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पंचांग - 15-09-2023

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 *🔱॥ॐ श्री गणेशाय नमः॥🔱*     *🚩मोर मुकुट बंशीवाले की जय* *🕉नमो नित्यं केशवाय च शम्भवे,हनुमते च दुर्गायै सरस्वत्यै नमोनमः।।*🕉🌸*

JYOTISH


*🌞15सितम्बर का पंचांग 🌞*
*⛅दिनांक -15 सितम्बर 2023*
*⛅दिन - शुक्रवार*
*⛅विक्रम संवत् - 2080*
*⛅शक संवत् - 1945*
*⛅अयन - दक्षिणायन*
*⛅ऋतु - शरद*
*⛅मास - भाद्रपद (गुजरात महाराष्ट्र में श्रावण)*
*⛅पक्ष - कृष्ण*
*⛅तिथि - अमावस्या सुबह 07:08.34 तक तत्पश्चात प्रतिपदा*
*⛅नक्षत्र - उत्तराफाल्गुनी पूर्णरात्रि(31.33.48) तक*
*⛅योग - शुभ 16 सितम्बर प्रातः 03:40.18 तक तत्पश्चात शुक्ल*
*⛅राहु काल-हर जगह अलग है - सुबह 10:58 से 12:30 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:21.23*
*⛅सूर्यास्त - 06:39.03*
*⛅ दिन काल    12:17:40*    
*⛅रात्री काल    11:42:46*
*⛅चंद्रोदय    06:56:29*
*⛅चंद्रास्त    19:00:20*
*⛅ करण    नाग    07:08:34*
*⛅ करण    किन्स्तुघ्न    20:14:31*
*⛅चन्द्र राशि    सिंह    till 11:34:34*
*⛅चन्द्र राशि    कन्या    from   11:34:34*
*⛅सूर्य राशि       सिंह*
 
      *🌸चोघडिया, दिन🌸*
*चर    06:21 - 07:54    शुभ*
*लाभ    07:54 - 09:26    शुभ*
*अमृत    09:26 - 10:58    शुभ*
*काल    10:58 - 12:30    अशुभ*
*शुभ    12:30 - 14:02    शुभ*
*रोग    14:02 - 15:35    अशुभ*
*उद्वेग    15:35 - 17:07    अशुभ*
*चर    17:07 - 18:39    शुभ*
     *🌸चोघडिया, रात🌸*
*रोग    18:39 - 20:07    अशुभ*
*काल    20:07 - 21:35    अशुभ*
*लाभ    21:35 - 23:03    शुभ*
*उद्वेग    23:03 - 24:30    अशुभ*
*शुभ    24:30 - 25:58    शुभ*
*अमृत    25:58 - 27:26    शुभ*
*चर    27:26 - 28:54    शुभ*
*रोग    28:54 - 30:22    अशुभ*

*⛅दिशा शूल - पश्चिम दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:52 से 05:39 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:12 से 12:58 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - अमावस्या*
*⛅विशेष - अमावस्या के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है ।  प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38/34)*

*🔹अमावस्या🔹*
*🔸15 सितम्बर सुबह 07:08.34 तक अमावस्या ।*

*🔸उदयातिथि के अनुसार 15 सितम्बर को भी अमावस्या के सावधानी नियम मान्य है ।*

*🔹अमावस्या विशेष🔹*

*🌹1. जो व्यक्ति अमावस्या को दूसरे का अन्न खाता है उसका महीने भर का किया हुआ पुण्य दूसरे को (अन्नदाता को) मिल जाता है ।*
*(स्कंद पुराण, प्रभास खं. 207.11.13)*

