शिक्षाविद डा॰ एन॰ एम॰
सिंघवी
राजस्थान के विभिन्न महाविद्यालयों में तीस वर्ष तक सेवा करने के पश्चात ह॰ च॰ मा॰ राजस्थान राज्य लोक प्रशासन संस्थान, जयपुर में लोक सेवकों को प्रशिक्षण देने में लगभग तीन वर्ष तक रत रहे। डा॰ सिंघवी प्रशासनिक सुधार मानव संसाधन विकास व जन शक्ति आयोजना समिति, राजस्थान के अध्यक्ष रहे। अपने सात वर्ष के कार्यकाल में डा॰ सिंघवी ने राज्य सरकार को ३१ विभागों से संबंधित प्रतिवेदन सौंपे।
संगोष्ठियों में भाग लेने व लेखाकन के इतिहास व प्रादुर्भाव पर शोध पत्र पढ़ने के लिये अनेक देशों की यात्राएँ की हैं। डा॰ सिंघवी इंडियन अकाउंटिग एसोसिएशन के अखिल भारतीय अध्यक्ष बनने से पूर्व सन् २००० में ‘पेपरलेस’ कॉन्फ़्रेंस’ के संयोजक सचिव भी रहे।
समसामयिक विषयों पर अपनी प्रतिक्रिया देने वाले डा॰ सिंघवी ने लेखांकन विषय की अनेक पुस्तकों की रचना करने के साथ शिक्षा में सुधार से संबंधित लेख व पुस्तकें भी लिखी हैं। देवनागरी लिपि के होते हुए लोप से चिंतित डा॰ सिंघवी हिंदी साहित्य की संरचना में जुट गये। देशवासियों में एकता के हामी व पारस्परिक स्नेह में वृद्धि करने के उद्देश्य से डा॰ सिंघवी ने रोचक कहानियॉं व कविताओं से संबंधित लगभग आधा दर्जन पुस्तकों की रचना की हैं।
कर्म में अटूट विश्वास रखने वाले डा॰ सिंघवी का भगवान कृष्ण में अटूट विश्वास हैं उनकी रचनाओं में हमें श्री कृष्ण की पूर्ण अवतार के साथ ख़ुशमिज़ाज भगवान की झलक भी झलकती है। चाहे राधा का संग हो चाहे कुरुक्षेत्र का मैदान भगवान के मुख पर भाव परिवर्तन नहीं मिलता। कर्मयोगी नवरत्न की रचनाओं में श्री कृष्ण के प्रति श्रद्धा व अटूट आस्था स्पष्टतः झलकती है। वे अपनी समस्त रचनाओं का रचयिता श्री कृष्ण को ही मानते हैं। उनकी यह रचना उनके कान्हा के प्रति विश्वास को दर्शाती है -
नज़र को नजर लग गयी
कमजोर नज़र भी हो गयी
ताक़त कान्हा से मिल गई
क़लम ताक़तवर बन गयी
क़लम में दम जब आ गया
मजा लिखने का आ गया
कान्हा लिखवाता गया
क़लमकार लिखता गया
जीवन का सत्य मिल गया
आनंद लिखने का बढ गया
नज़र को नज़रअन्दाज़ कर
गया
कान्हा लिखवाता गया
क़लमकार लिखता गया