत्थान का प्रथम चरण*
नागौर। 24सितंबर 2023
पर्युषण पर्व के आज छठवें दिन उत्तम संयम धर्म की सभी जैन मंदिरों में आत्म कल्याण हेतु पूजा अर्चना की गई।इस अवसर पर जैन नसियाजी में पंचामृत अभिषेक एक्स किया गया जिसमें जैन समाज के रमेशचंद्र, सनत कानूगो, नथमल जैन , विनोद, राजेश शाह, पवन रोमिल कानुगो, रवि बड़जात्या, ऋषभ जैन ,सिद्धार्थ बड़जात्या,मनोज, आदित्य जैन, कमल पहाड़िया, रेणु, शशि, सीमा, जया, मंजू आदि ने भाग लिया व विशेष दुग्ध शांतिधारा का सौभाग्य जिनेन्द्र मंजू जैन परिवार को मिला।
इस अवसर पर समाज के नथमल जैन ने बताया कि संयम आत्म उत्थान का प्रथम चरण है।संयम में ही सुख निहित है।संयम विकल्पों के अभाव का नाम है।पर्युषण के प्रथम पांच सोपान लोभ, मान,क्रोध,मोह के त्याग तथा सत्य की प्राप्ति के पश्चात सत्य की सुरक्षा के लिए संयम धर्म से ही हो सकती है।सत्य वह हीरा है जिसे संयम की तिजोरी में ही सुरक्षित रखा जा सकता है।
नथमल जैन ने विस्तार से बताते हुए बताया कि संयम और साधना की बूंदें कर्म बंधन की साधना को पिघला कर रख देंगी।संयम बंधन होकर भी बंधन नहीं है यह तो निजशासन की कुंजी है जो मुक्ति की और ले जाने का उपाय है।यातायात नियंत्रण के लिए प्रयुक्त हेड लाइट,ट्रैफिक चौराहे पर खड़ा पुलिस कर्मी,सीमा पर खड़ा प्रहरी यहां तक कि सड़क पर बनाए जाने वाले गति अवरोधक भी बंधन नहीं अपितु सुरक्षा के रूप में संयम के उपाय ही है।
महावीर भगवान के दिए चार शब्द *जीयो और जीने दो*, संयम की सबसे छोटी परिभाषा है।
*सुगंध दशमी पर्व : चारों ओर धूप की खुशबू*
आज ही के दिन दिगंबर जैन मंदिरों में चारों ओर धूप की भीनी-भीनी और सुगंधित खुशबू बिखरी रही। सभी जैन धर्मावलंबियों ने सुगंध दशमी (धूप दशमी) का पर्व उत्साहपूर्वक मनाया। भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की दशमी को यह पर्व मनाया जाता है। इसे सुगंध दशमी अथवा धूप दशमी कहा जाता है।
इस अवसर पर नथमल ने बताया कि जैन मान्यताओं के अनुसार पर्युषण पर्व के अंतर्गत आने वाली सुगंध दशमी का काफी महत्व है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से मनुष्य के अशुभ कर्मों का क्षय होकर पुण्यबंध का निर्माण होता है तथा उन्हें स्वर्ग, मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसीलिए आज पांचों पाप (हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह) का त्याग कर भगवान की पूजा, स्वाध्याय, धर्म चिंतन, कथा श्रवण एवं सामयिक आदि में समय व्यतीत करके सुंगध दशमी की पूजा की गई। शाम में दशांग धूप आदि का क्षेपण कर रात्रि को आरती-भक्ति, भजन आदि में समय व्यतीत कर यह व्रत किया गया।
इस दौरान जैन समुदाय ने शहर के सभी जैन मंदिरों में जाकर भगवान को धूप अर्पण किया जिसे धूप खेवन भी कहा जाता है, जिससे सारा वायुमंडल सुगंधमय होकर, बाहरी वातावरण स्वच्छ और खुशनुमा हो गया।