*कल कुशोत्पाटिनी अमावस्या है वर्ष भर के लिए कुशा जरूर निकालेंअतः वैदिक पूजा  मे अथवा नित्य नैमित्तिक के पूजा मे ग्राह्य कुश का संचय कर लेना चाहिये। क्योंकि कुशोत्पाटिनी  अमावस्या के दिन संचित कुश का वर्ष पर्यन्त पुजन मे उपयोग किया जा सकता है।*
*कुश निकलने का मन्त्र- "ॐ हूँ फट् " इस मन्त्र को पढते हूए कुश को जड से निकाला चाहिए।*भाद्रपद मास कीअमावस्या तिथि को कुशग्रहणी अमावस्या कहते हैं।* *धर्म ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है। इस दिन वर्ष भर किए जाने वाले धार्मिक कामों तथा श्राद्ध आदि कामों के लिए कुश (एक विशेष प्रकार की घास, जिसका उपयोग धार्मिक व श्राद्ध आदि कार्यों में किया जाता है)* *एकत्रित किया जाता है।* *इस बार कुशग्रहणी अमावस्या १४,१५ सितम्बर गुरुवार,शुक्रवार को है। यह तिथि पूर्वान्ह्व्यापिनी ली जाती है।* *हिंदुओं के अनेक धार्मिक क्रिया-कलापों में कुश का उपयोग आवश्यक रूप से होता है-*
*पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्तो भवेच्छुचि:।*
*कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया।।*
*(शब्दकल्पद्रुम)*

*अत: प्रत्येक गृहस्थ को इस दिन कुश का संचय (इकट्‌ठा) करना चाहिए। शास्त्रों में दस प्रकार के कुशों का वर्णन मिलता है-*

*कुशा: काशा* *यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।*
*गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।*

*इनमें से जो भी कुश इस तिथि को मिल जाए, वही ग्रहण कर लेना चाहिए। जिस कुश में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और हरा हो, वह देव तथा पितृ दोनों कार्यों के लिए उपयुक्त होता है। कुश निकालने के लिए इस तिथि को सूर्योदय के समय उपयुक्त स्थान पर जाकर पूर्व या उत्तराभिमुख बैठकर यह मंत्र पढ़ें और दाहिने हाथ से एक बार में कुश उखाड़ें*
*कुशाग्रे वसते रुद्र: कुश मध्ये तु केशव:।*
*कुशमूले वसेद् ब्रह्मा कुशान् मे देहि मेदिनी।।*
*विरञ्चिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।*
*नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।*

*विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।*
*नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव। कल कुशोत्पाटिनी अमावस्या है-*
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१- *भाद्रपद की अमावस्या  उखाड़ा गया कुश १ वर्ष तक प्रयोग किया जा सकता है।*
२- *स्नान के पश्चात सफ़ेद वस्त्र पहनकर प्रात:काल कुश उखाड़ना चाहिए।*
३- *कुशोत्पाटन के समय मुख पूरब या उत्तर की ओर होना चाहिए।*
४- *सर्वप्रथम ॐ कहकर कुश का स्पर्श करें।*
५- *फ़िर पितृतीर्थ (तर्जनी और अंगुष्ठ के मध्य का स्थान) से "हुँ फ़ट" कहकर कुश उखाड़ें।*
६- *कुश जिसका अग्रभाग कटा न हो, जो जला ना हो, जो मार्ग या गन्दे स्थान पर ना हो ऐसा कुश ही उखाड़ें।*

*🌹2. अमावस्या के दिन पेड़-पौधों से फूल-पत्ते, तिनके आदि नहीं तोड़ने चाहिए, इससे ब्रह्महत्या का पाप लगता है ! (विष्णु पुराण)*

*🔹स्वास्थ्य व पर्यावरण सुरक्षा का अमोघ उपाय – गाय का घी*

*🔹देशी गाय का घी शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास एवं रोग-निवारण के साथ पर्यावरण-शुद्धि का एक महत्त्वपूर्ण साधन है ।*

*🔸इसके सेवन से –*

*👉 १) बल, वीर्य व आयुष्य बढ़ता है, पित्त शांत होता है ।*

*👉 २) स्त्री एवं पुरुष संबंधी अनेक समस्याएँ भी दूर हो जाती है ।*

*👉 ३) अम्लपित्त (एसिडिटी) व कब्जियत मिटती है ।*

*👉 ४) एक गिलास दूध में एक चम्मच गोघृत और मिश्री मिलाकर पीने से शारीरिक, मानसिक व   दिमागी कमजोरी दूर होती है ।*

