गुरु पूजन की परंपरा के साथ गुरु पूर्णिमा महोत्सव सोमवार को होंगे भव्य आयोजन
रमल ज्योतिषी दिनेश प्रेम शर्मा
नागौर 3 जुलाई 2023 पूर्णिमा, आषाढ शुक्ल पक्ष, गुरु पूजन के अवसर पर सोमवार को होंगे भव्य गुरु पूजन आयोजन
रमल ज्योतिषी दिनेश प्रेम शर्मा ने बताया कि आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है । इस दिन गुरु की पूजा की जाती है । आषाढ़ पूर्णिमा के दिन को गुरु पूर्णिमा पर्व के रूप में मनाने की शुरुआत महर्षि वेद व्यास के पांच शिष्यों द्वारा की गई । सनातन धर्म में महर्षि वेद व्यास को विष्णु का ज्ञानावतार माना गया है । महर्षि वेद व्यास को बाल्यकाल से ही अध्यात्म में गहरी रूचि थी । ईश्वर के ध्यान में लीन होने के लिए वो वन में जाकर तपस्या करना चाहते थे । लेकिन उनके माता-पिता ने इसके लिए उन्हें आज्ञा नहीं दी । तब वेद व्यास जिद्द पर अड़ गए । इसके बाद वेद व्यास की माता ने उन्हें वन में जाने की अनुमति दे दी ।
लेकिन माता ने कहा कि वन में परिवार की याद आए, तो तुरंत वापस लौट जाए । इसके बाद पिता भी राजी हो गए । इस तरह माता-पिता की अनुमति के बाद महर्षि वेद व्यास ईश्वर के ध्यान के लिए वन की ओर चले गए और तपस्या शुरू कर दी । वेद व्यास ने संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल की और इसके बाद उन्होंने महाभारत, 18 महापुराण, ब्रह्मसूत्र समेत कई धर्म ग्रंथों की रचना की । साथ ही वेदों का विस्तार भी किया । इसलिए महर्षि वेद व्यास को बादरायण के नाम से भी जाना जाता है ।
दिनेश प्रेम शर्मा ने बताया कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेद व्यास ने अपने शिष्यों और ऋषि-मुनियों को भागवत पुराण का ज्ञान दिया । तब से महर्षि वेद व्यास के पांच शिष्यों ने इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाने और इस दिन गुरु पूजन करने की परंपरा की शुरुआत की । इसके बाद से हर साल आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा । शास्त्रों में भी गुरु को देवताओं से भी ऊंचा स्थान प्राप्त है । स्वयं भगवान शिव गुरु के बारे में कहते हैं ।
‘गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो, गुरौ निष्ठा परं तपः। गुरोः परतरं नास्ति, त्रिवारं कथयामि ते।।
यानी गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम धर्म है । इसका अर्थ है कि गुरु की आवश्यकता मनुष्यों के साथ ही स्वयं देवताओं को भी होती है । गुरु को लेकर कहा गया है कि 'हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर', यानी भगवान के रूठने पर गुरु की शरण मिल जाती है, लेकिन गुरु अगर रूठ जाए तो कहीं भी शरण नहीं मिलती ।इसलिए जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है । मान्यता है कि आप जिसे भी अपना गुरु मानते हो, गुरु पूर्णिमा के दिन उसकी पूजा करने या आशीर्वाद लेने से जीवन की बाधाएं दूर हो जाती है l