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रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त, भद्रा में राखी बांधना पूर्ण रूप से निषेध

 रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त, भद्रा में राखी बांधना पूर्ण रूप से निषेध

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मोहनराम स्वामी  पीती वाड़ा नागौर (राजस्थान)
रक्षाबंधन का त्यौहार भारतीय हिंदू परंपरा के अनुसार भाई बहिनों का प्रधान अंग है पूर्व काल में बलि राजा पर वामन भगवान प्रसन्न होकर बैकुंठलोक छोड़कर बलि राजा के द्वारपाल बन गए फिर लक्ष्मी जी ने बलि राजा को भाई बनकर रक्षा सूत्र बांधकर भगवान को ले गई तभी से पंडित  जन इस मंत्र से रक्षासूत्र का मंत्र है- येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि ,रक्षे मा चल मा चल:। अर्थ- इस मन्त्र का अर्थ है कि "जो रक्षा धागा परम कृपालु राजा बलि को बाँधा गया था, वही पवित्र धागा मैं तुम्हारी कलाई पर बाँधता हूँ, जो तुम्हें सदा के लिए विपत्तियों से बचाएगा"।
तभी से राजाओं में रक्षा विधान प्रारंभ हुआ राजपुरोहित भद्रा रहित पूर्णिमा में श्रावणी कर्म करके राजा को उच्च आसन पर बैठाकर अमात्य जनों के साथ स्वर्ण व्यवस्थित रक्षा सूत्र बांधते थे इस कारण भद्रा में रक्षाबंधन राजाओं के लिए नेष्ट बताया गया है ऐसे सभी मांगलिक कार्यों में भद्राकाल सर्वथा त्याज्य है।  यही परिपाटी आगे भाई-बहिनों के लिए प्रारंभ हुई। इस दिन बहिने श्रवण पूजन भोजन के बाद भाइयों को राखी बांधती है।
      इस वर्ष दिनांक 31 को पूर्णिमा की घड़ी कम होने के कारण धर्माचार्य पंडित एवं  पंचांगों में चतुर्दशी यानि 30 अगस्त 2023 को रात्रि 9:00.01 बजे के बाद रात्रि भद्रा उपरांत रक्षाबंधन का लेख लिखा है। तथा पूर्व में पुराने पंचांगों में जहां तक पूर्णिमा घटीपल है। तब तक राखी बांधने का लिखा हुआ है इसका कारण इस वर्ष दिनांक 31 अगस्त को प्रातः06:14:40 से 7:04.42 बजे प्रातःतक श्रवण पूजन कर भाई के राखी बांध सकते हैं। " वार बड़ा की त्यौहार" वाली कहावत ऐसे प्रचलित है उसके अनुसार पूर्णिमा उदय तिथि होने से सामान्य जन  कभी भी राखी बांध सकते हैं।

  पूर्व काल के अनुसार द्रौपदी ने भी बांधी राखी
भाईचारे के प्रेम का प्रतीक कहे जाने वाले इस पर्व को प्राचीन काल से ही मनाया जाता रहा है। इस पर्व से कई पौराणिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। एक कहानी के अनुसार, महाभारत काल के दौरान, भगवान कृष्ण ने "शिशुपाल" को मारते हुए अपनी एक उंगली काट दी थी। जब द्रौपदी की दृष्टि भगवान कृष्ण की कटी हुई उंगली से निकले रक्त पर पड़ी, तो उसने घबराकर जल्दी से अपनी साड़ी का "पल्लू" फाड़ दिया और रक्तस्राव को रोकने के लिए श्री कृष्ण की उंगली पर कपड़ा बांध दिया। कहते हैं द्रौपदी ने श्री कृष्ण को सावन मास की पूर्णिमा तिथि को यह रक्षा सूत्र बांधा था। इसलिए, ऐसा माना जाता है कि राखी बांधने की परंपरा इसी के बाद शुरू हुई और राखी का त्योहार आज तक पूरी दुनिया में बहुत खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
 निवेदक:_ मोहनराम स्वामी  पीती वाड़ा नागौर (राजस्थान)

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*रमलज्योतिर्विद आचार्य दिनेश प्रेम शर्मा, नागौर राजस्थान*

श्रवण पूजन क्यों?..
श्रवण की पूर्णिमा के दिन
रक्षाबंधन से पूर्व श्रवण पूजन करते है। इस विषय में पूर्वज कहा करते थे कि श्रावण पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र में भगवान हय ग्रीव का प्राकट्य हुआ, उनके मुख से सामवेद की उत्पत्ति हुई। इसके अलावा श्रवण नक्षत्र में वामन भगवान का अवतार हुआ। अतः श्रवण नक्षत्र विशेष उत्तम होने से
ब्राह्मण श्रावणी कर्म एवं सामान्य जन घर-घर में श्रवण पूजा करते हैं।*
रक्षाबंधन 30/31 अगस्त 2023 को बड़े हर्षोल्लास के साथ सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाएगा!
परंतु 2 दिन क्यों?????
ऐसे ही परिस्थिति पिछले वर्ष भी बनी थी...