*👉 ५) युवावस्था दीर्घकाल तक रहती है । काली गाय के घी से वृद्ध व्यक्ति भी युवा समान हो जाता   है ।*

*👉 ६) गर्भवती माँ घी – सेवन करे तो गर्भस्थ शिशु बलवान, पुष्ट और बुद्धिमान बनता है ।*

*👉 ७) गाय के घी का सेवन ह्रदय को मजबूत बनता है । यह कोलेस्ट्रोल को नहीं बढ़ाता । दही को   मथनी से मथकर बनाये गये मक्खन से बना घी ह्रदयरोगों में भी लाभदायी है ।*

*👉 ८) देशी गाय के घी में कैंसर से लड़ने व उसकी रोकथाम की आश्चर्यजनक क्षमता है ।*

*🔹ध्यान दें : घी के अति सेवन से अजीर्ण होता है । प्रतिदिन १० से १५ ग्राम घी पर्याप्त है ।*

*🔹नाक में घी डालने से –*

*👉 १) मानसिक शांति व मस्तिष्क को शांति मिलती है ।*
*👉 २) स्मरणशक्ति व नेत्रज्योति बढ़ती है ।*
*👉 ३) आधासीसी (माइग्रेन) में राहत मिलती है ।*
*👉 ४) नाक की खुश्की मिटती है ।*
*👉 ५) बाल झड़ना व सफ़ेद होना बंद होकर नये बाल आने लगते हैं ।*
*👉 ६) शाम को दोनों नथुनों में २ – २ बूंद गाय का घी डालने तथा रात को नाभि व पैर के तलुओं में गोघृत लगाकर सोने से गहरी नींद आती है ।*

*🔹मात्रा : ४ से ८ बूंद*

*🔹गोघृत से करें वातावरण शुद्ध व पवित्र🔹*

*👉 १) अग्नि में गाय के घी की आहुति देने से उसका धुआँ जहाँ तक फैलता है, वहाँ तक का सारा वातावरण प्रदुषण और आण्विक विकिरणों से मुक्त हो जाता है । मात्र १ चम्मच गोघृत की आहुति देने से एक टन प्राणवायु (ऑक्सीजन) बनती है, जो अन्य किसी भी उपाय से संभव नहीं है ।*

*👉 २) गोघृत और चावल की आहुति देने से कई महत्त्वपूर्ण गैसे जैसे –इथिलिन ऑक्साइड, प्रोपिलिन ऑक्साइड, फॉर्मलडीहाइड आदि उत्पन्न होती है । इथिलिन ऑक्साइड गैस आजकल सबसे अधिक प्रयुक्त होनेवाली जीवाणुरोधक गैस है,  जो शल्य – चित्किसा (ऑपरेशन) से लेकर जीवनरक्षक औषधियाँ बनाने तक में उपयोगी है ।*

*👉 ३) मनुष्य-शरीर में पहुँचे रेडियोधर्मी विकिरणों का दुष्प्रभाव नष्ट करने की असीम क्षमता गोघृत में है ।*
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🖌🚩 *_””जय श्री महाकाल महाराज की””_* 🚩
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*यह पंचांग नागौर (राजस्थान)के सूर्योदय के अनुसार है।*
*अस्वीकरण(Disclaimer)पंचांग, धर्म, ज्योतिष, त्योहार की जानकारी शास्त्रों से ली गई है।राशि रत्न,वास्तु आदि विषयों पर यहाँ प्रकाशित सामग्री केवल आपकी जानकारी के लिए हैं।ज्योतिष एक अत्यंत जटिल विषय है, यहां पूरी सतर्कता के उपरांत भी मानवीय त्रुटि संभव, अतः संबंधित कोई भी कार्य या प्रयोग करने से पहले अपने स्वविवेक के साथ किसी संबद्ध विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेवें...*
*🌞*दिनेश "प्रेम" शर्मा रमल ज्योतिष आचार्य*🌞*
*संपर्क सूत्र:- मोबाइल.* *8387869068*
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