  सर्वप्रथम 30 अगस्त 2023 का विचार करते हैं...
            
      ।। इदं_भद्रायां_न_कार्यम्॥
अर्थात् मुख्यतः 2 कार्य भद्रा काल में ना करें।
                      द्वे_न_कर्तव्ये_श्रावणी_फाल्गुनी_तथा।
श्रावणी_नृपतिं_हन्तिं_ग्रामं_दहति_फाल्गुनी॥

भद्रां_विना_चेदपराह्ने_तदा_परा।
तत्_सत्वे_तु _रात्रावपीत्यर्थ:॥
(धर्मसिन्धु, निर्णय सिंधु व अन्य ग्रंथ)

अर्थात~ भद्राकाल में रक्षाबंधन करने से देश के राजा|घर के प्रधान का नाश तथा होलिका दहन करने से गांव की हानि अवश्य होती है।
यदि भद्रा रात्रि में भी समाप्त होती हो तो भद्रा के उपरांत ही रक्षाबंधन करें।
अतः अपना कल्याण चाहने वाले भद्रा काल में रक्षाबंधन और होलिका दहन ना करें!

 आपातकाल में होलिका दहन,भद्रा के मुख को छोड़कर पुच्छकाल में किया जा सकता है, परंतु रक्षाबंधन के संबंध में निर्णयसिंधुकार  के अनुसार श्रावणी कर्म उपयोगी संक्षिप्त निर्णय में कहा है...
               
भद्रायोगे_रक्षाबंधनस्यैव_निषेधात्।
एवं_प्रतिपद्योगोऽपि_न _निषिद्ध:॥

अर्थात~ भले ही रक्षाबंधन प्रतिपदा से युक्त हो परंतु सम्पूर्ण भद्रा का त्याग तो दूर से ही कर देना चाहिये।

 इस वर्ष 30 अगस्त 2023 को रक्षाबंधन का त्यौहार रात्रि में करना शास्त्र सम्मत है जबकि 31 अगस्त 2023 को सूर्योदय में पूर्णिमा प्राप्त हो रही है!

ऐसा क्यों?????
इस पर विचार करते हैं....
               
 पूर्णिमायां_भद्रा_रहितायां_त्रिमुहूर्त्ताधिकोदव्यापिनीयां_अपराह्ने_प्रदोषे_वा_कार्यम्॥
उदय_त्रिमुहूर्त्त_न्यूनत्वे_पूर्वेद्युर्भद्रा_रहिते_प्रदोषादि_काले_कार्यम्॥
#तत्सत्वे_तु_रात्रावपि_तदन्ते_कुर्यात्।
    ( धर्मसिंधु व निर्णय सिंधु)

अर्थात~ भद्रा रहित और तीन मुहूर्त से अधिक उदयकाल व्यापनी पूर्णिमा के अपराह्न या प्रदोष काल में करें!
यदि तीन मुहूर्त से कम हो तो न करें!
ऐसी परिस्थिति में जब भद्रा बीत जाए,फिर चाहे रात्रि में ही बीते,तब रक्षाबंधन करें!

 क्योंकि रक्षाबंधन देव कार्य है एवं दिन में ही करना उचित रहता है किन्तु दिनगत कर्म के संबंध में धर्मसिंधु व नागदेव का वचन है कि किसी कारणवश दिन के कर्म, यदि दिन में ना किया जा सके तो रात्रि के प्रथम प्रहर तक अवश्य कर लेने चाहिए!
                 
 १√ रात्रौ_प्रहर_पर्यन्तं_दिनोक्तकर्माणि_कुर्यात्॥
(धर्म सिंधु तृतीय परिच्छेद पूर्वार्द्ध )

 २√ दिवोदितानि_कृत्यानि_प्रमादादकृतानि_वै।
शर्वर्याः_प्रथमे_भागे_तानि_कुर्याद्यथाक्रमम्॥
(नागदेव)

 31 अगस्त 2023 का रक्षाबंधन कैसे?????

जो  माता-बहने रात्रि में किसी कारणवश 30 अगस्त 2023 की रात्रि को रक्षाबंधन न कर सके वें माता बहने, 30 अगस्त 2023 को प्रातः काल 07.04 तक (पूर्णिमा) तथा उसके बाद भी उदया तिथि होने से रक्षाबंधन के त्योहार को  सौहर्द पूर्वक मनाएं।

ऐसा क्यों ?
क्योंकि काल माधव कहता है..
             

या_तिथिससमनुप्राप्य_उदयं_याति_भास्करः।
सा_तिथिः_सकला_ज्ञैया_स्नान-दान_व्रतादिषु॥
उदयन्नैव_सविता_यां_तिथिम्_प्रतिपद्यते।
सा_तिथिः_सकलाज्ञेया_दानाध्यन_कर्मसु॥

अर्थात~ सूर्योदय के बाद तिथि चाहे जितनी हो उसी दिन को व्रत-पूजा-यज्ञ अनुष्ठान-स्नान और दानादि के लिए संपूर्ण अहोरात्र में पुण्य फल प्रदान करने वाली माना गया है !
(श्राद्ध कर्म को छोड़कर)

निष्कर्ष :~

 १√ 30 अगस्त 2023 को भद्रा के उपरांत रात्रि 9:01 से रात्रि के प्रथम प्रहर 9:54 तक रक्षाबंधन शास्त्र सम्मत है!और समय भी पूर्णिमा का अधिक है।

 २√ 31 अगस्त 2023 को उदया तिथि होने से भी रक्षाबंधन का त्यौहार शास्त्र सम्मत है!

 ३√ *30 अगस्त 2023 का मुहूर्त मुख्य तथा 31 अगस्त 2023 का मुहूर्त गौण है(यानी समय सूर्योदय से कुछ समय का है।), दोनों मुहूर्त शास्त्र सम्मत है अतः सुविधानुसार  उपयोग में लाएं!*

नागौर के समयानुसार*(30 बुधवार रात्रि 09.बजकर 2मिनिट से 10.58 बजे तक)*
*संवत् 2080 में द्वितीय श्रावण शुक्ल पूर्णिमा 30.08.2023 को प्रातः 10.58.01 बजे से प्रारम्भ है,और 31.08.2023 को  सूर्योदय     06:14:40 से प्रातः 07:04:42 बजे समाप्त होगी!*

 *भद्रा का समय ३० तारीख को, प्रात 10.59 से रात्रि 09.01.09 तक है।*

*31.08.2023 को पूर्णिमा मात्र 02घटी 02 पल है जो की त्रिमुहूर्त (छह घटी का होना जरूरी होता है।)से कम है,

✍️ *रमलज्योतिर्विद आचार्य दिनेश प्रेम शर्मा, नागौर राजस्थान*
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पंडित गोविंद कुमार बहड़ -नागौर
संवत 2080 में श्रवण सुदी चौदस वार बुधवार को भद्रा होने से रक्षाबंधन व श्रावणी उपाक्रम दोनों पर्व भद्रा का त्याग करते हुए मानना चाहिए l भद्रा 10:59 से रात्रि 09:02 बजें तक है l रक्षाबंधन तो रात्रि में हो सकता है परंतु उपाक्रम जो वैदिक कर्म दिन में होता है l इसलिए श्रावणी उपाक्रम जिसमें हेमाद्री प्रोक्त प्रायश्चित संकल्प  दस विद स्नान व तर्पण ऋषि पूजन जनेउ की पूजा व हवन आदि होता हैl जो श्रवण नक्षत्र भाद्रपद में पंचमी तिथि या हस्त नक्षत्र में शुद्ध काल में किया जा सकता है l परंपरागत ऋग्वेदी यजुर्वेदी सामवेदी कि होती है जो त्रेवर्णिको के जरूरी वर्ष में होने वाला जरूरी कर्म है l श्रवण नक्षत्र के प्रथम चरण में भगवान हयग्रीव प्रकट हुए व ब्रह्मा जी को वेद प्रदान किया l उस समय पूर्णिमा उदय काल थी अतः चतुर्दशी युक्त पूर्णिमा या श्रवण नक्षत्र हो तो उपाकर्म कर सकते हैं l उसे समय सिंह राशि का सूर्य होना चाहिए l

 पंडित गोविंद कुमार बहड़ -नागौर



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